देश में हुए पांच  राज्यों के विधानसभा चुनाव ने मीडिया और जनता को एक नई दिशा में सोचने और मतदान के नतीजों का आकलन करने मजबूर कर दिया है. क्योकि ये चुनाव लोकसभा चुनाव के पहले का आखरी विधान सभा चुनाव है, इस लिये इसे लोकसभा चुनाव का सेमि फाइनल भी कहा जा रहा है ,इस चुनाव से पहले, कई मीडिया चैनलों ने अपने सर्वे दिखाए, जिनमें कुछ ने कांग्रेस को इन राज्यों में बढ़त दिखाई है तो कुछ ने बीजेपी को,लेकिन  क्या ये सर्वे सचाई को सही सलामत प्रतिबिंबित करते हैं, फिर ये सिर्फ एक चांद लम्हे का तसवीर है?


 नमूना आकार और कार्यप्रणाली


 सर्वेक्षण का पहला-पहल होता है उनका नमूना आकार और पद्धति.  छोटा सैंपल साइज या गलत तरीके से डेटा कलेक्ट करना, असलियत से दूर जाना संभव है.  इसलिए, हर सर्वेक्षण को जांच के लिए तैयार रहना चाहिए.  बड़े पैमाने पर सर्वेक्षणों से अधिक सटीक परिणाम आने की संभावनाएं होती हैं.


 स्थानीय कारक


सभी राजनितिक पार्टियां स्थानीय मुद्दों और संवेदनाओं को लेकर जनता को जागरूक करता है.  कुछ राज्यों में स्थानीय मुद्दों का असर ज्यादा होता है, जिसे  सर्वे शायद किसी कारणवश या गलती से नजरअंदाज कर जाते है.  स्थानीय भावनाओं की समझ चुनाव के असली मुद्दों को समझने में मदद करता है .  स्थानीय मुद्दों को सर्वे में आधार बनाना महत्वपूर्ण है ताकि सर्वेक्षण का असली चित्र समझने में मदद मिले.



 पार्टी की लोकप्रियता


सर्वेक्षणों में पार्टी के प्रचारकों का प्रभाव होता है.  मीडिया चैनल के एजेंडे के मुताबिक़ सर्वे को प्रस्तुत किया जा सकता है.  ये महत्वपूर्ण है कि सर्वे न्यूट्रल हों और पार्टी के प्रचार से दूर रहें.  पार्टी की लोकप्रियता का विश्लेषण करते समय पिछले रुझानों और वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्यों पर भी ध्यान देना चाहिए.


 मतदाता भावना: मतदान से पहले, मतदाता भावना बदल सकती है.  आखिरी मिनट में बदलाव भी संभव होते हैं, इसलिए सर्वेक्षणों का अपडेट रहना महत्वपूर्ण है. यह भी देखना चाहिए कि कोई विशिष्ट घटना या राजनीतिक विकास ने मतदाता भावना को कैसे प्रभावित किया.


 डेटा क्रॉस-सत्यापन: एकाधिक स्रोतों से डेटा क्रॉस-सत्यापन करना महत्वपूर्ण है.  एक ही सर्वे पर पूरा भरोसा करना मुश्किल होता है,पिछले कई चुनाव ने सर्वे के नतीजों को गलत साबित किया है .  अगर दो अलग सर्वे एक ही पार्टी की जीत दिखा रहे  हैं, तो ये समझना जरूरी है कि ऐसा क्यों हो रहा है.  अलग-अलग परिणामों का विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है.


 ये हकीकत है कि सर्वे एक चुनाव के नतीजों को भविष्यवाणी करने में मदद करते हैं, लेकिन ये परफेक्ट नहीं होते.  इन्हें एक स्नैपशॉट मान कर, सतर्क दृष्टिकोण रखना चाहिए.  राज्यो में हुए चुनाव में कई कारकों का असर होता है, और सर्वे सिर्फ एक हिसा है.  इसलिए, हमें एक सूक्ष्म दृष्टिकोण रखना चाहिए जब हम सर्वेक्षणों की तरफ देखते हैं.  और सबसे जरूरी बात है कि हम अपने मत का अधिकार इस्तमाल करें, क्योंकि हर एक वोट का महत्व होता है.



नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]