दिल्ली में एग्जिट पोल के नतीजे हो सकते हैं सच, दिख रही है बनती हुई भाजपा की सरकार

बस एक दिन और, फिर दिल्ली के लोगों को आठ फरवरी की दोपहर तक पता चल जाएगा कि अगले पांच साल तक उनको किस पार्टी की सरकार की सेवाएं मिलने वाली हैं. 699 प्रत्याशियों का भाग्य ईवीएम में बंद है और उनमें से 70 कौन और किस पार्टी के होंगे जिन्हें विजय मिलेगी, यह शनिवार को साफ हो जाएगा. इस बार का चुनाव इतना आसान नहीं है, जितना सबने समझ रखा है. सभी दलों के नेताओं के दिल की धड़कनें बढ़ी हुई हैं क्योंकि टक्कर कड़ी रही है. सियासी दल दावे चाहे जो करें लेकिन सबकी धुकधुकी लगी हुई है क्योंकि मतदाता इस बार एकतरफा जाता नहीं दिख रहा था.
अधिकांश नतीजे भाजपा के साथ
एक्जिट पोलों के नतीजों पर गौर करें तो अधिकतर तौर पर भाजपा को सरकार बनाते दिखा रहे हैं, लेकिन दो एक्जिट पेाल ऐसे भी हैं जो आम आदमी पार्टी को चौथी बार सत्ता में आते दिखा रहे हैं. एक बात से तो सभी सहमत हैं कि इस बार आम आदमी पार्टी एक तरफा नहीं जीतने वाली है जैसा 2015 और 2020 के चुनावों में हुआ था, जब उसे 70 में से क्रमश: 67 और 62 सीटें मिली थीं. जो एक्जिट पोल उसकी सरकार बनने का संकेत दे रहे हैं,वे भी उसे 50 से अधिक सीटें जीतते नहीं दिखा रहे. अर्थात उसकी सीटों में भारी कमी आ रही है. इसका अर्थ साफ है कि आम आदमी पार्टी से मतदाताओं का मोहभंग हुआ है और यदि यह मोहभंग थोड़ा सा भी अधिक हुआ तो उसकी सरकार नहीं भी बन सकती है. दूसरे नंबर पर भाजपा है और 10 में से आठ एक्जिट पोल उसकी सरकार बनाते दिख रहे हैं, भले ही उसे 40 सीटों के आसपास ही मिलें. तब 26 साल बाद भाजपा की दिल्ली की सत्ता में वापसी होगी. हालांकि, ये सिर्फ संकेत हैं क्योंकि एक्जिट पोलों की विश्वसनीयता मिली-जुली रही है,कभी वे वास्तविकता के नजदीक तो कभी बहुत दूर रहे हैं. कांग्रेस इस बार भी कहीं मुकाबले में नहीं है. दो बार से उसका एक भी उम्मीदवार नहीं जीत पा रहा है. इस बार भी कोई एक्जिट पोल एक तो कोई अधिकतम तीन सीटें जीतने की संभावना बता रहे हैं. यह नहीं के बराबर है. कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव प्रचार में भाग लिया, रैलियां और रोड शो किए लेकिन मतदाताओं पर उसका असर नहीं पड़ता दिखा.
आम आदमी पार्टी और चुनाव आयोग
चुनाव आयोग के ताजा आंकड़ों के अनुसार कुल 60 दशमलव 44 प्रतिशत मत पड़े. अंतिम अपडेट आने तक इसमें कुछ बढ़ोतरी भी हो सकती है. लेकिन इस बार पिछले तीन चुनावों से सबसे कम मतदान हुआ. छिटपुट वारदातों और आरोपों को छोड़ मतदान अपेक्षाकृत शांत रहा. आम आदमी पार्टी ने मतदान के एक दिन पहले चुनाव आयोग से मिल कर यह शिकायत की कि भाजपा ईवीएम में हेरफेर कर दस प्रतिशत वोटों को अपने पक्ष में कर सकती है. उसने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा यह भी कोशिश कर रही है कि आप के मतदाता वोट न डाल सकें. उसने अपने आखिरी हथियार के रूप में यह भी कहा कि यदि भाजपा सत्ता में आई तो झुग्गी वालों को भगाकर उनकी जमीन पर कब्जा कर लेगी.
यह एक किस्म से उन्हें भड़काने की भी कोशिश थी. उसने यहां तक कहा कि भाजपा की सत्ता वाले राज्य हरियााणा से यमुना में जहर मिला पानी दिल्ली भेजा जा रहा है. चुनाव के पहले वोट काटने और बढ़वाने के आरोप तो लगे ही थे. ऐसे आरोप आम आदमी पार्टी की हताशा के ही परिणाम हैं. ईवीएम पर आरोप हर वह पार्टी लगाती है जो चुनाव हार जाती है या हारने वाली होती है. केजरीवाल पता नहीं यह क्यों भूल जाते हैं कि तीन बार वह ईवीएम से हुए चुनाव में ही जीत कर सत्ता में आए हैं. वह हताशा में ऐसा कह रहे हैं. इससे यह लगता है कि वह यह भलीभांति जान गए हैं कि इस बार वह चुनाव जीतने नहीं जा रहे हैं.
चुनाव प्रचार और मतदान के दिन इस बात के संकेत मिले कि आम आदमी पार्टी के कट्टर समर्थक ऑटो और झुग्गी वाले भी उन्हें वोट नहीं दे रहे हैं. उनका आम आदमी पार्टी से मोहभंग होता दिखा. उनका कहना है कि केजरीवाल ने जो वादे किए थे,उन्हे पूरे नहीं किए. देखना होगा कि आठ फरवरी को किस पार्टी के भाग्य का सूरज उगता है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]


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