किसान आंदोलन के बीच बड़ा सवाल- कैसे बन सकती है बात, बीच का रास्ता क्या हो सकता है?
कृषि कानून को लेकर किसानों का सातवें दिन भी आंदोलन जारी है. किसानों ने ठान लिया है कि जब तक सरकार कानून को वापस नहीं लेती तब तक वो अपना आंदोलन जारी रखेंगे.
मोदी सरकार के साथ किसानों की बातचीत का पहला दौर बेनतीजा रहा. जिसकी उम्मीद भी की जा रही थी. जब दोनों पक्ष अपनी-अपनी मांगों पर अड़े हुए हों तो पहली मुलाकात में बात नहीं बना करती. वैसे भी पहली मुलाकात में मोदी सरकार किसानों को टटोल रही थी कि आखिर इनके पास तर्क क्या हैं, कितनी तैयारी है, कितना झुकाया जा सकता है और कितना पटाया जा सकता है.
उधर किसान नेताओं ने तो ठान रखी है कि तीनों कानूनों को रद्द करवा कर ही वापस लौटेंगे. मोदी सरकार ने उन्हें एक चार-पांच सदस्यों की कमेटी बनाने को कहा जिसे किसानों ने ठुकरा दिया. किसानों को लगा कि कमेटी बनेगी तो पन्द्रह बीस दिन का समय भी देना पड़ेगा, फिर कमेटी की मियाद बढ़ा दी जाएगी जैसा कि होता है. यानि सरकार समय खरीद रही है और किसानों के पास समय नहीं है. सवाल उठता है कि अब क्या होगा.
कॉरपोरेट जगत पंजाब में बनवा रहा है कोल्ड स्टोरेज- किसान
पहली मांग जो आवश्यक वस्तु अधिनियम खत्म करने से जुड़ी है वह यह है कि इसे रद्द किया जाए. वहीं सरकार इन्हें समझा सकती है कि उन्हें इस कानून से नुकसान होने वाला नहीं है. वैसे भी सरकार साफ कर चुकी है कि अनाज के दाम सौ फीसद बढ़ने और दलहन तिलहन के दाम पचास फीसद बढ़ने की सूरत में अधिनियम काम करने लगेगा. हाल ही में सरकार ने प्याज की कीमतों में इजाफा होने के बाद स्टाक सीमा फिर से लगा दी थी. इससे किसानों को फायदा ही हुआ था. फायदा अगर नहीं भी हुआ तो कम से कम नुकसान नहीं हुआ. अभी भी कोल्ड स्टोरेज है जहां व्यापारी भी अपना सामान रखते हैं और किसान भी.
अब रातों रात तो कोल्डस्टोरेज खुलने वाले नहीं है जिसमें व्यापारी सारा माल सस्ते में खरीद लेगा. लेकिन किसानों का कहना है कि इस समय देश में पांच हजार कोल्ड स्टोरेज और इनकी जितनी कुल क्षमता है लगभग उतनी ही क्षमता का कोल्ड स्टोरेज कॉरपोरेट जगत पंजाब में बनवा रहा है. सरकार इस मुद्दे पर किसानों को समझाने में कामयाब हो सकती है कि अधिनियम फिर आया तो इंस्पेक्टर राज फिर से आएगा, लाइसेंस राज फिर से आएगा.
दूसरा कानून अनुबंध की खेती को लेकर है
सरकार का कहना है कि करार में खरीददार ने गड़बड़ी की तो किसान एमडीएम या कलेक्टर की अदालत में जा सकता है. किसानों का कहना है कि एसडीएम कलेक्टर के दफ्तर में करोड़पति कॉरपोरेट की ही चलेगी. वैसे भी देश में तीन करोड़ मुकदमें चल रहे हैं. अब किसान खेती करेगा, बीज की लाइन में लगेगा, खाद की लाइन में लगेगा या अदालतों के चक्कर काटता फिरेगा. हालांकि यह बात भी सच है कि किसान अभी भी पेप्सी जैसी कंपनियों के साथ अनुबंध की खेती कर रहे हैं. उनका दिया आलू का बीज ही इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन किसानों के डर को दूर किया जाना जरुरी है. मामला बिगड़ने पर किसान को ज्यादा परेशान नहीं होना पड़े और उसके साथ इंसाफ हो सके इसके लिए इस कानून में कुछ संशोधन किये जा सकते हैं. संशोधन भी किसानों की सहमति से ही किए जाएं तो बेहतर होगा.
जहां तक मंडियों के खत्म होने की जो आशंका है उसके खिलाफ सरकार तर्क दे सकती है कि अभी दूध, मुर्गी पालन और मछली पालन में मंडी की जरुरत नहीं पड़ती. यहां का 90 फीसद उत्पाद सीधे उपभोक्ता खरीदता है और यह क्षेत्र हर साल पांच से दस फीसद की रफ्तार से तरक्की कर रहा है. लेकिन किसानों को डर है कि मंडी के बाहर बिना टैक्स के माल बेचने से मंडियों की हालत खराब होती जाएगी. शुरु-शुरु में व्यापारी और कॉरपोरेट लालच देगा लेकिन फिर मंडियों की हालत इतनी खराब हो जाएगी कि बंद करने की नौबत आ जाएगी.
प्रधानमंत्री एक लाइन में लिखकर किसानों को दे दें कि एमएसपी खत्म नहीं होगा- अजय सिंह चौटाला
किसान बीएसएनएल से तुलना कर रहे हैं जिसे निजी मोबाइल कंपनियों ने अधमरा कर दिया है. यहां सरकार अभी तो आश्वासन ही दे रही हैं. वैसे एक सच यह है कि मंडी टैक्स से राज्य सरकारों को जो राजस्व मिलता है उसका इस्तेमाल किसानों के हक में ही किया जाता है. कुछ राज्य बिजली माफ कर देते हैं कुछ सब्सिडी देते हैं. असली मसला एमएसपी पर लिखित रुप से देने का है. सरकार चाह कर भी ऐसा नहीं कर सकती. यह भी सच है कि एमएसपी भी आरक्षण जैसा मसला है जिसे कोई भी सरकार वापस नहीं ले सकती. अब हरियाणा में खट्टर सरकार का समर्थन कर रही जजपा के दुष्यंत चौटाला के पिता अजय सिंह चौटाला का कहना है कि जब प्रधानमंत्री से लेकर कृषि मंत्री बार-बार कह रहे हैं कि एमएसपी को बंद नहीं किया जाएगा तो एक लाइन लिख कर क्यों नहीं दे देते. वैसे देखा जाए तो मामला ही भी एक लाइन का. लेकिन इसी में सारा राज भी छुपा है और राजनीति भी.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)