चुनाव आयोग ने शनिवार को 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए तारीखों का एलान कर दिया है. इस बार चुनाव 19 अप्रैल से 1 जून के बीच 7 चरणों में होंगे और वोटों की गिनती 4 जून को होगी. उत्तर प्रदेश, बंगाल और बिहार में सभी सात चरणों में वोटिंग होगी. जम्मू कश्मीर में पांच चरणों में चुनाव कराया जायेगा. वोटों की गिनती 4 जून को की जायेगी. मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि 18वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनाव कार्यक्रम घोषित होने के साथ ही देश में आचार संहिता तत्काल प्रभाव से लागू हो गई है. चुनाव आयोग ने आंध्र प्रदेश, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और उड़ीशा के विधान सभा चुनावों की तारीखों की घोषणा कर दी. आंध्र प्रदेश 13 मई को वोट डालें जायेंगें, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में 19 अप्रैल को और उड़ीशा में 13 मई और 20 मई को वोट डाले जाएंगें. सिक्किम में इसके साथ ही सरकार ऐसा कोई नीतिगत फैसला नहीं कर सकेगी जो मतदाताओं के फैसले को प्रभावित कर सके. इन चुनावों में पहली बार 85 साल से अधिक उम्र के लोगों के अलावा 40 फीसदी या अधिक विकलांगता वाले लोग घर से वोट दे पायेंगें. वैसे आपको बता दें कि मोदी सरकार का कार्यकाल 16 जून 2024 को समाप्त हो रहा है.
2019 के लोकसभा चुनाव भी 11 अप्रैल से 19 मई के बीच सात चरणों में हुए थे और वोटों की गिनती 23 मई को की गई थी. इन चुनावों में, और में सभी सात चरणों में वोटिंग हुई थी. 2024 के चुनावों में लगभग 97 करोड़ मतदाता मत डालने के लिए योग्य होगें. लोकसभा चुनाव 2019 में 90 करोड़ मतदाता थे, जबकि 2014 के आम चुनाव 81 करोड़ 45 लाख मतदाता थे. चुनावों में 55 लाख इवीएम का इस्तेमाल किया जायेगा और 10.5 लाख चुनावी बूथों के ज़रिए चुनाव संपन्न कराए जायेगें.
2024 में सात करोड़ से ज्यादा बढ़े मतदाता
2019 के मुकबाले मतदाताओं की संख्या में छह फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है. 2019 के लोकसभा चुनाव में 89.6 करोड़ मतदाता थे. पांच साल में मतदाताओं की संख्या में 7.28 करोड़ का इजाफा हुआ है. इस चुनाव में 96.88 करोड़ मतदाता हिस्सेदारी करेंगे. इनमें 49.72 करोड़ पुरुष, 47.15 करोड़ महिला और 48 हजार से ज्यादा अन्य मतदाता हैं. मतदाताओं का महिलाओं और पुरुषों के बीच अनुपात हजार पुरुष मतदाताओं पर 948 महिला मतदाता हैं. कुल आबादी में मतदाताओं का प्रतिशत 66.76% है. 1.84 करोड़ मतदाता ऐसे हैं जिनकी उम्र 18 से 19 साल के बीच है. वहीं, 20 से 29 साल के मतदाताओं की संख्या 19.74 करोड़ है. 1.85 करोड़ मतदाताओं की उम्र 80 साल से ज्यादा है, इनमें 2,38,791 मतदाता ऐसे हैं जो 100 की उम्र पार कर चुके हैं. 2019 के मुकबाले मतदाताओं की संख्या में छह फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है. 2019 के लोकसभा चुनाव में 89.6 करोड़ मतदाता थे. पांच साल में मतदाताओं की संख्या में 7.28 करोड़ का इजाफा हुआ है.
2019 लोकसभा चुनावों में पार्टियों का प्रदर्शन
2014 में 282 सीटें और 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने अपने दम पर 303 सीट हासिल कर बेहतरीन प्रदर्शन किया वहीं कांग्रेस का प्रदर्शन 2014 में 44 सीटें और 2019 में 52 साटों के साथ निराशाजनक रहा.
लोकसभा चुनाव 2019 में पार्टियों को मिली सीटें |
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पार्टियों का नाम |
सीटें |
बीजेपी |
303 |
कांग्रेस |
52 |
अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस |
22 |
डीएमके |
23 |
निर्दलीय |
4 |
वाय़एसआरसीपी |
22 |
अन्य |
116 |
लोकसभा चुनाव 2019 में पार्टियों का वोट प्रतिशत |
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पार्टियों का नाम |
वोट प्रतिशत |
बीजेपी |
37.7 |
कांग्रेस |
19.7 |
अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस |
4.1 |
बीएसपी |
3.7 |
वाय़एसआरसीपी |
2.6 |
अन्य |
32.2 |
2024 लोकसभा चुनावों के मुद्दे
राम मंदिर: इस चुनाव में राम मंदिर का मुद्दा छाया रहेगा. मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद लगातार बीजेपी के नेता से लेकर मंत्री तक लगातार अयोध्या के दौरे कर रहे हैं. बीजेपी के नेता अलग-अलग इलाकों से श्रद्धालुओं को दर्शन कराने के लिए ले जा रहे हैं. इस मुद्दे का बीजेपी को लाभ नहीं मिले इसकी पूरी कोशिश विपक्ष की होगी.
चुनावी बॉन्ड योजना: राजनीतिक दलों को गोपनीय चंदा देने वाली चुनावी बॉन्ड योजना को सुप्रीम कोर्ट ने इस साल फरवरी पर रोक लगा दी थी. सर्वोच्च अदालत ने इसे असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया. अदालत ने चुनावी बॉन्ड बेचने वाले एसबीआई बैंक को इसमें 16,518 करोड़ रुपये के कुल बेचे गए 28,030 चुनावी बांड के खरीददारों और उसे भुनाने वाले राजनीतिक के बारे में जानकारी चुनाव आयोग के ज़रिए सार्वजनिक करने के आदेश दिए हैं. इसमें अगर ये निकल के आता है कि बीजेपी ने उसे चुनावी बांड के ज़रिए चंदा देने वाली कंपनियों को कोई फायदा पंहुचाया है या इसमें किसी तरह कि कोई गड़बड़ी है जैसा कि पिपक्षी दल आरोप लगा रहें हैं ये एक बडा चुनावी मुद्दा बनेगा.
विकास: बीजेपी पिछले दस साल में हुए विकास के मुद्दे को भी चुनाव के दौरान जमकर उठाएगी. दस साल में बिजली, सड़क, पानी से लेकर तकनीक तक के क्षेत्र में सरकार की उपलब्धियों को चुनाव के दौरान जमकर प्रचारित करेगी.
केंद्रिय एजंसियों का इस्तेमाल: विपक्ष इस मुद्दे पर जनता से सहानुभूति की अपेक्षा कर रहा है. सर्वोच्च न्यायालय में दायर एक याचिका के मुताबिक 2004-14 के बीच, सीबीआई द्वारा जांच किए गए 72 राजनीतिक नेताओं में से 43 (60% से कम) उस समय विपक्ष से थे. अब यही आंकड़ा बढ़कर 95 फीसदी से ज्यादा हो गया है. यही पैटर्न ईडी की जांच में भी प्रतिबिंबित होता है, जांच किए गए राजनेताओं की कुल संख्या में विपक्षी नेताओं का अनुपात 54% (2014 से पहले) से बढ़कर 95% (2014 के बाद) हो गया है.
परिवारवाद: चुनाव तारीखों की घोषणा से पहले ही राजनीतिक दलों के बीच परिवारवाद के मुद्दे पर सियासी संग्राम छिड़ा हुआ है. एक तरफ बीजेपी विपक्ष को परिवारवादी पार्टियों का गठबंधन बता रही है. दूसरी ओर विपक्ष ने प्रधानमंत्री मोदी के परिवार पर सवाल उठा दिया. हालांकि, बीजेपी ने इसे भी अपने पक्ष में करने के लिए ‘मोदी का परिवार’ नाम से सोशल मीडिया कैंपेन तक शुरू कर दिया.
भ्रष्टाचार: बीजेपी विपक्ष को इस मुद्दे पर पूरे चुनाव के दौरान घेरती नजर आएगी. चुनाव से पहले विपक्षी नेताओं के घरों पर छापे में मिली नोटो की गड्डियों का जिक्र खुद प्रधानमंत्री मोदी अपने भाषणों में करते रहे हैं. वहीं, विपक्ष लगातार आरोप लगाता रहा है कि छापे सिर्फ विपक्ष के नेताओं पर पड़ते हैं. जो भ्रष्टाचारी बीजेपी में शामिल हो जाता है तो वो साफ हो जाता है और कारवाई से बच जाता है. चुनाव के दौरान इस तरह के नेताओं के नाम विपक्ष की ओर से भी लगातार लिए जाएंगे.
बेरोजगारी: बेरोजगारी का मुद्दा भी विपक्ष चुनाव के दौरान जमकर उठा सकता है. भर्ती परिक्षाओं में होने वाले पेपर लीक का मुद्दा भी चुनाव के दौरान विपक्ष द्वारा उठाया जाएगा. वहीं, सत्ता पक्ष पेपर लीक के बाद सरकारों द्वारा की गई कार्रवाई को गिनाएगा.
जातिगत जनगणना: राहुल गांधी से लेकर तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव तक विपक्ष के ज्यादातर नेता जातिगत जनगणना के मुद्दे को उठाते रहे हैं. चुनाव के दौरान भी विपक्ष इस मुद्दे पर बीजेपी को घेरने की कोशिश करेगा. वहीं, प्रधानमंत्री मोदी इस मुद्दे पर लगातार कहते रहें हैं कि देश में केवल चार जातियां ही हैं गरीब, किसान, महिला और युवा हैं. चुनाव के दौरान भी कुछ इसी तरह के दावे प्रतिदावे किए जाएंगे.
ये बात भी सही है कि 2024 के चुनावों में बीजेपी अपने विरोधियों पर भारी पडती दिखाई दे रही है. कारण है विपक्ष को मुद्दों को न उठा पाना और बीजेपी के विकल्प के तौर पर पने आप को खडा न कर पाना. विपक्षी दलों में एकता की कमी और बीजेपी के नरेटिव के विरुद्ध कोई दूसरा नरेटिव लोगों के सामने न रख पाना भी विपक्ष के दावे को कमज़ोर करता है.
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