(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
कांग्रेस को नजरअंदाज कर केसीआर के मंच पर क्यों खड़े हैं विपक्षी दल, किसका फायदा किसका नुकसान?
Election 2024: तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने 2024 लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष को जुटाने की कोशिश की है. उनकी रैली में केजरीवाल, भगवंत मान और अखिलेश यादव समेत तमाम विपक्षी दलों के नेता पहुंचे, जिससे ये साफ संकेत जाता है कि केसीआर एक ऐसा मोर्चा बनाने की कोशिश में हैं जो गैर कांग्रेसी हो. हम इसे कई नजरिए से देख सकते हैं.
केसीआर ने अपनी पार्टी भारत राष्ट्र समिति की एक मेगा रैली की, जिसमें विपक्ष के ऐसे नेता पहुंचे जिन्हें कांग्रेस ने न्योता नहीं दिया था. वहीं ऐसे नेता भी केसीआर के साथ दिखे जिन्हें कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा के लिए न्योता दिया था. ये भारतीय राजनीति में काफी अहम वक्त है. इस वक्त सभी ये चाहेंगे कि कहीं न कहीं उनकी जगह बनी रही. केसीआर की काफी पहले से ये कोशिश रही है कि बीजेपी के खिलाफ वो अपना दम दिखाएं और लोगों को जुटाकर आगे की इच्छाओं को पूरा करें.
अपने दांव बचाकर रखना चाहता है विपक्ष
केसीआर के साथ केरल के सीएम पिनराई विजयन, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान जैसे नेताओं का पहुंचना काफी दिलचस्प है. वहीं ये भी काफी खास बात है कि सीपीआई के डी राजा भी वहां पहुंच जाते हैं. सवाल ये उठता है कि एक तरफ कांग्रेस ने उन्हें भारत जोड़ो यात्रा के लिए न्योता दिया है, वहीं दूसरी तरफ वो लोग केसीआर के साथ पहुंच जाते हैं. इससे यही साफ होता है कि सभी दल अपने-अपने दांव बचाकर रखना चाहते हैं.
बीजेपी के लिए फायदा और कांग्रेस का नुकसान
कांग्रेस की यात्रा को देखें तो ये कहना गलत होगा कि ये सफल नहीं रही. बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस के लिए ये यात्रा काफी अहम है. लोग भारत जोड़ो यात्रा से जुड़े हैं, जिससे कहीं न कहीं ये लगा है कि कांग्रेस के साथ एक बार फिर लोग जुड़ रहे हैं. हालांकि ये देखना दिलचस्प रहेगा कि ये भीड़ वोट में किस हद तक तब्दील होती है. जिसका जिक्र खुद कांग्रेस नेता शशि थरूर ने किया है.
कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि विपक्ष को साथ रखकर ही चुनाव लड़ा जाए, लेकिन जो थर्ड फ्रंट बनाने की जो कोशिश है वो अगर वाकई में होता है तो विपक्ष को ही नुकसान होगा. बीजेपी का काडर पिछले एक साल से बूथ लेवल पर काम कर रहा है. बीजेपी की ताकत के खिलाफ अगर थर्ड फ्रंट उतरता है तो ये बीजेपी के लिए फायदे वाली बात होगी और विपक्ष के लिए काफी नुकसान वाला फैसला होगा.
वोट के हिसाब से देखें तो कांग्रेस का वोट शेयर लगातार गिरता जा रहा है, वहीं बीजेपी का वोट शेयर पिछले 10 साल में काफी ज्यादा बढ़ा है. हर चुनाव में करीब 10 करोड़ वोटर बढ़ते हैं. इसमें से अगर आधे भी बीजेपी के साथ जाते हैं तो उसे बड़ा फायदा होगा. कांग्रेस भी इस बात को समझती है कि वो अकेले इसे नहीं रोक सकती है. इसीलिए वो विपक्ष को जुटाने की कोशिश कर रही है. इस परिस्थिति में कांग्रेस और बाकी का विपक्ष साथ नहीं होंगे तो करोड़ों वोटर्स अलग-अलग टूट जाएंगे. जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलेगा.
अस्तित्व बचाने की कोशिश में लेफ्ट
इस पूरी पिक्चर में लेफ्ट फ्रंट की रणनीति को भी समझने की जरूरत है. एक तरफ तो लेफ्ट फ्रंट का कुछ हिस्सा त्रिपुरा में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ केसीआर की रैली में जा रहे हैं. ऐसे में लेफ्ट फ्रंट की मनोस्थिति समझने की जरूरत है. क्या लेफ्ट फ्रंट अलग चलने की कोशिश कर रहा है या फिर दोनों नाव में पैर रखने की कोशिश में है. लेफ्ट अपने अस्तित्व को बचाने की भी कोशिश में जुटा है. कुल मिलाकर लेफ्ट अपनी सही जगह तलाशने की कोशिश कर रहा है.
बार्गेनिंग पावर बढ़ाने की कोशिश
अब अगर थर्ड फ्रंट को लेकर विपक्षी दलों के इस दांव को देखें तो ये सब 2024 को नजर में रखकर किया जा रहा है. विपक्षी दलों का ये दांव इसलिए भी हो सकता है कि वो सीट शेयरिंग को लेकर अपना वजन बढ़ाना चाहते हैं. कुल मिलाकर ये पूरी कवायद बार्गेनिंग पावर को बढ़ाने के लिए भी हो सकती है. कहीं न कहीं विपक्षी दलों को भी पता है कि अगर वो अकेले गए तो उनकी क्या स्थिति होगी. विपक्ष के लिए ये चुनाव काफी ज्यादा अहम होने वाला है. 2024 में अगर विपक्ष का प्रदर्शन नहीं सुधरा तो कई पार्टियां लगभग खत्म हो जाएंगीं. इसीलिए 2024 की गाड़ी जो चल पड़ी है उसे कोई भी विपक्षी दल छोड़ना नहीं चाहेगा. बस कोशिश है कि कौन सी बस अच्छी मिल जाए.
बीजेपी को ये लग रहा है कि काफी हिंदू वोट उससे छिटक सकते हैं, इसीलिए बीजेपी अब मुस्लिमों की तरफ रुख कर रही है. अयोध्या में जो मस्जिद बनाकर दे दिया, वो दोनों तरफ काम कर सकती है, मुसलमानों को लुभा भी सकती है और कुछ हिंदू वोटर्स को दूर भी कर सकती है. वहीं छोटे विपक्षी दलों के सामने ये भी मुश्किल हो सकती है कि अगर वो कांग्रेस के साथ जुड़ गए तो अल्पसंख्यक वोट उनकी झोली में नहीं गिरेंगे. समाजवादी पार्टी, टीएमसी और बाकी दलों के सामने यही दबाव है.
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