चुनाव आयोग का फैसला जल्दबाजी में नहीं, उद्धव गुट मान लें, खत्म हुआ अब उत्तराधिकारी का दावा

चुनाव आयोग ने शुक्रवार को उद्धव ठाकरे गुट को बड़ा झटका देते हुए पार्टी का चुनाव चिह्न धनुष-बाण शिंदे गुट को देने का फैसला किया है. चुनाव आयोग ने कहा की पार्टी का नाम और उसका चुनाव चिह्न दोनों का इस्तेमाल शिंदे गुट की तरफ से ही किया जा सकेगा.
पिछले साल एकनाथ शिंदे (मौजूदा मुख्यमंत्री) के उद्धव ठाकरे से बगावत करने के बाद से ही दोनों गुटों की पार्टी के चुनाव चिह्न के लिए लड़ाई लड़ चल रही थी. चुनाव आयोग ने यह माना कि शिव सेना पार्टी के अंदर वर्तमान संविधान असंवैधानिक है. अपने ऐतिहासिक आदेश और इसके राजनीति पार्टियों और उसके व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभावों को देखते हुए चुनाव आयोग ने सभी दलों से ये सलाह दी है कि संवैधानिक मूल्यों और पार्टी के आंतरिक सिद्धांतों को दिखाएं. पार्टी की अंदरुनी कार्यशैली को नियमित तौर वेबसाइट्स पर दें, जैसे संगठनात्मक विवरण, चुनाव और पार्टी पदाधिकारियों की लिस्ट.
चुनाव आयोग ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों को अपने संविधान में पार्टी पदाधिकारियों के पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव और आंतरिक कलह की स्थिति में निष्पक्ष प्रक्रिया होनी चाहिए.
चुनाव आयोग के फैसले पर सवाल
हालांकि, संजय राउत ने चुनाव आयोग के फैसले की कड़ी आलोचना की और कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है. उन्होंने कहा कि जनता हमारे साथ है. हम नए चुनाव चिह्न के साथ लोगों के बीच जाएँगे. जनता की अदालत में एक बार फिर से शिवसेना को बढ़ाएंगे.
तो वहीं दूसरी तरफ उद्धव गुट के आनंद दूबे ने कहा कि आदेश वही है जिस पर हमें शक था. हमें ये बात कहते रहे हैं कि चुनाव आयोग पर हमें कोई विश्वास नहीं है. जब सुप्रीम कोर्ट में ये मामले विचाराधीन है और इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया है तो फिर ऐसे में ये जल्दबाजी दिखाता है कि चुनाव आयोग बीजेपी के एजेंट के तौर पर काम कर रहा है. हम इसकी आचोलना करते हैं.
चुनाव आयोग की तरफ से ये अप्रत्याशित फैसला नहीं
चुनाव आयोग की तरफ से शिवसेना पर दिए फैसले को राजनीतिक विश्लेषक और महाराष्ट्र की राजनीति को समझने वालीं स्मिता मिश्रा अप्रत्याशित फैसला नहीं मान रही है. उनका कहना है कि ये चुनाव आयोग का फैसला एक या दो दिन में नहीं दिया गया है. इस पर विस्तृत कानूनी छानबीन और संवैधानिक विचार कर कानूनी रूप से परीक्षण कर चुनाव आयोग की लीगल टीम इस नतीजे पर पहुंची है. जिसके बाद ये फैसला सुनाया गया है.
स्मिता मिश्रा आगे बताती है कि इसका मतलब है कि इतने दिनों से उद्धव ठाकरे गुट की जो मामले को लटकने की मंशा थी, नतीजा अब उन्हें भी मान लेना चाहिए. उनको भी समझना चाहिए कि बाला साहेब जो महाराष्ट्र की राजनीति के सबसे कद्दावर नेता रहे हैं, शिवसेना की पहचान ही बाला साहेब के नाम से हैं, लेकिन शिवसेना से उद्धव का उत्तराधिकार खत्म हो चुका है.
इसलिए अब असली शिवसेना अब एकनाथ शिंदे गुट हैं. चुनाव आयोग के इस फैसले के बाद जहां राज्य में एकनाथ शिंद गुट की साख बढ़ेगी तो वहीं ये अब तय हो गया है कि असली शिवेसना अब एकनाथ शिंदे की शिवसेना है.
हालांकि, एक सच ये भी है कि एकनाथ शिंदे की एक बगावत ने जिस तरीके से उद्धव को कमजोर किया, उसके बाद शायद उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति में उठने में जरूर एक लंबा अरसा लग जाएगा. पार्टी का नाम और पहचान एक या दो दिन में नहीं बनती है. जिस पार्टी की पहचान बाला साहेब ठाकरे से थी, एकनाथ शिंदे के बगावती तेवर और कानूनी लड़ाई के बाद जरूर उद्धव के लिए ये एक ऐसा झटका है, जिसकी भरपाई असंभव है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
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