महत्वाकांक्षा नहीं 'जेल जाने के डर' ने कराई अजीत पवार से बगावत, इसी 'डर' ने बदली महाराष्ट्र की सियासत
महाराष्ट्र की राजनीति में अचानक से पिछले दिनों बड़ा उलटफेर हुआ. चाचा शरद पवार का साथ छोड़कर भतीजे अजीत पवार ने भाजपा-शिवसेन गठबंधन से हाथ मिला लिया और वहां मानो भूचाल ही ला दिया. उसके बाद शरद पवार ने भी तीन नेताओं को पार्टी से निकाल दिया और अपने मेंटॉर यशवंतराव चह्वाण के जिले में रैली कर शक्ति-प्रदर्शन किया. बहरहाल, अजीत पवार के बाहर जाने के पीछे कई लोग चाचा से नाराजगी तो कई लोग उनकी अति-महत्वाकांक्षा को वजह बता रहे हैं. इस बीच लोग यह भूल जा रहे हैं कि 'जेल जाने के डर' ने भी अजीत पवार के दल-बदल में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और असली कारण तो यही है.
अजीत पवार का यही होना था
महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में, हरेक व्यक्ति इस बात को जानता था कि आज नहीं तो कल अजीत पवार राकांपा से निकल जाएंगे. अजीत पवार ने विद्रोह कर उन लोगों को सही साबित किया और ‘एक’ उप-मुख्यमंत्री के तौर पर शिवसेना-भाजपा गठबंधन सरकार में शामिल हुए. (मैं यहां ‘एक’ उप-मुख्यमंत्री लिख रहा हूं, क्योंकि महाराष्ट्र में अब दो उप-मुख्यमंत्री हैं). अब हरेक व्यक्ति अजीत पवार के विद्रोह के कारणों पर सोच रहा है. निस्संदेह, वह अतिशय महत्वाकांक्षी थे, लेकिन मेरी नजर में वह तो द्वितीयक कारण है. दल-बदल का प्राथमिक कारण तो उनके जेल जाने के डर में छिपा था.
अजीत पवार के सरकार में शामिल होने के बाद से ही फडणवीस का 2019 का एक चुनाव-प्रचार का वीडियो वायरल हो रहा है. फिल्म शोले के मशहूर डायलॉग की नकल करते फडणवीस बोल रहे हैं, ‘मैं अगर सत्ता में लौटा तो अजीत दादा जेल जाएंगे और वह चक्की पीसिंग एंड पीसिंग एंड पीसिंग’. हालांकि, कुछ ही दिनों बाद फडणवीस को अजीत पवार के साथ मंत्री पद की शपथ लेते देखा गया. 2019 में भी अजीत पवार ने एनसीपी से विद्रोह कर भाजपा से हाथ मिलाया था. वैसा करने की जरूरत नहीं थी, क्योंकि महाविकास आघाड़ी को सत्ता में आना ही था और वह डिप्टी सीएम बनाए ही जाते (कुछ दिनों बाद वह बने भी, जब विद्रोह के असफल रहने पर वह वापस पार्टी में लौट आए).
दरअसल, अजीत पवार ने विद्रोह किया क्योंकि करोड़ों के सिंचाई-घोटाले की जांच की आंच उनको झुलसा रही थी. जिन तीन दिनों तक, फडणवीस और अजीत पवार ने सत्ता साझा की, अजीत पवार को भ्रष्टाचार-निरोधी ब्यूरो ने क्लीन चिट दे दी. विद्रोह असफल रहा, लेकिन अजीत पवार पर मुकदमा न चला. हालांकि, चीनी सहकारिता का एक और मामले में अजीत पवार का नाम आया था. सरकार के पास जांच एजेंसियों को फिर से मामला खोलने का आदेश देने का अधिकार था और यही बात अजीत पवार के खेमे को चिंतित कर रही थी.
जेल जाने के डर से बदला नेताओं का दिल
अगर आप उन नेताओं के नाम को देखें, जिन्होंने अजीत पवार के साथ विद्रोह किया है, तो आप पाएंगे कि उनमें से अधिकांश के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियां आपराधिक मामलों की जांच कर रही है. हालिया वर्षों में, ईडी और सीबीआई ने महाविकास आघाड़ी के आधा दर्जन नेताओं जैसे छगन भुजबल, समीर भुजबल, अनिल देशमुख, नवाब मलिक और संजय राउत को गिरफ्तार किया है. इसलिए, इन विद्रोहियों के ऊपर कैद का खतरा तो वास्तविक था. हालांकि, अब भाजपा के साथ हाथ मिलाने के बाद वे राहत पा सकते हैं.
यह महाराष्ट्र के लिए पुनर्मंचन (देजा वू) है. पिछले साल, शिवसेना से कई ने विद्रोह किया था, जिनके खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों ने मुकदमे दायर किए थे, लेकिन सत्ता में आते ही, उनके इन एजेंसियों द्वारा ‘परेशान’ करने की कोई खबर नहीं है. अजीत पवार को कैद के डर ने भाजपानीत गठबंधन में शामिल होने को बाध्य किया है, लेकिन इसमें उनका घाटा भी है. उनके पास वह आजादी और अधिकार नहीं रहेगा, जो एनसीपी में था. आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भी, भाजपा का हाथ ही सीटों के समझौते में ऊपर रहेगा. कुल मिलाकर, महाराष्ट्र की राजनीति में अजीत पवार का वजन घट ही गया है. हो सकता है कि राजनेताओं का जेल में ‘खास खयाल’ रखा जा रहा है, लेकिन वैसी जगह कोई रहना नहीं चाहता. जेल जाने के डर ने महाराष्ट्र और देश की राजनीति में खासी भूमिका निभाई है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]