वक़्त के शो-केस में चुप-चाप खड़ा होकर समझिए कि महज पांच दिन में समय के फेर ने कितनी करवटें बदल दीं. करीब दो महीने से किसान आंदोलन ने दिल्ली के कई बॉर्डरों पर डेरा जमाया हुआ है. आंदोलन शांतिपूर्वक चल रहा था. आंदोलन तमाम सुर्खियां भी देश और विदेश में बटोर रहा था. लेकिन 26 जनवरी के दिन जो हुआ उसके बाद आंदोलन वक्त की धुंध में छुपने लगा.


26 जनवरी के दिन लाल किला पर शर्मनाक कांड
26 जनवरी के दिन अचानक किसान ट्रैक्टर रैली दिल्ली में उपद्रव का दूसरा नाम बन गया. लाल किला पर जो हुआ उसे बार बार लिखना भी मुनासिब नहीं, आप सभी ने देखा, पढ़ा और सुना होगा. इस कांड का असर आगे समझिए.


देश में आक्रोश
आंदोलन देश की भावनाओं से रेत की तरह फिसलने लगा. पूरे देश में इस आंदोलन से जुड़े लोगों के प्रति आक्रोश पनपा. इसका असर यह हुआ कि किसान नेताओं पर धड़ाधड़ एफआईआर दर्ज हुए. किसान संगठनों में बिखराव की खबरें आने लगीं. कुल मिलाकर यह कहिए कि आंदोलन के हाथ से सही वक्त निकल गया था. आंदोलन में अब ठहराव नहीं था, फिसल रहा था. आलम यह हुआ कि चिल्ला बॉर्डर खाली हो गया. गाजीपुर से भी किसान वापस लौटने लगे थे.


राकेश टिकैत का रोना
गाजीपुर की तरफ पुलिस मुड़ चुकी थी, मार्च कर रही थी. यूपी सरकार ने बसों को खड़ा कर दिया. बिजली, पानी काट दिया गया. कुल मिलाकर आंदोलन का तंबू उखड़ना शुरू हो गया. कि अचानक राकेश टिकैत रोते हुए आंदोलन खत्म नहीं करने का फरमान सुनाते हैं. आत्महत्या की धमकी देते हैं, एलान करते हैं कि पुलिस गोली चलाए हम नहीं हटेंगे. केंद्र सरकार पर तमाम आरोप लगाते हैं. एक स्थानीय बीजेपी विधायक पर कुछ आरोप लगाते हैं. फिर वक्त तेजी से करवट बदलता है. हर विपक्षी दल अब राकेश टिकैत के साथ खुलकर सहानुभूति दिखा रहे हैं.


नरेश टिकैत की पंचायत
कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली के गाजीपुर बार्डर पर चल रहे धरने को लेकर राजनीति तेज हो गई है. अब अधिकांश विपक्षी दल जो 26 जनवरी के बाद खुद कन्नी काट रहे थे, एक बार फिर खुलकर समर्थन करने लगे. रात भर गहमागहमी का दौर जारी रहा. उधर आज मुजफ्फरनगर में नरेश टिकैत ने पंचायत का आयोजन किया है. फैसला जो भी हो, लेकिन 26 जनवरी के बाद बिखरा आंदोलन फिर एक बार एकजुट होने लगा है.


अब आंदोलन जारी
सिंघु बॉर्डर पर भी झड़प हुई.. फिर भी आंदोलन जारी है. मुजफ्फरनगर की पंचायत ने पश्चिमी यूपी में एक बार फिर आंदोलन को गति दे दी है. भारी भीड़ जुटी है. कुल मिलाकर महज पांच दिन में वक्त अपनी हर फितरत दिखा रहा है.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)