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चुनाव कर्नाटक में फिर भी चर्चा में रहा केरल: क्या है इससे बीजेपी की राजनीति का कनेक्शन?

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए 10 मई को मतदान होना है. पिछले एक महीने से बीजेपी, कांग्रेस, जेडीएस समेत तमाम पार्टियों के बड़े-बड़े नेता जोर-शोर से प्रचार अभियान में जुटे थे. जब किसी राज्य में विधानसभा चुनाव होता है तो प्रचार अभियान में या तो उस राज्य की चर्चा ज्यादा होती है या फिर उस राज्य से जुड़े मुद्दे छाए रहते हैं.

लेकिन इस बार कर्नाटक के मामले में एक अनोखी बात देखी गई. पिछले दो हफ्ते से कर्नाटक में प्रचार के दौरान दूसरे राज्य यानी केरल की जमकर चर्चा हुई. चाहे बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व हो या फिर कांग्रेस के तमाम बड़े नेता, हर कोई कर्नाटक के चुनावी रैलियों और जनसभाओं में  केरल का जिक्र करते नज़र आया. इसकी वजह सुदीप्तो सेन के निर्देशन में बनी फ़िल्म " द केरला स्टोरी" बनी. भारत के संसदीय इतिहास में शायद ये पहला मौका है जब किसी राज्य में विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टियों के केंद्रीय नेताओं की ओर से किसी दूसरे राज्य की इतनी ज्यादा चर्चा हुई हो.

इस विवाद से तीन सवाल उठते हैं. पहला क्या इसके जरिए केरल की छवि खराब करने की कोशिश की जा रही है. दूसरा इसका कानूनी पहलू भी है और तीसरा जो सबसे महत्वपूर्ण है वो है क्या इससे केरल को लेकर बीजेपी की राजनीति का कोई वास्ता है.

इस फ़िल्म का टीजर पिछले साल नवंबर में रिलीज हुई थी. उसके बाद फ़िल्म का ट्रेलर 26 अप्रैल को रिलीज की गई और फिल्म सिनेमाघरों में 5 मई को रिलीज हो गई. इस फ़िल्म के ट्रेलर रिलीज के बाद से कर्नाटक के चुनाव प्रचार में इस फ़िल्म के जरिए केरल पर बात होने लगी.

इसमें दावा किया गया है कि  ये फ़िल्म केरल की सच्ची घटनाओं से प्रेरित है और इस फ़िल्म में उस सच्चाई को बयां किया गया है कि कैसे केरल में हिन्दू लड़कियों को बरगलाकर पहले मुस्लिम धर्म में परिवर्तित किया जाता है और उसके बाद उन लड़कियों को आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठनों में काम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

ऐसे तो इस फ़िल्म के जरिए केरल का जिक्र कर्नाटक चुनाव प्रचार में 26 अप्रैल से ही होने लगा था, लेकिन जब बीजेपी के सबसे बड़े चुनावी चेहरा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस फ़िल्म का जिक्र अपनी रैली में किया तो इस पर सियासी आरोप-प्रत्यारोप जोरों पर पहुंच गया.

जिस दिन फ़िल्म रिलीज हुई, उसी दिन प्रधानमंत्री मोदी ने कर्नाटक के बेल्लारी में जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि "आतंकी साजिश पर बनी फिल्म 'द केरला स्टोरी' की इन दिनों काफी चर्चा है. कहते हैं कि केरल स्टोरी सिर्फ एक राज्य में हुई आतंकवादियों की छद्म नीति पर आधारित है. देश का एक राज्य जहां के लोग इतने परिश्रमी और प्रतिभाशाली होते हैं, उस केरल में चल रही आतंकी साजिश का खुलासा इस 'द केरला स्टोरी' फ़िल्म में किया गया है." इसके आगे पीएम मोदी ने कहा कि "बीते कुछ वर्षों में आतंकवाद का एक और भयानक स्वरूप पैदा हो गया है. बम, बंदूक और पिस्तौल की आवाज़ तो सुनाई देती है लेकिन समाज को भीतर से खोखला करने की आतंकी साजिश की कोई आवाज़ नहीं होती." उन्होंने कांग्रेस पर सियासी हमला बोलते हुए आगे कहा कि "कांग्रेस देश को तहस नहस करने वाली इस आतंकी प्रवृति के साथ खड़ी नज़र आ रही है. इतना ही नहीं, कांग्रेस आतंकी प्रवृति वाले लोगों के साथ पिछले दरवाज़े से सौदेबाज़ी तक कर रही है"

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस बयान के बाद तो कर्नाटक में चुनाव प्रचार के बाद के आखिरी दिनों में इस फ़िल्म के जरिए केरल ही सुर्खियों में रहा. एक तरह से इसने एक विवाद का रूप ले लिया. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने फ़िल्म देखने के बाद इतना तक कह डाला कि केरल में धर्म परिवर्तन एक बहुत ही आतंकवाद का रूप है और इसमें कोई आवाज नहीं है, लेकिन यह बहुत खतरनाक है. उन्होंने प्रतिबंधित संगठन पीएफआई और कांग्रेस को एक ही थाली के चट्टे-बट्टे बताते हुए कह दिया कि बीजेपी देश की अखंडता के लिए काम करती है, जबकि कांग्रेस की सोच है कि देश चाहे खंडित हो जाए, वोट मिलते रहना चाहिए.

कांग्रेस के कई नेताओं के साथ ही केरल में सत्ताधारी लेफ्ट दलों ने फ़िल्म को प्रोपगैंडा करार देते हुए इसे केरल की छवि को जानबूझकर सोची समझी रणनीति के तहत नुकसान पहुंचाने की बात कही. कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने दावा किया कि बीजेपी इस फ़िल्म के जरिए महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे वास्तविक मुद्दों से जनता का ध्यान भटका रही है.

वहीं सीपीएम नेता और केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने दे केरला स्टोरी को प्रोपेगैंडा फ़िल्म बताते हुए कहा कि ऐसा लग रहा है कि इसका मकसद दुनिया के सामने केरल राज्य को बदनाम करना है. आरएसएस पर निशाना साधते हुए पी विजयन ने कहा कि इस तरह की प्रोपेगैंडा फ़िल्म और इसमें मुस्लिमों को जिस तरह से दिखाया गया है, उसे राज्य में आरएसएस परिवार को राजनीतिक लाभ पाने के प्रयासों से जोड़कर दिखा जाना चाहिए. केरल के मुख्यमंत्री ने सीधे-सीधे आरोप लगाया कि इस फ़िल्म के जरिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडे का प्रचार किया जा रहा है.

इससे पहले केरल से आने वाले कांग्रेस के बड़े नेता शशि थरूर ने भी अपनी बातों से जाहिर कर दिया था कि जिस तरह से फ़िल्म में कोशिश की गई है, वैसा केरल बिल्कुल नहीं है. दरअसल इस फ़िल्म के जरिए पहले दावा किया गया था कि केरल की 32 हजार महिलाओं का धर्म परिवर्तन कर दिया गया और बाद में उन सबको साजिश के तहत आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठनों के लिए काम करने को सीरिया और दूसरे जगहों पर भेज दिया जाता है.  शशि थरूर ने इस संख्या पर ही सवाल खड़े किए थे. केरल के तिरुवनंतपुरम से लोक सभा सांसद शशि थरूर ने इस संख्या के जरिए केरल की वास्तविकता के साथ खिलवाड़ करने को लेकर फ़िल्म के निर्माताओं की आलोचना की थी. उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला था कि पश्चिमी खुफिया सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक आईएसआईएस में शामिल होने वाले भारतीयों की संख्या ही 100 से कम थी. शशि थरूर ने ट्वीट कर लिखा था कि "साज़िश गहरी है.  फिल्म निर्माताओं ने YouTube पर फिल्म के विवरण को अपडेट किया है और 32,000 महिलाओं को 3 महिलाओं में बदल दिया है. इससे पहले, उन्होंने कहा कि फिल्म केरल में 32,000 महिलाओं की दिल दहला देने वाली और दिल दहला देने वाली कहानियों के बारे में है. अब विवरण कहता है कि 'द केरला स्टोरी' फ़िल्म केरल के अलग-अलग हिस्सों की तीन युवा लड़कियों की सच्ची कहानियों का संकलन है. बस इतना ही कहना चाहता हूं."

शशि थरूर हालांकि फ़िल्म को बैन करने की मांग नहीं कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने ये जरूरी कहा कि ये आपके केरल की स्टोरी हो सकती है, ये हमारे केरल की स्टोरी बिल्नकुल नहीं है. अपनी बातों और तर्कों के जरिए शशि थरूर ने ये दिखाने की कोशिश की फ़िल्म में जो भी केरल के बारे में बातें कही गई है, वो बढ़ा-चढ़ाकर कही गई है और वास्तविकता से उसका कोई लेना-देना नहीं है.

पहला सवाल कि केरल की छवि भारत में कैसी है, तो ये हम सब जानते हैं कि केरल की गिनती भारत के सबसे ज्यादा साक्षर और जागरूक राज्य के तौर पर होती है. केरल साक्षरता दर के मामले में देश का नंबर वन राज्य है. विकास के मानकों पर केरल भारत का सबसे विकसित राज्य है. मानव विकास सूचकांक में भी केरल पहले पायदान पर है. राज्यों के स्वास्थ्य सूचकांक में भी केरल शीर्ष पर बना रहता है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई बाहर केरल की प्रशंसा कर चुके हैं. पिछले महीने यानी 25 अप्रैल को केरल को पहली वंदे भारत ट्रेन की सौगात देते हुए कहा था कि केरल जागरूक और शिक्षित लोगों का राज्य है. केरल के लोगों की कड़ी मेहनत और विनम्रता उनकी पहचान का हिस्सा है. जो राज्य इस प्रकार की छवि रखता हो, उसको महज़ एक फ़िल्म के जरिए बदनाम करना इतना आसान नहीं है.

फ़िल्म में एक डायलॉग है कि केरल को मुस्लिम राज्य बनाने की साजिश रची जा रही है. लेकिन अगर आप केरल की डेमोग्राफी को समझेंगे तो हैरान रह जाएंगे. आम तौर पर केरल से बाहर के लोग खासकर उत्तर भारत के राज्यों में आम लोगों के बीच ये परसेप्शन है कि केरल ईसाई और मुस्लिम बहुल राज्य है. जबकि आकड़ों पर गौर करने से ये तथ्य सहीं नहीं है. 2011 की जनगणना के मुताबिक केरल की आबादी में 54.9% हिन्दू हैं. वहीं मुस्लिम 26.6% और ईसाई 18.4% हैं. हालांकि ये बात सही है कि केरल में मुस्लिमों की आबादी में दशकीय वृद्धि दर हिन्दू और क्रिश्चियन के मुकाबले ज्यादा है, लेकिन ये सिर्फ़ केरल पर ही लागू होता है ये बात सही नहीं है. एक और महत्वपूर्ण पहलू है दशकीय वृद्धि दर से जुड़ा हुआ. 1981 के बाद से केरल में बाकी समुदायों के साथ ही मुस्लिम आबादी के दशकीय वृद्धि दर में भी लगातार गिरावट देखी गई है.

कर्नाटक चुनाव में द केरला स्टोरी को मुद्दा बनाने का सीधा संबंध राजनीतिक फायदे से जुड़ा है. कर्नाटक में जीत हासिल करना बीजेपी के लिए साख का सवाल बन गया है और जिस तरह से तमाम चुनाव पूर्व सर्वे में वहां कांग्रेस को बढ़त दिखाया गया है, उससे बीजेपी की चिंता बढ़नी लाजिमी भी है और द केरला स्टोरी को मुद्दा बनाने के पीछे कहीं न कहीं इस पहलू से जुड़ाव जरूर है.

जहां तक बात केरल को लेकर बीजेपी के राजनीतिक मंसूबों की है, तो केरल राजनीतिक तौर से बीजेपी के लिए देश में सबसे कमज़ोर कड़ी है. बीजेपी 1980 बतौर पार्टी अस्तित्व में आती है. अगर वर्तमान तक बात करें, तो पूरे देश में केरल ही एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां विधानसभा और  लोकसभा चुनाव में जीत के नजरिए से बीजेपी की राजनीतिक हैसियत न के बराबर है.  केरल में उसका जनाधार बाकी राज्यों की तुलना में सबसे कम है. यहां तक कि अब बीजेपी पूर्वोत्तर के भी ज्यादातर राज्यों में या तो खुद सरकार चला रही है या सरकार का हिस्सा बन गई है.

बीजेपी को 2019 के विधानसभा चुनाव में 113 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी. 2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को महज एक सीट से संतुष्ट होना पड़ा था. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी केरल में खाता नहीं खोल पाई थी. उसके पास केरल में ऐसे नेता भी नहीं हैं जिनके नाम पर वहां की जनता बीजेपी पर भरोसा करे. आपको जानकर हैरानी होगी कि 2019 के विधानसभा में बीजेपी ने के. सुरेंद्रन की अगुवाई में चुनाव लड़ी थी, जबकि के. सुरेंद्रन दो सीटों से चुनाव लड़ने के बावजूद कहीं से नहीं जीत पाए थे. अभी वहीं केरल में पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी निभा रहे हैं. केरल में 1989 से बीजेपी लोकसभा चुनाव में हाथ-पांव मार रही है, लेकिन कभी भी सफलता हासिल नहीं हुई है. वहीं विधानसभा चुनाव में सिर्फ 2016 में बीजेपी किसी तरह से एक सीट जीतने में कामयाब हो पाई थी. बीजेपी 1996 से केरल के विधानसभा चुनावों में 100 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रही है, लेकिन सिर्फ 2016 में एक सीट को छोड़कर कभी कोई सीट नहीं जीत पाई है.

2024 का लोकसभा चुनाव और 2026 में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी के लिए केरल में अपनी पकड़ मजबूत करना फिलहाल उसके शीर्ष नेतृत्व के लिए बहुत बड़ी चुनौती बनी हुई है. ये बात भी सही है कि जिस तरह से केरल में आजादी के बाद से कांग्रेस और लेफ्ट दलों की पकड़ है,उस पकड़ को तमाम प्रयासों के बावजूद भी पिछले 9 साल में बीजेपी ढीली नहीं कर पाई है. हर राज्य में बीजेपी के शीर्ष नेता नरेंद्र मोदी चुनाव में सबसे बड़े चेहरे होते हैं और उनका प्रभाव भी अतीत में देखा गया है, लेकिन इस मामले में केरल अछूता है. केरल की राजनीति पर पकड़ रखने वाले कई जानकारों का मानना है कि बाकी राज्यों की तुलना में यहां चुनाव में हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई या फिर धर्म के आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण अभी तक नहीं हो पाया है.

कर्नाटक चुनाव और द केरला स्टोरी के बहाने केरल राज्य पर चर्चा से जुड़ा एक और पहलू है और वो है कानूनी पहलू. अगर केंद्र की सत्ताधारी दल और खुद देश के प्रधानमंत्री किसी फ़िल्म में दिखाई गई बात को आधार बनाकर सार्वजनिक मंचों से ये बात बोल रहे हैं कि फ़िल्म में जो भी दिखाया गया है, वो आतंकवाद के एक खतरनाक साजिश को दर्शाता है. जिस तरह से जनसभाओं इन बातों को कही गई है, उससे आम लोगों में तो यही परसेप्शन बनता है कि केरल के लिए ये गंभीर समस्या है. चूंकि ये मामला अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों से जुड़ा होने के दावे पर आधारित है तो ये न सिर्फ़ केरल राज्य का मामला है, बल्कि ये पूरे देश के लिए ही बहुत गंभीर मुद्दा है.

अगर केंद्र सरकार, प्रधानमंत्री तक को लगता है कि इसमें कुछ भी सच्चाई है, तो केंद्रीय एजेंसियों से इसकी सख्ती से जांच की जानी चाहिए और अगर दावों में कुछ भी सच्चाई है तो जांच के बाद पूरे मामले को देश के लोगों के सामने रखा जाना चाहिए. किसी फ़िल्म के आधार पर अगर आतंकवाद को परिभाषित किया जाने लगा, तो फिर हमारे यहां कई ऐसी फिल्में बनी हैं, जिसमें पुलिस या नेताओं की ज़ुल्म और ज्यादतियों को बड़े ही वीभत्स तरीके से दिखाया गया है, तो क्या सिर्फ उन फ़िल्मों के आधार पर इस पर परसेप्शन को सच्चाई की दुनिया में मान लिया जाएगा क्या. केरल की 32 हजार महिलाओं को लेकर जो भी दावा किया जा रहा है, उस पर केंद्र सरकार को गंभीरता से जांच करनी चाहिए. अगर ये सच है तो ये सिर्फ़ एक चुनावी प्रचार का हिस्सा नहीं रहना चाहिए.

मुद्दा तो ये भी है कि किसी फ़िल्म से अगर भारत सरकार को वास्तविकता का एहसास हो रहा है, तो फिर देश की बड़ी-बड़ी केंद्रीय जांच एजेंसियों और खुफिया एजेंसियों को भी सोचने की जरूरत है.

इन सब पहलुओं के आलोक में ये जानना भी जरूरी है कि तमाम दावों के बीच फ़िल्म की शुरुआत में इसके काल्पनिक कहानी होने का डिस्क्लेमर दिया गया है. निर्माताओं ने फिल्म के साथ एक डिस्क्लेमर जारी है जिसमें विशेष रूप से कहा गया है कि यह घटनाओं का कल्पना आधारित और नाटकीय रूपांतरण है और फिल्म ऐतिहासिक घटनाओं की वास्तविकता का दावा नहीं करती. ट्रेलर के विवरण से 32 हजार लड़कियों का जिक्र भी हटाकर तीन लड़कियों की कहानी कर दिया गया है. इसके साथ ही कर्नाटक का चुनाव भी 10 मई को हो जाएगा. इन सबके बीच ये सवाल हमेशा रहेगा कि क्या कोई फ़िल्म चुनाव प्रचार में मुख्य एजेंडा बन सकता है.

(ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)

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