शिव सेना के चुनाव चिन्ह पर अपना हक जताने को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई में सुप्रीम कोर्ट से उद्धव ठाकरे को कोई राहत न मिलना, एक बड़ा झटका माना जा रहा है. इसलिये कि अब गेंद पूरी तरह से चुनाव आयोग के पाले में आ गई है और अगर वह मुख्यमंत्री एकनाथ शिन्दे गुट को ही असली शिव सेना मानते हुए उसे चुनाव चिन्ह आवंटित कर देता है, तो ये उद्धव ठाकरे के लिए चुनाव लड़े बगैर ही एक बड़ी हार मानी जायेगी.
अगले कुछ दिनों में ही मुंबई के सबसे ताकतवर स्थानीय निकाय बृहन मुंबई नगर निगम यानी BMC के चुनाव की घोषणा होने वाली है. उद्धव ठाकरे बेहद आश्वस्त थे कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला उनके पक्ष में आयेगा क्योंकि अगर चुनाव आयोग की कार्रवाई पर रोक जारी रहती, तो अधिकृत रूप से पार्टी का चुनाव-चिन्ह उनके पास ही रहता और बीएमसी चुनावों में उन्हें इसका फायदा मिलता.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ये गुहार ठुकरा कर उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. कोर्ट का फैसला आने के बाद उम्मीद की जा रही है कि बीएमसी चुनावों की घोषणा से पहले ही केंद्रीय निर्वाचन आयोग भी अब अपना फैसला सुना देगा कि कौन-सा गुट असली शिव सेना है, जो पार्टी का चुनाव चिन्ह इस्तेमाल करने के लिये अधिकृत है.
दरअसल, महाराष्ट्र के सीएम पद से उद्धव के इस्तीफा देने और एकनाथ शिन्दे के मुख्यमंत्री बनने के बाद ये लड़ाई शुरु हुई थी. शिंदे गुट ने खुद को असली शिवसेना बताते हुए चुनाव आयोग से पार्टी का चुनाव चिन्ह 'धनुष व तीर‘खुद को आवंटित किए जाने की मांग की थी.
शिंदे गुट ने आयोग के समक्ष दलील रखी है कि चूंकि उसके पास ही पार्टी के अधिकतर सांसदों व विधायकों का समर्थन है, इसलिए पार्टी का चुनाव चिन्ह भी उसे ही मिलना चाहिए. आयोग ने इस पर उद्धव ठाकरे गुट से जवाब मांगा था, लेकिन उन्होंने जवाब देने की बजाय सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट की सुनवाई के चलते आयोग की कार्रवाई रुकी हुई थी. लेकिन अब चुनाव आयोग इस मामले पर कोई भी फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद सियासी गलियारों में ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं कि चुनाव आयोग शिंदे गुट के पक्ष में फैसला दे सकता है क्योंकि इस दावे का आधार बनाते हुए शिन्दे गुट की तरफ से शिवसेना के अधिकांश विधायकों व सांसदों के समर्थन वाली चिट्ठी आयोग के समक्ष पेश की गई है. जबकि ठाकरे गुट की तरफ से आयोग को अभी तक कोई जवाब ही नहीं दिया गया था, लिहाज़ा कोई नहीं जानता कि उन्हें कितने विधायकों-सांसदों का समर्थन प्राप्त है. ये तथ्य तो अब आयोग के समक्ष होने वाली सुनवाई के बाद सामने आयेगा कि दोनों में कौन-सा गुट मजबूत जमीन पर खड़ा है.
हालांकि शिंदे गट के वकील ने भी कोर्ट में यही दलील रखी कि चुनाव आयोग अपने पास उपलब्ध कराए गए तथ्यों के आधार पर ही किसी पार्टी के चुनाव चिन्ह को लेकर फैसला लेता है. वहीं चुनाव आयोग के वकील अरविंद दातार ने भी कहा कि आयोग अपना संवैधानिक दायित्व निभा रहा है. उसे नहीं रोका जाना चाहिए. आयोग यह नहीं देखता है कि कौन विधायक है, कौन नहीं. सिर्फ पार्टी सदस्य होना पर्याप्त है.
हालांकि सीएम एकनाथ शिन्दे ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करते हुए फिर दोहराया कि उनका गुट ही असली शिवसेना है लेकिन ठाकरे गुट ने इसे अपने लिए बड़ा झटका मानने से इनकार कर दिया है. शिंदे ने कहा कि, एक लोकतंत्र में, बहुमत मायने रखता है और हमारे पास विधानसभा में बहुमत है, अधिकांश सांसद हमारा समर्थन कर रहे हैं. देश में लिए गए सभी निर्णय संविधान, कानूनों और प्रक्रियाओं पर आधारित है. हम इस फैसले की उम्मीद कर रहे थे.
उधर, शिवसेना नेता व पूर्व मंत्री आदित्य ठाकरे ने कहा कि यह कोई राहत नहीं है जैसा कि शिंदे समूह के नेताओं ने दावा किया है, जबकि पार्टी सांसद अरविंद सावंत ने कहा कि यह निर्णय कानूनी प्रक्रियाओं का हिस्सा है, और पूरे देश ने अदालत की कार्यवाही देखी है.
ठाकरे जूनियर ने कहा,यह किसी भी पक्ष के लिए न तो सदमा है और न ही राहत. सुप्रीम कोर्ट ने अब चुनाव आयोग से इस मामले में निर्णय लेने के लिए कहा है. गद्दारों को कोई जीत नहीं मिली है, जैसा कि वे दावा कर रहे हैं. अब हम अपना मामला आयोग के सामने पेश करेंगे. हमें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि उद्धव ठाकरे गुट को अगर चुनाव चिन्ह नहीं मिला, तब महाराष्ट्र में वे अपना सियासी वजूद कैसे जिंदा रख पायेंगे?
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