केरल में एर्नाकुलम जिले में कोच्चि के पास कलमस्सरी में एक कन्वेंशन सेंटर में 29 अक्टूबर को विस्फोट हुआ. इसमें तीन लोगों की मौत हो गई है और 50 से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं. जांच एजेंसियों की तरफ से इसकी अलग-अलग तरीके से जांच की जा रही है.


सबसे बड़ी बात ये है कि किसी भी आतंकी घटना का मूल्यांकन इस आधार पर नहीं होता है कि उसमें कितने लोगों की दु:खद मृत्यु हुई या कितने लोग घायल हुए. इसकी गंभीरता को उसके पीछे की सोच, उसकी तैयारी, वारदात वाली जगह और घटना को अंजाम देने वाली की मानसिकता किस तरह की थी, इस आधार पर होता है.


इसमें अगर हम इस बात को जोड़ लें कि इजरायल-हमास युद्ध के बाद पूरे देश का वातावरण कैसा बनाया गया है, विशेषकर केरल में क्या-क्या हो रहा है, तब इसकी गंभीरता ज्यादा समझ में आएगी. कलमश्शेरी में एक कन्वेंशन सेंटर में जो विस्फोट हुआ है, वहां रविवार को ईसाई समूह ‘यहोवा के साक्षी’ की प्रार्थना सभा आयोजित की गई थी. इसमें क़रीब दो हज़ार लोग उपस्थिति थे. कल्पना कीजिए कि अगर यह विस्फोट ज़्यादा तीव्र होता या ठीक प्रार्थना के बीच विस्फोट होता, तो यह कितनी बड़ी घटना होती. हमारे देश में या कहीं भी एक भी व्यक्ति का इस तरह के किसी विस्फोट में मारा जाना चिंता का कारण होना चाहिए. इसके संकेत को समझना चाहिए.



पुलिस ने डॉमिनिक मार्टिन नाम के शख्स को गिरफ्तार कर लिया है. केरल ब्लास्ट के बाद खुद ही सरेंडर करने वाले मार्टिन को पुलिस ने यूएपीए और एक्सप्लोसिव एक्ट से जुड़ी धाराओं में गिरफ्तार किया है. उसका वीडियो भी टीवी पर चल रहा है, जिसमें वो कह रहा है कि मैं यहोवा समुदाय से 16 वर्षों तक जुड़ा रहा हूं. मैंने देखा है कि इसमें देश विरोधी विचारों का प्रसार होता है. ये सारे देशद्रोही हैं. मैंने कई बार इनका विरोध किया. इनको अपनी शिक्षा बदलने को कहा, लेकिन ये नहीं माने, तो मेरे पास और कोई विकल्प नहीं बचता था. मैं मानता हूं कि यह संगठन ख़त्म हो जाना चाहिए. देश से इनको समाप्त कर दिया जाना चाहिए.


एनआईए और केरल पुलिस की छानबीन से ही यह स्पष्ट होगा कि डॉमिनिक मार्टिन जो कह रहा है, वो कितना सही है. यह सच है कि हमारे देश में अलग-अलग समदायों, मज़हबों को काम करने की स्वतंत्रता है. बहुत सारे समूहों ने इसका लाभ उठाकर यहां अपनी ताक़त बढ़ाई है, लोगों को अपने साथ जोड़ा है. जबकि उनके विचार देश और समाज के लिए घातक होते हैं.


दूसरी स्थिति जो भारत में पैदा हुई है, एक समय जो बातें बोलने के बाद देश में तूफान खड़ा होता था, अब उस तरह की बातें, जो समाज में हिंसा या मज़हबी उन्माद पैदा कर सकती हैं, उस प्रकार की बातें अब आम सभाओं में बोली जा रही हैं. उनके विरोध के साथ-साथ उनको समर्थन भी मिल रहा है. ऐसे लोग क्यों बनते हैं.


उदाहरण के लिए, उसी केरल में इस विस्फोट के एक दिन पहले फिलिस्तीन के समर्थन में एक रैली हुई थी, जिसमें वर्चुअली कतर से हमास के नेता खालिद मशाल ने भाषण दिया. उस भाषण में उसने कहा कि भारत से बुल्डोजर, हिन्दुत्व और यहूदीवाद को पूरी तरह से उखाड़ फेंकना है. लड़ाई चल रही है इजरायल के साथ, लेकिन उस व्यक्ति के निशाने पर भारत भी है और वहां उपस्थित लोग उस पर तालियां बजा रहे हैं. इस प्रकार का जब भाषण होता होगा, तो कितनी उत्तेजना पैदा होती होगी. सभी लोग पढ़े-लिखे, समझदार नहीं होते हैं. किसके अंदर क्या भाव पैदा होता होगा, इसकी कल्पना कर सकते हैं.


यह सामान्य विषय नहीं है कि हमास के पूर्व प्रमुख का भाषण हमारे देश में सुना जा रहा है, लोगों के चेहरे ख़ुश दिख रहे हैं और रैली में लोग तालियां बजा रहे हैं. जब से इजरायल और हमास का युद्ध शुरू हुआ है, पूरे भारत में फिलिस्तीन के समर्थन के नाम पर रैलियां हो रही हैं, धरने हो रहे हैं, प्रदर्शन हो रहा है. केरल में सबसे ज़्यादा हो रहा है. सत्तारूढ़ वाम मोर्चा और लोकतांत्रिक मोर्चा  दोनों पक्ष के लोग केरल की रैलियों में भाग ले रहे हैं. वो इजरायल के साथ-साथ भारत की नीतियों को भी निशाना बना रहे हैं.


 



पूरा वातावरण में जब आप केवल गुस्सा पैदा करते हैं, उत्तेजना पैदा करते हैं, तो सिर्फ़ उसी कारण से चिंता नहीं होती है. अलग-अलग कारणों से भी लोगों के भीतर हीनता की भावना पैदा होती है और वो हिंसा पर उतारू हो जाते हैं. हमास-इजरायल युद्ध के बाद देश के वातावरण को देखते हुए जो सूचनाएं हम लोगों के पास आयी थी, केंद्र की ओर से सभी राज्यों, ख़ासकर संवेदनशील राज्यों को विशेष सुरक्षा अलर्ट दिए गए थे. केरल उनमें प्रमुख था क्योंकि पीएफआई की गतिविधियों का मुख्य केंद्र वही था. पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने का सबसे ज़्यादा विरोध केरल में ही हुआ है. पीएफआई के लोग वहां पकड़ने गए हैं.


अगर प्रदर्शन करना ही था, तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए था कि भारत विरोधी बातें नहीं की जाए. इसके विपरीत लगातार रैलियां हो रही हैं. कलमस्सरी विस्फोट से एक दिन पहले ही फिलिस्तीन को समर्थन के नाम पर एक रैली हुई. इसमें कतर से हमास का पूर्व प्रमुख खालिद मशाल ने वर्चुअली भाषण दिया. कल्पना कीजिए कि जो एक आतंकवादी संगठन है, उसका पूर्व प्रमुख बाहर से केरल की एक रैली में भाषण देता है. इस प्रकार के जब भाषण दिए जाते हैं, तो समझ लीजिए कि जो भाषण दिया, उन्हीं कारणों से हिंसा होगी. जब आप उत्तेजना पैदा करते हैं, तो पूरे वातावरण को तनावपूर्ण बनाते हैं. इससे दूसरे लोगों में भी हिंसा करने का भाव पैदा होता है.


इसलिए इस हिंसा का संबंध सीधे तौर पर इजरायल-हमास युद्ध से हो या नहीं हो, परोक्ष रूप से इसे अलग नहीं मान सकते हैं. यह हम सबके लिए सीख है कि हमारे देश में नेता, पत्रकार, एक्टिविस्ट कुछ भी लिखने-बोलने से पहले सौ बार सोचे कि हम करने क्या जा रहे हैं. इस तरह का वातावरण बनाकर रखेंगे, तो भविष्य में यह हमारे लिए ख़तरनाक हो सकता है.


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]