मोदी सरकार अपने तीन साल पूरे होने का जश्न मना रही है. केंद्र की तरफ से इस मौके पर नारा दिया गया है 'तीन साल बेमिसाल'. वहीं विपक्ष ने मोदी सरकार को हर मोर्चे पर नाकाम करार दिया है. मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने 'तीन साल، 30 तिकड़म' नाम से एक वीडियो फिल्म जारी करके मोदी सरकार के जश्न को बेमानी साबित करने की कोशिश की है. पूरा विपक्ष सरकार को बेरोजगारी के सवाल पर घेर रहा है, लेकिन सरकार की तरफ से रोजगार के मौके पैदा करने के बढ़चढ़ कर दावे किए जा रहे हैं.
मोदी सरकार के मंत्रियों को तीन साल पूरे होने के मौके पर बढ़चढ़ अपन उपलब्धियां गिनवाते हुए देखा और सुना जा रहा है. देश में लगातार बढ़ती बेराजगारी की समस्या से आंख चुराते हुए तमाम मंत्री पिछले तीन साल में करीब सात करोड़ रोजगार के अवसर पैदा करने का दावा करते नजर आ रहे हैं. केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी और कौशल विकास मंत्री राजीव प्रताप रूड़ी इस मुद्दे पर सबसे ज्यादा मुखर होकर बोल रहे हैं. इनका दावा है कि मुद्रा लोन योजना के तहत 3 लाख करोड़ रुपए का कर्ज लोगों को दिया जा चुका है.
एक करोड़ रुपए से शुरू किए जाने वाले बिजनेस के सेटअप में 70 लोगों को रोजगार मिलता है. इससे अंदाज़ा लगा लीजिए कि दो करोड़ से ज्यादा लोगों को तो सरकार की एक ही योजना से रोजगार मिल चुका है. कौशल विकास की अन्य योजनाओं को भी इसमें जोड़ लें तो ये आंकड़ा सात करोड़ के करीब पहुंचता है. इस तरह हम कह सकते हैं कि हमने चुनाव घोषणा-पत्र में हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार देने का अपना वादा पूरा किया है.
मोदी सरकार के मंत्री अपने इन दावों पर आत्ममुग्ध हैं. उनके अंध समर्थक इन दावों पर तालियां पीट रहे हैं. इन दावों की पड़ताल तो दूर सवाल तक खड़े नहीं हो रहे. इन आंकड़ों को शाश्वत सत्य की तरह पेश किया जा रहा है. मोदी सरकार का कोई मंत्री सरकारी नौकरियों पर बात नहीं कर रहा. कोई नहीं बता रहा कि पिछले तीन साल में कितने लोगों को सरकारी नौकरी मिली हैं. न ही इस बारे में मंत्रियों से सवाल पूछे जा रहे हैं.
मंत्री एक मोटा अंदज़ा पेश कर रहे हैं कि मोदी सरकार की योजनाओं से इतने लोगों को रोजगार मिला चुका होगा. मिला है या नहीं ये तो जांच के बाद ही पता चाल पाएगा. मंत्रियों के दावे चाहें जो हों देश में रोजगार सृजन और बेरोजगारी पर निगरानी रखने वाली सरकारी एजेंसिया ही मोदी सरकार के मंत्रियों के दावों की पोल खोल रही हैं. मोदी सरकार के केंद्रीय योजना राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की मानें तो देश में बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है.
इसी साल के शुरू में वजट सत्र के दौरान 6 फरवरी को उन्होंने राज्यसभा में पूरक सवालों का जवाब देते हुए बताया कि देश में बेराजगारी दर 5 फीसदी को पार कर गयी है. अनुसूचित जाति और जन जाति के बीच बेराजगारी की दर सामान्य से ज्यादा, 5.2 फीसदी है. मंत्री जी ने यह भी बताया कि यूपीए सरकार के आखरी तीन साल में बेरोजगारी दर पांच फीसदी से कम रही. हालांकि यूपीए के शासनकाल मे ही यह दर बढ़नी शुरू हो गई थी.
लेकिन, अब ये बेकाबू होती जा रही है. यूपीए सरकार के दौरान 2011 में बेरोजगारी दर 3.8 फीसदी, 2012 में 4.7 फीसदी और 2013 में 4.9 फीसदी रही. 2011 में अनुसूचित जातियों के बीच बेरोजगारी की दर 3.1 थी लेकिन आज ये बढ़ कर 5.2 फीसदी हो गई है. केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने 30 मार्च को लोकसभा में आंकड़े पेश करके बताया किए रोजगार के मौके पैदा करने के मामले में मोदी सरकार अपने कार्यकाल के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है.
इन आंकड़ो मे मुताबिक साल 2013 की तुलना में 2013 में केंद्र सरकार की सीधी भर्तियों में 89 प्रतिशत तक की कमी आई है. साल 2013 में केंद्र की सीधी भर्तियों में 1,54,841 लोगों को नौकरी मिली. साल 2014 में ये आंकड़ा घटकर 1,26,261 रह गया और 2015 में महज़ 15,877 लोग ही केंद्र की सीधी भर्तियों में नौकरी पा सके. ये आंकड़े केंद्र सरकार के 74 विभागों को मिलाकर हैं. सबसे ज्यादा दुर्भाग्य की बात ये है कि इस दौरान अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों को दी जाने वाली नौकरियों में 90 फीसदी तक की कमी आई है.
साल 2013 में इन जातियों के 92,928 लोगों की केंद्र की सीधी भर्तियों में नौकरी मिली थी. साल 2014 में इन नौरकरियों की संख्या घट कर 72,077 रह गई और 205 में ये आंकड़ा सिर्फ 8,436 पर ही सिमट कर रह गया. सरकारी नौकरियां देने के मामले में रेलवे पहले नंबर पर आता है लेकिन मौजूदा समय में उसकी भी हालत खस्ता है. हाल में हुए उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ने दावा किया था कि बीते एक साल में रेलवे ने एक लाख लोगों को नौकरी दी है.
रेलवे में हुई हुई भर्तियों के आंकड़े इस दावे को भी खोखला ही साबित करते हैं. हकीकत ये है कि मोदी सरकार ने रेलवे में मंजूर न्यूनतम कार्यक्षमता को ही दो लाख तक घटा दिया है. इस साल के बजट में इस बात का जिक्र है. इसके मुताबिक 1 जनवरी 2014 को रेलवे को काम करने के लिए 15,57,000 लोगों की जरूरत थी. सरकार ने अगले तीन साल यानि 2015-18 के लिए ये संख्या घटा कर 13,26,437 से लेकर 13,31,433 कर दी है.
गौरतलब है कि 2014 में रेलवे में 15,57,000 के बजाय सिर्फ 13,61000 लोग ही काम कर रहे थे. रेलवे की न्यूनतम कार्यक्षमता घटाए जाने के बाद इस सख्या में बढ़ोत्तरी के बजाय अब कमी ही आएगी. रोजगार देने के मामले में सरकार के दावों की पड़ताल करने पर हकीकत कुछ और ही नजर आती है. इस साल सरकार ने 2,80,000 नौकरियों के लिए बजट का प्रावधान किया है. सरकार की तरफ से इसे नौकरियों की बाढ़ कहा गया. आयकर विभाग में सबसे ज्यादा नौकरियों की बात कही गई थी.
इस विभाग में नौकरियों की संख्या 46,000 से बढ़ाकर 80,000 किए जाने का वादा किया था. कहा गया था कि उत्पाद शुल्क विभाग में भी 41,000 नई भर्तियां की जाएंगी. अफसोस की बात है कि इनमें से अभी तक कहीं भी नई नौकरियां दिए जाने की जानकारी सामने नहीं आई है. कार्मिक एवं प्रशिक्षण राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह ने जुलाई 2016 में एक लिखित सवाल के जवाब में बताया था कि केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में साढ़े सात लाख से ज्यादा पद खाली हैं.
उनके मुताबिक 1 जुलाई 2014 को केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों को मिलाकर 40.48 लाख पद थे. इनमें से 33.01 लाख पदों पर ही नियुक्तियां की जा सकी हैं. मंत्री जी ने सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए जानकारी दी थी कि 1 जनवरी 2016 को केंद्र सरकार के अधीन 7,74,000 पद खाली हैं. एक साल में इनमें इनमें से कितने पदों पर नौकरियां दी गई हैं इसका आंकड़ा सामने आना अभी बाकी है.
मोदी सरकार ने के तीन साल होने के बावजूद सरकारी नौकरियों में बाढ़ तो नहीं आई अलबत्ता सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्र में काम करे रहे लाखों लोगों की नौकरियों पर खतरा जरूर मंडरा रहा है. नीति आयोग ने लगातार घाटा उठा रहीं 74 सरकारी कंपनियों की पहचान की है. प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से इन्हें बंद करने और बेचने को लेकर हरी झंडी मिल चुकी है. नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक 10 कंपनियों में निवेश, 22 कंपनियों में रणनीतिक तौर पर निवेश, छह कंपनियों के मलिकाना हक का ट्रांसफर, तीन कंपनियों का विलय, पांच को लंबे समय के लिए लीज पर देने और 26 को बंद करने का प्रस्तावित है.
बता दें कि अगर ऐसा हुआ तो बड़े पैमाने पर कई लोगों की नौकरी चली जाएगी. वहीं आई.टी. सेक्टर में काम करने वाले करीब 14 लाख कर्मचारियों का भविष्य एक ट्रांजिशन फेज से गुजर रहा है. इनमें से ज्यादातर कर्मचारियों की नोकरियां खतरे में हैं. आई.टी. सेक्टर वक्त के साथ-साथ नई टेक्नोलॉजी के हिसाब से बदल रहा है. नई तकनीक लोगों की नौकरियों पर बड़ा खतरा बनकर आई है. स्नैपडील जैसी कई कंपनियां बड़े पैमाने लोगों को निकाल चुकी हैं.
इंफोसिंस और विप्रो जैसी कई बड़ी कंपनियां अपने स्टाफ में बड़े पैमाने पर कटौती का ऐलान कर चुकी हैं. ऐसे में सरकार के मंत्रियों का ये दावा गले नहीं उतरता कि देश में बेरोजगारी की कोई समस्या नहीं है या फिर बड़े पैमान पर रोजगार के मौके पैदा किए जा रहे हैं. हकीकत यह है कि देस में बेरोजगारी की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है. बेरोजगारी का सवाल मोदी सरकरा के तीन साल पूरे होने को बाद भी अनसुलझा है. अगर समय रहते इसे नहीं सुलझाया गया तो ये मोदी सरकार और देश दोनों के लिए बड़ी चुनौती पेश कर सकता है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
मोदी सरकार के तीन साल, नहीं सुलझा बेरोजगारी का सवाल
ABP News Bureau
Updated at:
24 May 2017 06:59 PM (IST)
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