पुणे में भारतीय टीम की बड़ी हार के बाद पिछले कुछ घंटे से कई सवाल बार बार दिमाग में आ रहे हैं. क्या वाकई इस हार पर हायतौबा मचाने की जरूरत है? क्या वाकई ये भूल जाना चाहिए कि इस भारतीय टीम ने हाल के दिनों में बेहतरीन क्रिकेट खेली है? बांग्लादेश को अपेक्षाकृत कमजोर टीम मानकर छोड़ भी दें तो क्या इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के खिलाफ मिली हालिया सीरीज जीत को भूल जाना चाहिए? क्या ये भी भूल जाना चाहिए कि पिछले 19 टेस्ट मैच से भारतीय टीम को दुनिया की कोई भी हरा नहीं पाई?

इस टेस्ट मैच की दोनों पारियों में नाकाम होने से क्या विराट कोहली छोटे बल्लेबाज हो गए? इन सभी सवालों का जवाब अगर ‘नहीं’ में है तो आपमें अभी ‘स्पोर्टिंग स्पिरिट’ या खेल भावना बाकी है. ऐसा इसलिए क्योंकि कोई भी हार अपने साथ कई सबक लेकर आती है. हार बताती है कि बड़ी से बड़ी टीम अगर गलती करेगी तो वो हारेगी.



विराट कोहली की उम्मीद पर कीजिए भरोसा

विराट कोहली ने मैच के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहाकि ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि भारतीय टीम अब कभी हारेगी ही नहीं. जाहिर है कि अगर टीम इंडिया अच्छी क्रिकेट नहीं खेलेगी तो उसे दुनिया की कोई भी टीम हरा सकती है. जैसा कि पुणे में हुआ. आप विराट कोहली के इस बयान से जरूर सहमत होंगे.

विराट कोहली ने कहा कि वो इस हार को लेकर बहुत परेशान इसलिए भी नहीं हैं क्योंकि उन्हें पता है कि उनकी टीम सीरीज में वापसी करेगी. उनके इसी भरोसे पर क्रिकेट के चाहने वालों की निगाहें हैं, क्योंकि उनका यही भरोसा अब अगले तीन टेस्ट मैचों में असलियत की कसौटी पर जांचा जाएगा. समझदारी इसी में है कि भारतीय टीम पुणे में हुई गलतियों को समझ ले.



गेंद का घुमाव नहीं पहले गेंद की लाइन पकड़ो

भारतीय बल्लेबाजों के लिए ये एक बहुत बड़ी सीख है. क्रिकेट के जानकार हमेशा कहते हैं कि स्पिन गेंदबाजों के खिलाफ कामयाबी का सीधा फॉर्मूला ये है कि उनकी गेंद के घुमाव से पहले ‘लाइन’ को समझ लिया जाए. जो बल्लेबाज गेंदबाज की ‘लाइन’ का सही अंदाजा लगा लेगा उसके लिए बल्लेबाजी करना आसान हो जाएगा. गेंदबाज की ‘लाइन’ से सीधा मतलब है कि उसके हाथ से गेंद निकलने के बाद गेंद को समझ लेना.

पुणे में भारतीय बल्लेबाज यही गलती कर गए. उन्होंने गेंद की ‘लाइन’ की बजाए उसके ‘टर्न’ को पकड़ने की कोशिश की. जिसका नतीजा ये हुआ कि स्टीव ओकैफी जैसे स्पिनर ने 12 विकेट चटका दिए. पहली पारी में उन्होंने 13.1 ओवर में 35 रन देकर छह विकेट चटकाए, जबकि दूसरी पारी में 5 ओवर की गेंदबाज़ी में 35 रन पर छह विकेट. अब तक के पांच टेस्ट मैच के करियर में स्टीव ओकैफ़ी ने पहले चार टेस्ट में सिर्फ 14 विकेट लिए थे, और अकेले पुणे टेस्ट में 12 विकेट. इस आंकड़ें के साथ वो भारत के दौरे पर सबसे कामयाब स्पिनर बन गए.

32 साल के इस बाएं हाथ के आर्थोडॉक्स स्पिनर को जब टीम में चुना गया था तब महान स्पिनर शेन वॉर्न खुश नहीं थे लेकिन आंकड़ों के मामले में आज वो शेन वॉर्न से बेहतर नजर आएंगे. तस्वीर का दूसरा पहलू भी इसी बात से जुड़ा है. ऑस्ट्रेलिया के स्पिनरों से उलट भारतीय स्पिनरों को कामयाबी कम मिली. आर अश्विन और रवींद्र जडेजा को कुल 12 विकेट मिले. इन दोनों स्पिनरों ने बड़ी गलती ये कि इनका ध्यान गेंद को ज्यादा से ज्यादा घुमाने पर ही लगा रहा. इनकी गेंद इतनी ज्यादा ‘टर्न’ हो रही थी कि ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाजों को ज्यादा दिमाग नहीं लगाना पड़ा. इसे ऐसे समझना होगा कि जब गेंद जरूरत से ज्यादा घूमने लगेगी तो बल्ले का किनारा लगना मुश्किल होगा. जैसा पुणे में दिखाई दिया.

अगर विकेट सिर्फ ‘टर्न’ करने से मिलना होता तो रवींद्र जडेजा इस टेस्ट मैच में सबसे कामयाब गेंदबाज होते क्योंकि उनका गेंद सबसे ज्यादा ‘टर्न’ हो रहा था. विराट कोहली ने मैच के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बात का जिक्र भी किया.

सीरीज अभी बाकी है...

सीरीज में अभी तीन टेस्ट मैच खेले जाने बाकी हैं. जो बैंगलोर, रांची और धर्मशाला में खेले जाने हैं. इन तीनों टेस्ट सेंटर पर बहुत ज्यादा घुमावदार विकेट मिलने की संभावना नहीं है. टेस्ट मैच के पहले कुछ सेशन में गेंद और बल्ले का मुकाबला बराबरी का होगा.

गेंदबाज और बल्लेबाज दोनों को कामयाबी हासिल करने के लिए खुद को ‘अप्लाई’ करना होगा. सही मायनों में सीरीज भारतीय टीम के लिए सीरीज अब अगले टेस्ट मैच से शुरू हो रही है. जहां उन्हें मैदान में वापसी करनी है. अपनी साख के मुताबिक प्रदर्शन करना है. ये दिखाना है कि सिर्फ एक टेस्ट मैच हार जाने भर से उनके भरोसे को नहीं तोड़ा जा सकता है. मुश्किल परिस्थितियों में एकजुटता के साथ मैदान में कैसे उतरा जाता है. यूं भी भारतीय टीम ये कारनामा पहले भी कर चुकी है. जब सीरीज का पहला मैच गंवाने के बाद उसने वापसी की हो. जरूरत है तो बस पूरी टीम को टेस्ट मैच की जरूरतों के मुताबिक खुद को ‘अप्लाई’ करने की.