भारत की जनसंख्या दुनिया में अभी सबसे अधिक है. उसकी तुलना में हमारा स्वास्थ्य संबंधी ढांचा और उसकी चुनौतियां थोड़ी अधिक हैं. भारत अपनी जीडीपी का जितना प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करता है, उसे बहुत खराब नहीं तो आदर्श भी नहीं कह सकते हैं. 1 फरवरी को अंतरिम बजट पेश किया गया, उससे लोगों को बहुत सी उम्मीदें रही होंगी. अंतरिम बजट के संदर्भ में और दुनिया के अन्य देशों से भारत की तुलना की जाए तो भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर किया जा रहा खर्च कम है. हालांकि, यह बढ़ रहा है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है. 


बढ़ रहा है खर्च, बहुत कुछ करना बाकी


भारत में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और खर्च दोनों में बढ़ोतरी हो रही है और ये बढ़ोतरी भारत की वर्तमान जनसंख्या की आवश्यकताओं के अनुसार है. भारत की जनसंख्या का एक महत्वपूर्ण पहलू युवा जनसंख्या का है, जिसको हम डेमोग्राफिक डेविडेंट भी कहते हैं. इस पर सभी को ध्यान देने की आवश्यकता है. भारत में लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या 25 वर्ष से कम उम्र की है. इसलिए इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि 25 वर्ष तक उनका स्वास्थ्य कैसा है और 25 साल के बाद उनका स्वास्थ्य कैसा होगा, उन चीजों को ध्यान में रख कर ही अंतरिम बजट तय किया गया है. 2021-22 के बजट में 96 हजार करोड़ का बजट होता था और वही 2024-25 में 1 लाख 60 हजार करोड़ का बजट आया है.



ये एक बहुत ही बड़ा बदलाव है जिसे देश की जनसंख्या को ध्यान में रख कर बनाया गया है. यह बजटिंग हमारी युवा जनसंख्या को ध्यान में रखकर, महिला जनसंख्या को ध्यान में रखकर किया गया है. भारत अपने कुल बजट का 2.35 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च कर रहा है और अगर वैश्विक स्तर पर भी देखें तो यह काफी अच्छा माना जाएगा. यह तो केवल सरकार का खर्च है, इसके अलावा हमारा निजी क्षेत्र है, हमारी आयुष्मान भारत योजना है, हेल्थ अवेयरनेस सेंटर हैं. ये सब हमारी स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं को ही पूरा करने के लिए हैं और हम सक्षमता की तरफ बढ़ रहे हैं. 


सर्वाइकल कैंसर के टीके का बजट 


अंतरिम बजट के संदर्भ में अगर देखें तो सरकार ने जाहिर है कि खर्च बढ़ाया है. सर्वाइकल कैंसर जैसी बीमारी पर पैसा खर्च करना या उस मद में डालना बहुत ही आवश्यक है. खासकर, 9 से 14 वर्ष की बच्चियों के लिए सर्वाइकल कैंसर के लिए बजट तय किया गया, जिसे बहुत ही युवा आबादी कहा जाता है. यह अंतरिम बजट में है. दूरगामी कदम है. अगर ये आगे पूर्ण बजट में भी होगा तो यह एक ऐतिहासिक कदम होगा, क्योंकि ये बच्चियां ही आगे जाकर युवा बनेंगी, ये एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है. यह टीकाकरण बिल्कुल अभिनव सोच हैं. आयुष्मान भारत के दो भाग है, पहला आयुष्मान भारत योजना में हॉस्पिटलाइजेशन के तहत जो प्रतिपूर्ति (री-इम्बर्समेंट)  मिलती है उसका खर्च सरकार उठा रही होती है, इसमें 50 करोड़ से ज्यादा लोग शामिल हो चुके है.


दूसरा वो पार्ट है, जो हेल्थ अवेयरनेस या स्वास्थ्य जागरूकता के केंद्र हैं. जहां पर क्यूरेटिव सर्विसेज, प्रिवेंटिव सर्विसेज दी जाती है, जैसे वैक्सीनेशन, बच्चों का टीकाकरण, एंटी नेटल या पोस्ट नेटल केयर, टीबी के मेडिसिन आदि हैं. ये सब उन स्वास्थ्य केंद्रों से दिये जा रहे है जिसे अरबन प्राइमरी हेल्थ सेंटर या रूलर प्राइमरी हेल्थ सेंटर, जिला अस्पताल, मेडिकल कॉलेज के रूप जाना जाता है. ऐसी सेवाएं जिसमें बहुत ज्यादा समय लगता है और खर्च अधिक होता है उसे आयुष्मान भारत के द्वारा कवर किया जाता है. आयुष्मान भारत योजना सरकार की ओर से की गई बहुत ही सकारात्मक पहल है. सबसे बड़ी बात यह है कि लोगों तक इसकी पहुंच बढ़ी है. विभिन्न विभाग, जैसे महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय इत्यादि मिलकर काम करते हैं और इसीलिए यह काफी अच्छा उदाहरण है कि हम कई सारे बिंदुओं को मिलाते हैं. 


हमारी जनसंख्या के लिहाज से सोच 


भारत एक विशाल देश है और यहां की जनसंख्या अधिक है. यदि कोई योजना आती है तो पूरे भारत के लिए आती है और उसको पूरे भारत में कार्यान्वित किया जाता है. वह आबादी के हिसाब से योजना बनाती है और यह देखा जाता है कि पूरे देश में उसका क्या प्रभाव होगा. छोटी बातों से उसे तय कर सकते हैं. जैसे, एक स्कूल है तो देखा जाता है कि वहां 20-25 टीचर हैं या नहीं. अगर वे हैं तो फिर उसे बहुत अच्छा माना जाता है. सरकार यह देखती है कि हर 10 हजार या 20 हजार की जनसंख्या पर एक डॉक्टर है या नहीं. यदि नहीं है तो सरकार उसपर काम करती है कि कैसे अधिक मेडिकल कॉलेज खोला जाए. जो बहुत सारे मेडिकल कॉलेज खोले जाते हैं, उससे यह तय होता है कि हर साल जितने भी डॉक्टर एमबीबीएस की डिग्री लेकर निकलते है, उसकी संंख्या में बढ़ोतरी हो जायेगी. सरकार की कोशिश यह रहती है कि किस तरह अधिक से अधिक संख्या बढ़ाई जाए. जब संख्या बढ़ती है तो पॉप्यूलेशन की तुलना में डॉक्टर की संख्या भी बढ़ेगी और फिर भारत एक अच्छे मुकाम पर पहुंच जायेगा. कई सारे मेडिकल कॉलेज खुल रहे हैं, यह बहुत अच्छी बात है. जब संख्या बढ़ेगी तो जनसंख्या से उसका अनुपात ठीक होगा और देखभाल भी अच्छी होगी.


आगे की राह


स्वास्थ्य किसी एक डिपार्टमेंट या विंग की जिम्मेदारी नहीं है. सरकार और समुदाय दोनों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है. जब तक दोनों साथ में नहीं आएंगे स्वास्थ्य की चीजें आगे नहीं बढ़ सकती है. समुदाय को साथ में लाने के लिए आंगनबाड़ी केंद्र, आशा बहनें, एएनएम हैं, ये सभी लोग सेवाओं को समुदाय से जोड़ने का काम करते है. इसमें महिलाओं को आगे आने की आवश्यकता है और इसमें नारी शक्ति वंदन जैसी योजनाएं मदद कर सकती है. इस बार के बजट में ध्यान देने की बात है कि जेंडर इक्विटी और समानता पर लगभग 36 फीसदी बजट का इजाफा हुआ है.


भले ही यह अंतरिम बजट है, लेकिन यह सोच दूरगामी है. जब तक हम आज बड़ी सोच नहीं रखेंगे, तो उन पर काम कैसे कर सकते हैं? कुछ चीजों पर ध्यान बढ़ाने की जरूरत है. एक तो वैसे लोगों के लिए, जिनके साथ कोई नहीं हैं, जैसे कोई बुजुर्ग हैं, या महिला हैं या बच्चा है, जिनके साथ कोई नहीं है, तो उनके हेल्थ पर हम क्या और कैसे कर रहे हैं, उसकी बजटिंग कैसे हो रही है. दूसरी बात, कुछ बीमारियां ऐसी हैं, जिनमें लंबे समय तक और महंगा खर्च होता है, कुछ ऐसे रोग होते हैं, जिनमें तत्काल बहुत पैसे की जरूरत होती है, कुछ ऐसे रोग होते हैं, जिनमें काफी लंबे समय तक पैसों की जरूरत होती है. तो, इन सभी बिंदुओं पर ध्यान देने की जरूरत है और उस हिसाब से बजटिंग करने की भी!


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