'आईपीएस डी रूपा और आईएएस सिंधुरी का सोशल मीडिया पर झगड़ा दुर्भाग्यपूर्ण, केंद्र सरकार बनाए नए नियम'
कर्नाटक में आईपीएस डी रूपा मौदगिल और आईएएस रोहिणी सिंधुरी के बीच का विवाद सोशल मीडिया पर आ गया है. ये दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. ऐसे कर्नाटक या कहें दक्षिण भारत के लिए ये नई बात नहीं है.
मुझे लगता है कि कर्नाटक में दो महिला अधिकारियों के बीच का झगड़ा, उसी तरह का है, जैसे पहले पानी लेने के लिए नल के पास महिलाएं झगड़ती थीं. इस तरह का झगड़ा ब्यूरोक्रैसी में भी आ गया है. इस तरह के व्यवहार से प्रशासन चलाने में राज्य सरकार के लिए परेशानियां बढ़ेंगी.
आईपीएस डी रूपा को ईमानदार माना जाता है, लेकिन सोशल मीडिया में दोनों का इस तरह का व्यवहार कहीं से भी उचित नहीं है. यहीं वजह है कि मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने दोनों का तबादला कर अलग-अलग कर दिया है. दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और तेलंगाना में आईएएस और आईपीएस के बीच टकराव बहुत ज्यादा है.
आईएएस-आईपीएस कई गुटों में हैं बंटे
आईएएस-आईपीएस के व्यवहार में जो गिरावट आ गया है, उसे मैं मानता हूं कि आने वाले दिनों में राज्य के प्रशासन पर असर पड़ेगा. कर्नाटक के मुख्यमंत्री को इसे राजनीतिक तौर से गंभीरता से लेना पड़ेगा क्योंकि कांग्रेस, बीजेपी और जेडीएस के नेता दोनों अधिकारियों के पीछे पड़ेंगे और उन्हें भड़काएंगे. ख़ासकर कांग्रेस के नेता अधिकारियों को उकसाते हैं. ब्यूरोक्रैसी में कम से कम दो सौ आईएएस अधिकारी हैं और दो सौ आईपीएस अधिकारी हैं. इन 400 अधिकारियों में कम से कम 5 से 6 गुट है.
केरल की तरह कर्नाटक में भी हो पाबंदी
मुझे कहने में बिल्कुल संकोच नहीं है कि इसमें पैसे का भी बहुत ज्यादा खेल है. आईएएस रोहिणी सिंधुरी की कुछ पुरुष आईएएस अफसरों के साथ तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर हो जाती है. आईएएस-आईपीएस जैसे सिविल सर्विस के पद काफी गरिमा और गंभीरता वाले हैं. फेसबुक, ट्विटर, इस्टाग्राम आने के बाद अब इनके बीच का विवाद भी सोशल मीडिया पर आने लगे हैं. इन लोगों के बीच का तू-तू, मैं-मैं सोशल मीडिया पर आ गया है. इन परिस्थितियों से टालने के लिए मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को आदेश निकालना चाहिए कि कोई आईएएस-आईपीएस अधिकारी सोशल मीडिया पर नहीं जाना चाहिए. केरल में इस तरह की पाबंदी लागू है. ऐसी ही पाबंदी कर्नाटक में भी लागू होनी चाहिए.
केंद्र सरकार को भी बनाना चाहिए कानून
5जी आने के बाद फिलहाल वो दौर आ गया है कि सोशल मीडिया को लेकर दबाव बढ़ गया है. टेलीविजन और अख़बार के बाद अब सबकुछ सोशल मीडिया के जरिए ही सामने आने लगा है. आईएएस-आईपीएस अधिकारियों के लिए सोशल मीडिया के इस्तेमाल को लेकर केंद्र सरकार को भी कानून बनाना चाहिए. सोशल मीडिया को बहुत ज्यादा महत्व मिल रहा है, जो सही नहीं है. भविष्य में सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ने से समाज में टकराव बढ़ सकता है. 40 साल की पत्रकारिता के अनुभव में मैंने ऐसा कभी नहीं देखा, जैसा कर्नाटक में दो महिला अधिकारी आपस में सोशल मीडिया के जरिए लड़ रहे हैं. केंद्र सरकार को नए नियमों के जरिए ऐसे विवाद पर अंकुश लगाना चाहिए.
भविष्य में सोशल मीडिया पर सरकारी अधिकारियों की ओर से अपने काम के प्रचार से उनके बीच आपसी खींचतान बढ़ने की भी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. सब कुछ सोशल मीडिया में पोस्ट करने की प्रवृति बढ़ते जा रही है. इसलिए आईएएस-आईपीएस के लिए गाइडलाइन्स का स्पष्ट होना बहुत जरूरी है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)