'नफ़रत की राजनीति' पर क्या अपनी चुप्पी तोड़ेंगे पीएम मोदी?
देश के सौ से अधिक पूर्व नौकरशाहों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर उम्मीद जताई है कि वे 'नफरत की राजनीति' को खत्म करने का आह्वान करेंगे. पिछले कुछ दिनों में देश के कई राज्यों में जिस तरह के उन्माद वाली घटनाएं हुई हैं, उसे देखते हुए 108 पूर्व नौकरशाहों को एकजुट होकर इस चिट्ठी के जरिये अपनी आवाज़ उठाने पर मजबूर होना पड़ा है. लेकिन सवाल है कि क्या पीएम मोदी इस मसले पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को कोई हिदायत देंगे?
हालांकि ये प्रधानमंत्री पर निर्भर करता है कि वे इस चिट्ठी पर कोई संज्ञान लें या फिर दो-तीन पंक्तियों का औपचारिक जवाब देकर इस मामले को कोई तवज्जो ही न दें. पीएम मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान जब यूपी में मॉब लिंचिंग की घटनाएं हो रही थीं, तब भी पूर्व नौकरशाहों ने ऐसा ही एक पत्र पीएम को लिखा था.
चिट्ठी लिखने वालों में कई बड़े अधिकारी शामिल
जाहिर है इस खुले पत्र पर अपने हस्ताक्षर करने वाले 108 पूर्व नौकरशाहों में से अधिकांश वे हैं, जो 10 साल तक देश में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान सेवा में ही थे. लिहाज़ा, बीजेपी के नेता ये आरोप लगाते रहे हैं कि ऐसी चिट्ठी लिखने वाले रिटायर्ड नौकरशाहों की सोच कांग्रेस व वामपंथी विचारधारा के झुकाव वाली रहती है और वे बीजेपी सरकार पर दबाव बनाने के मकसद से किसी खास एजेंडे के तहत ही ऐसा पत्र लिखते हैं.
पूर्व नौकरशाहों ने इस खुले पत्र में कहा है, “हम देश में नफरत से भरे विनाश का उन्माद देख रहे हैं, जहां न सिर्फ मुस्लिम और अल्पसंख्यकों को ही निशाना नहीं बनाया जा रहा है, बल्कि संविधान के साथ भी खिलवाड़ हो रहा है.” इस पत्र पर 108 लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन, पूर्व विदेश सचिव सुजाता सिंह, पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मुख्य सचिव टी के ए नायर शामिल हैं.
'संविधान को किया जा रहा खत्म'
पत्र में आगे कहा गया है, ‘‘पूर्व लोक सेवकों के रूप में, हम आम तौर पर खुद को इतने तीखे शब्दों में व्यक्त नहीं करना चाहते हैं, लेकिन जिस तेज गति से हमारे पूर्वजों द्वारा तैयार संवैधानिक इमारत को नष्ट किया जा रहा है, वह हमें बोलने और अपना गुस्सा और पीड़ा व्यक्त करने के लिए मजबूर करता है. नफरत वाली इस राजनीति पर बीजेपी के नियंत्रण वाली सरकारों में कथित तौर ज्यादा 'कठोरता से' जोर दिया जा रहा है."
पत्र में अल्पसंख्यक समुदाय पर हो रही हिंसा की घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा गया है कि "पिछले कुछ वर्षों और महीनों में कई राज्यों - असम, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में अल्पसंख्यक समुदायों, खासकर मुसलमानों के प्रति नफरत एवं हिंसा में वृद्धि ने एक भयावह नया आयाम हासिल कर लिया है. पत्र में कहा गया है कि दिल्ली को छोड़कर इन सभी राज्यों में बीजेपी की सरकार है और दिल्ली में पुलिस पर केंद्र सरकार का नियंत्रण है. जाहिर है कि दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में हुई हिंसक घटना के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की सरकार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि पुलिस पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है.
पीएम से चुप्पी तोड़ने की मांग
पूर्व नौकरशाहों ने चिंता जताते हुए ये भी कहा कि संविधान को ताक पर रखकर जिस तरह की चीजें हो रही हैं, उनसे हम परेशान हैं. पत्र में कहा गया है, “इतने बड़े सामाजिक खतरे के सामने आपकी चुप्पी ठीक नहीं है.” उन्होंने कहा, ” ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के आपके वादे को दोहराते हुए हम आपसे अपील करते हैं कि अपनी चुप्पी को तोड़िए.”
लोकतंत्र में सरकारी सेवा से रिटायर होने के बाद एक आम इंसान की तरह कोई भी नौकरशाह किसी भी राजनीतिक विचारधारा का समर्थक हो सकता है.लिहाज़ा, ये बहस का विषय नहीं है बल्कि महत्वपूर्ण ये है कि जो मुद्दा उन्होंने उठाया है,उसकी सच्चाई को देश का एक बड़ा वर्ग भी देख-समझ रहा है. इसलिये नफ़रत की इस खाई को पाटने के लिए देश के प्रधानमंत्री अगर कुछ बोलेंगे, तो इससे उनका कद छोटा नहीं बल्कि और बड़ा ही होगा!
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)