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'एसेंबल इन इंडिया' के सपने दिखा रहा है इकोनॉमिक सर्वे 2020
2025 तक 4 करोड़ 'अच्छी' नौकरियां और 2030 तक 8 करोड़ नौकरी! अब क्या सरकार वो सब कर रही है जैसे इकोनॉमिक सर्वे में बताया गया है?
इकोनॉमिक सर्वे के पांचवे चैप्टर में इस तरह के सपने दिखाए गए हैं. कहा गया है कि पूरी दुनिया में जिस तरह से कारोबार के झगड़े हो रहे हैं, ऐसे में अपने देश के लिए कई अवसर छिपे हैं.
सर्वे में कहा गया है कि फिलहाल, पूरी दुनिया के कारोबार में भारत का हिस्सा 1.7 फीसदी और चीन का 12 फीसदी से भी ज्यादा है. जिस तरह से बढ़ते एक्सपोर्ट की वजह से चीन ने तरक्की की कहानी लिखी और करोड़ों युवा को अच्छे जॉब्स दिए, एसेंबल इन इंडिया को सही ढंग से लागू किया गया तो अपने देश में भी कुछ इसी तरह का हो सकता है. इसमें कहा गया है कि 2001 से 2011 के बीच अच्छे एक्सपोर्ट की वजह से 8 लाख लोगों को अच्छी नौकरियां मिली हैं.
इस चैप्टर का सार है कि एप्पल, सैमसंग और सोनी जैसी कंपनियों के प्रॉडक्ट्स भारत में एसेंबल होने लगे तो एक्सपोर्ट को जोर मिलेगा, अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ेगी और अच्छी नौकरियां पैदा की जा सकेंगी.
इस 'सपने' के रास्ते में रोड़ा क्या है?
सपने के तौर पर ऐसा सोचना तो सही है. लेकिन क्या ऐसा हो पाएगा? एक एप्पल को यहां एक प्रोडक्ट एसेंबल करने के लिए मनाने में हमें कई साल लग गए. इसकी वजह है कि बड़ी कंपनियां पॉलिसी के झटके से दूर ही रहते हैं. साथ ही इंपोर्ट ड्यूटी में बार-बार बदलाव से भी इसको नुकसान होता है. क्या इन सारी अनिश्चितताओं को दूर कर पाएंगे? ऐसा होता है तो वाकई हमारे लिए बड़ा अवसर होगा. लेकिन फिलहाल ये सारे, सपने ही दिखते हैं.
सर्वे की दूसरी बड़ी बातें-
-अगले वित्त वर्ष में विकास की दर 6-6.50 फीसदी रहेगी. इसका मतलब है कि इस साल के पांच फीसदी से ये थोड़ा ही ज्यादा होगी. जानकारों का मानना है कि बजट में मांग बढ़ाने के ठोस कदम नहीं उठाए गए तो 6.5 फीसदी विकास दर हासिल करना भी मुश्किल हो सकता है. कोरोना वायरस की वजह से जो दुनिया में अनिश्चितता बढ़ी है उसका असर हमारे एक्सपोर्ट पर पड़ सकता है और वो अर्थव्यवस्था की रफ्तार को धीमी कर सकता है.
- इस साल के दूसरी छमाही में विकास दर में तेजी दिख रही है. इसके तीन संकेत हैं- ज्यादा एफडीआई, जीएसटी के कलेक्शन में सुधार और मांग का धीरे-धीरे वापस लौटना. वैसे बैंकों के लोन बांटने के आंकड़ों को देखकर तो ऐसा नहीं लगता है कि अर्थव्यवस्था में मांग वापस लौट रही है.
- बाजार में सरकारी दखल से ज्यादा नुकसान ही होता है. कीमतों को काबू करने की सरकारी पॉलिसी का ज्यादा नुकसान ही होता है. प्याज के मामले में हम देख ही चुके हैं कि जब कीमतें बढ़ी तो सरकार ने आयात के ऑर्डर दिए और आयातित प्याज के बाजार में आने से पहले ही कीमतें गिरने लगी. इस मामले में आयात के फैसले से हमारा नुकसान ही हुआ, फायदा किसी का नहीं हुआ.
- सर्वे में कहा गया है कि बिजनेस शुरू करने को और आसान बनाने की जरूरत है. इज ऑफ डूइंग बिजनेस के लिए यह बहुत जरूरी है.
- इसमें कहा गया है कि खाने पीने के सामानों की कीमतों में तेजी स्थायी नहीं है. हमें पता है कि पिछले साल के मुबाबले दिसंबर के महीने में खाने के सामान 14 फीसदी से ज्यादा बढ़े.
-अर्थव्यवस्था में सुस्ती की वजह है 2013 से लगातार निवेश में कमी. निवेश बढ़ाकर अर्थव्यवस्था में तेजी लाई जा सकती है.
- 2025 तक 5 ट्रिलियर डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर में भारी निवेश करने की जरूरत होगी.
'थालीनॉमिक्स' का गणित क्या है?
सर्वे में एक मजेदार चैप्टर है जिसका नाम है थालीनॉमिक्स. इसमें कहा गया है कि 2006 की तुलना में 2019 में शाकाहारी थाली 29 फीसदी सस्ते हुए हैं और नॉन-वेज थाली 18 फीसदी. इसपर झूमने की जरूरत क्या है? इसका सीधा मतलब अगर ये है कि इससे बिजनेस में कार्यकुशलता बढ़ी है, तब तो ये अच्छी बात है. लेकिन इसका ये भी मतलब हो सकता है कि मांग उतनी तेजी से नहीं बढ़ रही है जैसा होनी चाहिए थी. साथ ही, क्या किसानों को अपने उत्पादों की सही कीमत मिल रही है? ये भी गंभीर सवाल है.
सर्वे का थीम है धनोपार्जन
सर्वे को इस बार लेवेंडर रंग दिया गया है जैसा कि मौजूदा 100 रुपए के नोट का रंग है. मुख्य आर्थिक सलाहकार ने बताया है कि इस साल के सर्वे का थीम है वेल्थ क्रिएशन. जो देश के वेल्थ क्रिएशन में मदद कर रहे हैं उनके लिए सम्मान की जरूरत है, शक-सुबहा की कोई जगह नहीं है.
अब क्या सरकार वो सब कर रही है जैसे इकोनॉमिक सर्वे में बताया गया है?
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राजेश कुमार
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