ये हमारी परंपरा है कि देशभर के ब्लॉक से जो हमारे प्रतिनिधि आते हैं, वो अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष को चुनते हैं. 8 ब्लॉक के जो प्रतिनिधि होते हैं, वे  ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी यानी एआईसीसी के एक सदस्य को चुनते हैं.


ये जो हमारा अधिवेशन था, उसमें देश के 10 हजार ब्लॉक के प्रतिनिधि, एआईसीसी के लोग और राष्ट्रीय नेतृत्व से जुड़े लोग शामिल हुए. सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे भी एक ब्लॉक के प्रतिनिधि होते हैं. उनका भी चुनाव एआईसीसी में होता है, तभी वे राष्ट्रीय कार्यकारिणी में आते हैं.


अधिवेशन से पार्टी कैडर में उत्साह बढ़ता है. पार्टी की नीतियों में संशोधन का भी ये मौका होता है. इसमें कई तरह के प्रस्ताव पारित होते हैं. सामाजिक, आर्थिक के साथ ही विदेश मामलों पर हमारी किस तरह की नीति है, उससे जुड़ा प्रस्ताव पारित होता है. महिलाओं के साथ ही वंचित वर्गों को लेकर पार्टी की नीतियों पर चर्चा होती है. इस सब मुद्दों पर पार्टी के नेता अपनी बात रखते हैं.


कांग्रेस का ये 85वां महाधिवेशन था. पहला अधिवेशन 1885 में बॉम्बे से शुरू हुआ था. रायपुर में पहली बार पार्टी के महाधिवेशन का आयोजन किया गया था. वर्किंग कमेटी का भी चुनाव इसी अधिवेशन में होता है, लेकिन एक प्रस्ताव पास करके पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को ये अधिकृत किया गया है कि आप वर्किंग कमेटी के सदस्यों को मनोनीत कर दीजिए. पहले वर्किंग कमेटी में 23 लोग होते थे, जिसे बढ़ाकर अब 35 कर दिया गया है. ये भी फैसला किया गया है कि पार्टी के हर बॉडी या निकाय में 50 फीसदी जगह महिलाओं, युवाओं, कमजोर वर्ग के लोगों, पिछड़ों और दलितों को दिया जाएगा.


देश में जो आर्थिक स्थिति है, देश में जो भ्रष्टाचार का माहौल बन गया है, उसको लेकर आर्थिक प्रस्ताव पारित किया गया है. समाज को तोड़ने की कोशिश की जा रही है. जैसे पहले अंग्रेज आरएसएल, मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा को आपस में मिलाकर लड़ाते थे, आज भी उसी तरह के तत्व हैं. एक वर्ग के खिलाफ दूसरे वर्ग के बीच नफरत फैलाने की वजह से ही 1947 में हमारा देश टूट गया. वैसा फिर से न हो, उसके खिलाफ कांग्रेस लड़ाई जारी रखेगी, महाधिवेशन में ये तय किया गया है. राहुल गांधी ने जो भारत जोड़ो यात्रा शुरू की थी, भविष्य में नफरत छोड़ो और भारत जोड़ो के नाम से उसका एक-दो चरण और भी हो सकता है.


देश फैसला लेता है, जनता फैसला लेती है. राजनीतिक दल का काम सिर्फ़ चुनाव जीतना और हराना नहीं है. जिम्मेदार राजनीतिक दलों का ये फर्ज़ है कि पहले जिन बातों से देश को नुकसान हो चुका है, उन बातों के प्रति जनता को जागरूक बनाया जाए. भविष्य के खतरों के प्रति सचेत किया जाए. कांग्रेस पार्टी इन जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही है. गांव-देहातों में रहने वाले कैडर अधिवेशन से पार्टी की नीतियों के बारे में परिचित होते हैं और फिर अपने-अपने इलाकों में जाकर इनका प्रचार करते हैं. वे जाकर बताते हैं कि लोगों को ऐसी किसी भी विचारधारा से दूर रहना चाहिए, जिससे समाज में नफरत फैले.


आरक्षण पर लोगों को गुमराह किया जा रहा है. महंगाई पर कोई बात नहीं हो रही है. पहले 400 रुपये गैस सिलेंडर था, तो जो लोग आंदोलन करते थे, अब 1200 रुपये हैं, फिर भी वो लोग चुपचाप बैठे हैं. कहा गया कि कालाधन वापस आएगा तो सबके खाते में 15-15 लाख रुपये चला जाएगा. अभी वर्ल्ड बैंक और दूसरी संस्थाओं की रिपोर्ट आई है कि स्विस बैंक में 2014 के बाद से कालाधन तिगुना बढ़ गया है. कहां वापस लाने की बात की जा रही थी, ये तो तिगुना बढ़ गया है. देश के लोगों को बेवकूफ बनाने की कोशिश की जा रही है. कहा गया था कि पेट्रोल 40 रुपये लीटर होगा, लेकिन ये सौ के पार कर गया. अधिवेशन में इन सब बातों को हम अपने कैडर को बताते हैं और उनके जरिए देश की जनता तक ये संवाद पहुंचता है. हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में अडानी को लेकर जो मामला है या फिर बीबीसी डॉक्यूमेंटी के जरिए देश में जिस तरह का माहौल बनाया गया, उन सभी मुद्दों पर पार्टी के रुख से हम कैडर को अवगत कराते हैं और वे फिर वापस जाकर जनता के बीच उसे रखते हैं. 


अभी मल्ल्किार्जुन खरगे पार्टी के अध्यक्ष हैं, पार्टी के पूर्व अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी का महत्व हैं. सलाह सभी देते हैं और दे सकते हैं, लेकिन पार्टी अध्यक्ष के तौर पर फैसला मल्लिकार्जुन खरगे ही लेंगे और वो सबके लिए मान्य होगा. 


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये आर्टिकल पूर्व केन्द्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता शकील अहमद से बातचीत पर आधारित है.)