गुरुवार को यूपी एसटीएफ ने झांसी में उमेश पाल हत्याकांड के आरोपित अतीक अहमद के बेटे असद और उसके एक गुर्गे को मार गिराया था. यूपी एसटीएफ द्वारा किए गए एनकाउंटर के बाद यह सवाल उठ रहा है कि एनकाउंटर किस स्थिति में होती है और यूपी पुलिस ने ये जो एनकाउंटर किया गया है वो सही है या गलत. इस देश में बदमाश खुले तरीके से हथियार लेकर घूमते हैं. नाजायज हथियार और हर तरह के हथियार उपलब्ध हैं. ऐसे लोगों से जब आपका सामना होता है, जब उन्हें गिरफ्तार करना होता है तो ऐसी स्थिति में वे पुलिस पर फूल तो नहीं ही बरसाते हैं. एनकाउंटर में दो ही परिस्थितियां होती हैं. पहला यह कि दुश्मन आप पर (पुलिस पर) हावी हो सकता है या फिर दूसरी स्थित में पुलिस को बदमाश पर हावी होना होता है. जहां ज्यादा खतरनाक स्थिति होती है उसमें यही कहा जाता है कि चाहे आप आरोपित अभियुक्त को मार दें या खुद मारे जाएं. आदमी तैयार हो कर जाता है तब ऐसी स्थिति में मुठभेड़ होता है.
हम प्रथम दृष्टया तो यही मानेंगे की जो मुठभेड़ झांसी में हुई है, यूपी के स्पेशल टास्क फोर्स में और इन भागे हुए अपराधियों में वो वास्तविक है. लेकिन जैसा कि सुप्रीम कोर्ट और ह्यूमन राइट्स का गाइडलाइंस है ऐसे मुठभेड़ों में मिनिस्ट्रियल इन्क्वायरी होगी और उससे जो तथ्य समाने आएंगे वो सरकार के सामने होंगे और अगर कुछ पुलिस ने गलत काम किया है तो इसके लिए संबंधित अधिकारियों को दंडित भी किया जाएगा. लेकिन शुरुआत में इस एनकाउंटर पर सवाल उठाना सही नहीं है. मुझे नहीं पता है कि इस देश में लोग क्या सोचते हैं.
एनकाउंटर करना नहीं पड़ता है. यह हो जाता है. एनकाउंटर करने के लिए आपकी तैयारी होनी चाहिए. आपके पास हथियार होना चाहिए और अगर अपराधी हथियार का इस्तेमाल करता है तो आप भी हथियार का जवाब हथियार से दीजिए. एनकाउंटर करने का मतलब यह नहीं है कि हम पहले से ही सोच कर जा रहे हैं कि एनकाउंटर ही करना है. पुलिस ऐसा सोचकर नहीं जाती है. यह परिस्थितियों वश हो जाता है. अगर आप एनकाउंटर करते हैं, इसका मतलब है कि आप कुछ गलत कार्य कर रहे हैं. इससे अपराधियों को ये मैसेज जाता है कि अगर आप हत्या करेंगे, लूट करेंगे पुलिस आपको नहीं बख्शेगी और अगर आप गिरफ्तार नहीं हो सके और पुलिस पर हथियार चलाने की कोशिश करेंगे वैसे में पुलिस भी इसका जवाब हथियार से ही देगी. गोली का जवाब गोली से देगी. फिर आप मरने के लिए तैयार रहिए. जब यह हुआ तो दो पुलिसकर्मी भी मारे गए. उनकी कोई बात नहीं करता है. लगता है कि वो बस मर गए सो मर गए. उनके बारे में कोई सवाल नहीं पूछता है कि वे दो पुलिसकर्मी कौन थे. क्यों मारे गए. लेकिन असद मारा गया तो 100 सवाल किये जा रहे हैं.
योगी जी के मिट्टी में मिला देने का यह मतलब थोड़ी न है कि किसी को भी कुछ कर देंगे. उनका कहने का मतलब था कि ये जो अपराधी हैं अतीक अहमद जैसे उनके आर्थिक नेटवर्क को तोड़ कर उन्हें घुटने पर लाना है. उनका जो एम्पायर है हजारों करोड़ रुपये की उसको तहस-नहस कर दिया जाएगा. उनके खिलाफ लीगल एक्शन करके उन्हें खत्म कर दिया जाएगा और मिट्टी में मिलाने वाली बात का उन्होंने मुहावरे के तौर पर इस्तेमाल किया था. इसका मतलब उन्होंने यह नहीं कहा था कि किसी उल्टे-सीधे तरीके से किसी को मार दिया जाएगा. सख्त से सख्त कार्रवाई की जाने की बात है. अपराधियों को जेल के अंदर किया जाएगा. अगर इसके बावजूद अपराधी अपने आप को बहुत होशियार समझते हैं और सोचते हैं कि गोली चलाएंगे तो वे धोखे में नहीं रहे पुलिस भी गोली चलाना जानती है.
सरकार बार-बार अखबार के माध्यम से कह रही है कि जीरो टॉलरेंस अगेंस्ट क्राइम, मतलब साफ है कि जो लोग इस तरह के अपराध करेंगे उन्हें बख्शा नहीं जाएगा. ये बात सरकार डंके के चोट पर कह रही है. सरकार चाहती है कि अपराधी सरेंडर कर दें. राम राज्य तो नहीं हो सकता है लेकिन इस तरह से समाज में अपना पूरा आतंक फैला देना, टांगा चलाते-चलाते हजारों करोड़ का मालिक बन जाना ऐसा कही होता है. ऐसे लोगों के गलत कृत्यों पर अंकुश लगाना है. उन्होंने जो गलत किया है उसे खत्म करना है. हर स्टेट में समस्याएं अलग-अलग हैं. लेकिन यूपी में जो कुछ हो रहा है वो दूसरे राज्यों के लिए भी नजीर बन सकता है. बदमाशों के अंदर पुलिस और कानून का भय होना जरूरी है.
[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]