गुजरात: एनकाउंटर स्पेशलिस्ट वंजारा की नई पार्टी कर पायेगी कोई कमाल?
किसी जमाने में गुजरात की मोदी सरकार के चहेते पुलिस अफसर रहे और फर्जी एनकाउंटर के आरोपों के चलते विवादों में आये गुजरात पुलिस के पूर्व आईजी डी जी वंजारा ने भी इस चुनाव में ताल ठोंक दी है. उन्होंने अपनी नई पार्टी बनाई है, जिसका नाम प्रजा विजय पक्ष रखा है और दावा किया है कि वो राज्य की सभी 182 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
बताया जा रहा है कि उन्होंने बीजेपी से टिकट मांगा था लेकिन पार्टी ने उनकी दागी छवि को देखते हुए टिकट न देने का फैसला किया. उससे नाराज होकर ही उन्होंने नई पार्टी बनाकर बीजेपी को सबक सिखाने का ऐलान किया है. लेकिन सवाल ये है कि क्या वे इस हैसियत में हैं कि बीजेपी के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाकर बीजेपी को कोई नुकसान पहुंचा सकें?
गुजरात के सियासी जानकार इस सवाल का जवाब "ना" में देते हुए इसकी दो बड़ी वजह बताते हैं. पहली तो ये कि वंजारा का सियासी अनुभव जीरो है और न ही उनके पास कोई नेटवर्क है, जो सत्तारुढ़ पार्टी के लिए खतरा बन जाये. और, दूसरी बड़ी वजह ये भी कि फर्जी एनकाउंटर के मामलों में बेशक वे आरोप मुक्त हो चुके हैं लेकिन आम जनता के बीच उनकी इमेज आज भी एक ऐसे दागी अफसर की है, जिसे लोग नापसंद करते हैं. इसलिये चंद सीटों पर उनकी पार्टी को मिलने वाले वोट तिहाई का आंकड़ा भी छू लें, तो बहुत बड़ी बात होगी.
सोहराबुद्दीन शेख और उसके बाद करीब डेढ़ दर्जन फर्जी एनकाउंटर के आरोपों के कारण विवादों में आये वंजारा के हौंसले हालांकि इतने बुलंद हैं कि वे सीधे बीजेपी का विकल्प बनने का दावा कर रहे हैं. उनके मुताबिक "हिंदुत्व से कम कोई भी पार्टी गुजरात की सत्ता में बीजेपी की जगह नहीं ले सकती क्योंकि गुजरात हिंदुत्व की लेबोरेटरी है. प्रजा विजय पक्ष ही केवल ऐसी पार्टी है जो इसकी क्षमता रखती है. राजसत्ता को अहमियत देने वाली बीजेपी के मुकाबले हिंदुत्व के मामले में देने के लिए हमारे पास ज्यादा है. पीवीपी राजसत्ता को धर्मसत्ता के साथ मिलाएगी. "
फर्जी मुठभेड़ों के आरोपों में 8 साल तक जेल में रहे वंजारा अब लोगों को ये समझा रहे हैं कि सत्ता आखिर भ्रष्ट कैसे होती है. वे कहते हैं कि बीते 27 साल से एक ही पार्टी बीजेपी सत्ता में है, लिहाजा जब लंबे समय तक कोई पार्टी सत्ता में होती है तो वह सत्ता भ्रष्ट हो जाती है. इससे पहले यह परिस्थिति कांग्रेस के समय में हुई थी और अब यही समस्या बीजेपी के साथ भी है. कांग्रेस ने बीजेपी को हटाने का असफल प्रयास किया लेकिन अब आम आदमी पार्टी भी उसे सत्ता से नहीं हटा पाएगी.
वंजारा तो दावा ये भी कर रहे हैं कि गुजरात की जनता बीजेपी का विकल्प ढूंढ रही है. उनकी यह नई पार्टी उसका विकल्प बनने को तैयार है क्योंकि हमारी विचारधारा हिन्दुत्ववादी है. अगर कांग्रेस ही विकल्प होती तो पिछले 27 वर्ष से यहां बीजेपी का शासन नहीं होता.
अपनी पार्टी के लॉन्चिंग के मौके पर पत्रकारों ने उनसे पूछा था कि चुनाव जीतने के लिए नहीं, बल्कि कुछ वोट काटने के लिए ही नई पार्टी बनाई है, तो इसके जवाब में उन्होंने कहा कि 'लोकतंत्र में एक पार्टी का शासन नहीं हो सकता. लोकतंत्र में वोट का बंटवारा होना ही चाहिए.
यह संवैधानिक योजना का हिस्सा है. इसमें गलत क्या है?' बीजेपी से टिकट कटने को लेकर पूछे गए सवाल पर उनका जवाब था, 'टिकट बहुत छोटी बात है. मैं वो नहीं हूं, जो टिकट मांगे, बल्कि मैं वो हूं जो टिकट देता है. मैं देने वाला हूं, भिखारी नहीं हूं. यह विचारधारा और सरकार को बदलने का सवाल है.
बेशक साल 2002 से 2007 तक वंजारा राज्य सरकार के सबसे चहेते अफसर बने रहे लेकिन उनके गिरफ्तार होते ही सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली. सरकार से दुश्मनी मोल लेने की रही सही कसर डीजी वंजारा ने साल 2013 पूरी कर दी, जब उन्होंने जेल से ही गुजरात सरकार को अपना इस्तीफा भेजा लेकिन सरकार ने उसे नामंजूर कर दिया था.
वंजारा ने अपने इस्तीफे में तत्कालीन गुजरात सरकार पर हमला बोलते हुए कहा था कि राज्य सरकार को अहमदाबाद की साबरमती जेल में या फिर मुंबई की तलोजा जेल में होना चाहिए. उन्होंने गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी और राज्य के तत्कालीन गृहमंत्री अमित शाह पर पुलिस सिस्टम का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया था.
वंजारा ने सरकार को भेजे गए इस्तीफे में ये भी लिखा था कि मैं साफतौर पर बताना चाहूंगा कि 2002 से 2007 के बीच क्राइम ब्रांच, एटीएस और बॉर्डर रेंज ने वही किया था, जो तत्कालीन गुजरात सरकार की नीति थी. हम तो उस नीति को ही अंजाम दे रहे थे. वंजारा को 2007 में गुजरात सीआईडी ने फर्जी एनकाउंटर मामले में गिरफ़्तार किया था और उसके बाद वे जेल भेजे गए. सरकार ने तभी उन्हें निलंबित कर दिया था.
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