प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐतिहासिक मिस्र यात्रा से लौट आए हैं. बतौर प्रधानमंत्री पहली बार नरेंद्र मोदी मिस्र गए थे और उन्हें मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतह अल-सीसी ने निमंत्रित किया था. अल-सीसी इसी साल 2023 में भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि थे. उसी दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को काहिरा आने का निमंत्रण दिया था. दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति अल-सीसी के बीच द्विपक्षीय मुद्दों के साथ ही क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों पर भी विचारों का आदान-प्रदान हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने मिस्र की सरकार के वरिष्ठ लोगों के साथ ही कुछ प्रमुख हस्तियों और भारतीय समुदाय के लोगों के साथ भी बातचीत की और इस दौरान कई व्यापारिक-आर्थिक समझौतों पर भी हस्ताक्षर हुआ.
खाड़ी में हो रही है भारत की पैठ
ये भारतीय दृष्टिकोण से बहुत अहम दौरा था. मिस्र के राष्ट्रपति इसी साल गणतंत्र दिवस पर हमारे यहां मुख्य अतिथि थे. एक तरह से देखें तो यह भारत की खाड़ी आउटरीच पॉलिसी का एक हिस्सा है. जो पश्चिम एशिया के देश हैं, उनमें भारत अपनी बात बहुत कुशलता से रख रहा है. चूंकि, खाड़ी देशों और वेस्ट के देशों के बीच एक खाई बनी है, अमेरिका उसमें रुचि नहीं ले रहा है, रूस चूंकि यूक्रेन में फंसा है तो खुद मुसीबत में है. जो पूरा यूरो और अटलांटिक सेंट्रिक पॉलिटिक्स है, वह रूस और पूर्वी यूरोप के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. यह भारत के लिए बढ़िया मौका है कि वह अपनी नीतियों को दूसरे देशों खासकर खाड़ी के मुल्कों तक पहुंचाए. हमें याद रखना चाहिए कि 2014 में जब पीएम मोदी सत्ता में आए थे, तो उन्होंने 'मेक इन इंडिया' कैंपेन की शुरुआत की थी. इसी का अगला स्तर है- मेक फॉर वर्ल्ड. यही बात उन्होंने अमेरिका में भी कही, जब वे वहां के निवेशकों को भारत आने के लिए बुलावा दे रहे थे. चीन को अब भारत तुलनात्मक रूप से यह चुनौती दे रहा है कि केवल चीन ही अब मैन्युफैक्चरिंग हब नहीं रहेगा, भारत भी उसी तरह का हब बनेगा.
हालांकि, सवाल है कि जब भारत भी वैसा केंद्र बनेगा तो वो सामान कहां जाएगा? मिस्र चूंकि एशिया और अफ्रीका के बीच में एक पुल की तरह काम करता है. उसका स्वेज नहर पर भी अधिकार है और विश्व की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा उस स्वेज नहर से होकर गुजरता है. भारत अब केवल पूंजीवादी देशों का बाजार नहीं रहा, बल्कि जैसे-जैसे भारतीय अर्थव्यवस्था बढ़ेगी, वैसे-वैसे उसको भी अपना बाजार खोजना होगा, भारत वही कर रहा है. प्रधानमंत्री के मिस्र दौरे को इसी कड़ी में देखना चाहिए, जिसमें प्रधानमंत्री ने भारतीय उत्पादों के लिए, निर्यात के लिए बैटिंग की है. मिस्र भी कोविड और यूरोपीय मंदी के बाद फिलहाल खुद को ठीक करने की कोशिश कर रहा है, तो यह उसके लिए भी जरूरी है.
बीती को बिसार आगे की सुध लें
मिस्र की अर्थव्यवस्था बुरे दौर में है. ओआईसी (ऑर्गैनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीज) में उसे अपनी अर्थव्यवस्था के लिए बैटिंग भी करनी है, तो अपनी डोमेस्टिक राजनीति का भी ख्याल रखना है. इसलिए, जी20 की कश्मीर बैठक में न जाना उसकी एक चूक हो सकती है, अपराध नहीं. अपनी बदहाल अर्थव्यवस्था औऱ खाद्यान्न संकट से निबटने के लिए मिस्र को उस इलाके के महत्वपूर्ण देशों के सुर में सुर मिलाना पड़ता है. भारत ने उनके खाद्यान्न संकट में 61 मीट्रिक टन गेहूं का निर्यात किया. अगर उसकी अर्थव्यवस्था के संकट से निकलने में हम उसकी मदद करते हैं, तो मिस्र वापस हमारे पाले में आ सकता है.
भारत और मिस्र एक-दूसरे की जरूरत
जहां तक भारत में अल्पसंख्यकों का मसला है तो अमेरिका में भी पीएम मोदी से प्रश्न पूछा गया, जिसका उन्होंने बहुत ही खूबसूरती से जवाब भी दिया. महत्वपूर्ण यह है कि उसके तुरंत बाद ही दुनिया के छठे नंबर के सबसे बड़े मुस्लिम मुल्क मिस्र का दौरा पीएम मोदी करते हैं और वहां उनको मिस्र का सर्वोच्च नागरिक सम्मान "ऑर्डर ऑफ द नाइल" मिलना, मिस्र में जो बोहरा समुदाय के लोग हैं, उनसे सार्थक संवाद होना और उसके बाद कई समझौतों का होना यह तो नहीं दिखाता कि मिस्र को कहीं से भी भारत के 'अल्पसंख्यकों के प्रति नीति' से असंतोष है. कहीं भी अगर उनको भारत से परेशानी होती, तो वो उसके प्रधानमंत्री को सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नहीं नवाजते.
भारत के प्रधानमंत्री को यह छठा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार मिला है, जो किसी मुस्लिम देश ने दिया है. वैसे, उनको 13 सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार मिला है. इजिप्ट को भारत की जरूरत है. ब्रिक्स में शामिल होने के लिए हाल ही में मिस्र ने अपनी मंशा जाहिर की है और भारत ब्रिक्स का एक महत्वपूर्ण देश है, जिसकी राय महत्वपूर्ण है. मिस्र के संबंध अगर भारत के साथ सुधरे तो उसे आइएमएफ से कर्ज मिलने में भी आसानी होगी, क्योंकि भारत की साख जगजाहिर है कि मजबूत है. मिस्र के संबंध खाड़ी देशों से भी सुधरेंगे, अगर भारत से उसके संबंधों में गरमाहट आई. दूसरी तरफ भारत को भी खाड़ी में एक ऐसा देश चाहिए, जो अफ्रीका-एशिया के बीच पुल हो, जहां भारत अपने व्यावसायिक अड्डे बना सके.
प्रधानमंत्री मोदी के संबंधों की बात अगर मुस्लिम समुदाय के साथ करें, तो उनके संबंध गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए ही उनके मुस्लिम बोहरा समुदाय से बहुत अच्छे हैं. भारत के पीएम को छह इस्लामिक देश अपना सर्वोच्च सम्मान दे चुके हैं. यहां के बोहरा ने उस अल-हाकिम मस्जिद का पुनर्निर्माण में योगदान मिस्र में दिया है, जहां पीएम मोदी गए थे. तो, ये जो अफवाहें हैं अल्पसंख्यकों पर अत्याचार वगैरह की, वो एक इंटरनेशनल कैंपेन है, बस जो भारत की प्रगति में बस रोड़े अटकाना चाहता है.
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