भोपाल से विदिशा होते हुए अशोकनगर जिले की सीमा आने से पहले ही रोड पर पड़ता है बिसनपुर गांव. तकरीबन 1500 कच्चे पक्के मकानों वाला ये गांव बुरे हाल में दिखा. एक तरफ नदी तो दूसरी तरफ बड़े से नाले से घिरा ये गांव एक दिन तक पानी में डूबा रहा. अब जब पानी उतरा है तो पूरा गांव ऐसा गीला लग रहा है जैसे किसी ने हमारे आपके ऊपर बाल्टी भरकर पानी डाल दिया हो और फिर पोंछने को कुछ ना दिया हो.


बाढ की तबाही सड़क से ही नजर आने लगती है. सड़क किनारे ही किसान श्रीदास का मकान था. इसलिए कि वो शुक्रवार को उफनती नदी के पानी में तहस नहस हो गया. मकान के नाम पर अब मलबा बाकी है. इस बर्बाद मलबे को बरसते पानी में हटाकर घर गृहस्थी की चीजां को निकालने की कोशिश श्रीदास का पूरा परिवार कर रहा था. टूटे मकान के मलबे में कहीं टीवी दबा हुआ दिख रहा है तो कहीं पर रसोई में अनाज का सामान तो कहीं भीगे हुए गद्दे और रजाईयां.


श्रीदास बताते हैं कि सुबह आठ बजे के करीब ऐसा पानी आया कि चाय नाश्ता छोड़कर बस किसी तरह हम ही घर के बाहर निकल कर खड़े हो पाए और थोड़ी ही देर में हमारा ये पुश्तैनी चार कमरों का मकान हमारे सामने ही ढह गया. फिर हमें खबर आयी अपने ढोरों की तो वो बेचारे कमर कमर तक पानी में घिरे खड़े थे तो उनको किसी तरह निकाल कर ऊंचाई पर पहुंचाया मगर अब हमारे पास कुछ नहीं बचा है. सब या तो तहस नहस हो गया या फिर बुरी तरह गीला.


"न खाना बचा है न पहनने के लिए कुछ..."


श्रीदास की पत्नी रामबाई कहती हैं कि कल से ही ये गीले कपड़े पहने हैं आटा दाल चावल सब गीला हो गया है कल शाम को कोई खाना दे गया था तो मुश्किल से गले से नीचे उतरा अब फिर सोच रहे हैं बच्चों को क्या खिलाएं. श्रीदास से बात करते वक्त ही हरी कहार आ गए. उघाडे बदन नीचे बस छोटा सा तौलिया लपेटे हुए. टीवी वाले भैया अंदर गांव में भी चलो हमारे घर भी देख लो ऐसे ही टूट गए हैं. अब देखो, न खाना बचा है न पहनने के लिए कुछ. ये तौलिया भी किसी और से मांग कर पहने हुए हैं. बच्चे भूखे हैं कल दिन भर से. पटवारी की राहत तो नहीं आयी मगर हमारे सरपंच कुछ पैकेट दे गए थे तो गुजारा हो रहा है. अब आप टीवी पर दिखा दोगे तो जल्दी मदद मिल जाएगी और टूटे घर बनाने के लिए पैसे भी. गांव वालों के मीडिया पर अभी तक के इस भरोसे पर कुर्बान जाने को मन करता है.


बिसनपुर अशोकनगर की तरफ बढने पर ही सड़क किनारे के खेतों में भारी पानी के आकर गुजर जाने के निशान दिखते हैं. सोयाबीन के छोटे-छोटे पौधे पानी में या तो डूबे हैं या फिर ज्यादा पानी से मुरझाए हुए हैं. सड़के किनारे के घरों में उपर तक से पानी जाने के सबूत दूर से ही दिखते हैं. विदिशा छोड़ घाट बमुरिया चौराहा आता है जो जहां से अशोकनगर जिले की सीमा शुरू हो जाती है. ये छोटा सा सड़क किनारे के गांव पर भी बगल से गुजरने वाली कैथन नदी काल बनकर गुजरी. गांव के कच्चे मकान ढह गए हैं. बृजेश दांगी का मकान सड़क पर ही दिखा जो बाढ में बुरी तरह तहस नहस हो गया था वो बताते हैं कि ज्यादा पानी आया तो हम खेत की तरफ भागे क्योंकि किसान की जान तो फसलों में फंसी रहती है. हमारी संपत्ति तो वही होती है मगर खेत में तो पानी ने बर्बादी की है वहां से आया पानी यहां मकान में घुस गया और बाप दादों के इस पुराने मकान को गिरा दिया. बच्चे पड़ोसी के घर में दो दिन से हैं वहीं खाना-पीना और सोना हो रहा है. 


अब क्या होगा? टीवी का ये सवाल सुनते ही वो चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट लाकर 50 साल के ब्रजेश कहते हैं हमारा क्या होगा साहब जो सबका होगा वो हमारा होगा. कोई हमारा घर ही तो नहीं गिरा अंदर गांव में बहुत घर गिरे और अनाज बर्बाद हुया है.


तो क्या अब सरकारी मदद का भरोसा है? अरे नहीं साहब भगवान का भरोसा है. उसी ने जन्म दिया वही पालेगा हमें और हमारे बच्चों को भी. पानी का क्या है कल था आज नहीं है हम तो यहां हमेशा रहेंगे.


हौसले की दाद!


किसान के हौसले की दाद देते हुए सड़क पर आए तो देखा घाट बमुरिया से अशोकनगर जाने वाला पुल को लकड़ी के बड़े ठूंठ रखकर रोका गया है. उतर कर देखा तो पुल में कोई खराबी नहीं दिखी पानी भी पुल से बहुत नीचे से जा रहा था. ये क्यों बंद कर दिया रास्ता वहां खड़े सिपाही से सवाल किया तो जवाब हमारे साथी स्वदेश जैन का आया जो हमसे मिलने मुंगावली से यहां आ गए थे. सर ये पुल उपर से ठीक है मगर थोड़ा नीचे चलकर देखिए असलियत समझ जाएंगे. पुल के किनारे लगे पत्थरों पर डगमगाते हुए उतरे तो दिखा कि पुल जो सड़क से जोड़ने वाली मिट्टी कैथन नदी जब उफनी तो अपने साथ ले गयी. अब पुल के पाये तो सलामत है मगर किनारे की मिट्टी गायब है. थोडा सा भी बोझ पुल और सड़क के बीच गहरी खाई बना देगा. पुल बंद होने से लोग अब कुनमुनाते हुए मुंगावली होते हुए अशोकनगर जाने को मजबूर हो रहे थे.


सच है कि बाढ ना खेत देखती है न मकान और न ही बड़े पुल और रास्ते. प्रदेश के छह जिले पिछले दिनों भारी बारिश और उसके बाद आयी बाढ की आपदा झेल रहे हैं. अशोकनगर भी उनमें से है जहां पानी ने जनता को परेशान भले ही कर दिया हो मगर हौसले पर जरा भी असर नहीं डाला है ये इतनी देर में ही मैं समझ गया था.