अर्थशास्त्री से प्रधानमंत्री तक... 33 साल के राजनीतिक जीवन में विरोधी भी मनमोहन के हुए कायल
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बुधवार को राज्यसभा सीट और सक्रिय राजनीति से रिटायर हो गए. बढ़ते हुए उम्र और अवस्था को ध्यान में रखकर सक्रिय राजनीति से खुद को अलग कर लिया है. अब उनकी ही सीट पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी आज से उच्च सदन में दाखिल होंगी. मनमोहन सिंह के साथ कुल 54 और नेता राज्यसभा यानी की उच्च सदन से रिटायर हुए. लेकिन मनमोहन सिंह की काफी चर्चा हो रही है.
मनमोहन सिंह एक ऐसे प्रधानमंत्री के तौर पर याद किए जाएंगे जिन्होंने आम आवाम को सशक्त किया. अगर हम विकास के आधार पर बात करें तो इससे पहले भी राजीव गांधी की सरकार में काफी विकास हुआ. इंदिरा गांधी के जमाने में भी बहुत विकास हुआ, लेकिन मनमोहन सिंह इसलिए विशेष है कि क्योंकि उन्होंने लोगों को एमपावर किया है. सरकार के पास जो शक्ति होती है उसे वो अपने पास रखने के बजाय लोगों में उसका विकेंद्रीकरण किया. पूरी दुनिया में शायद भारत ही उस दौर का एकमात्र ऐसा देश है, जहां पर इस तरह के प्रयोग हुए. भारत के अलावा किसी और देश में उस तरह के प्रोग्रेसिव कानून नहीं पास किए, जैसा कि मनमोहन सिंह जी के जमाने में हुआ. जिसमें राइट टू इनफार्मेशन भी आता है. राइट टू इनफार्मेशन ने लोगों को एंपावर किया.
मनमोहन सिंह ने दिए कई अहम कानून
राइट टू इनफार्मेशन के जरिये व्यक्ति पूछ सकता है कि प्रधानमंत्री या बड़े अधिकारी ने कहां कितना खर्च किया, पिछले साल कितना खर्च किया, यात्रा पर या कितने महंगा वह खाना खाए, तो ये एक तरह क एंपावरमेंट था, जो कि मनमोहन सिंह की देन है. इसके अलावा राइट टू फूड, राइट टू एजुकेशन का कानून उन्होंने देश को दिया. हालांकि राइट टू एजुकेशन उस तरह से लागू नहीं हो पाया, जैसे उन्होंने कहा था. जिसमें प्राइवेट स्कूल को वहां के 25% निर्धन गरीब परिवार के लोगों को एडमिशन देना था, लेकिन वो कानून उस तरह से कार्यान्वित नहीं हो पाया.
लेकिन उन्होंने एक बुनियाद रखी है. आगे आने वाली कोई भी जो प्रगतिशील सरकार होगी, उसको लागू करेगी तो उस समय उसका श्रेय मनमोहन सिंह को ही जाएगा. ग्रामीण भारत को बदलने के लिए उन्होंने मनरेगा का जैसा कानून दिया. ग्रामीण भारत को बदलने के लिए मनरेगा एक शानदार उदाहरण है.मनरेगा के आने के बाद लोगों का पलायन रुक गया. बिहार और यूपी के अलावा अन्य राज्यों के लोग मजदूरी करने के लिए लोगों को मुंबई दिल्ली और कई अन्य जगहों पर जाना पड़ता था. उनके पास रोजी रोटी की कोई व्यवस्था नहीं थी. माइग्रेशन बड़े लेवल पर रुका था.
मनमोहन सिंह को माइक्रो लेवल पर समझने की जरूरत
मनमोहन सिंह को बहुत माइक्रो लेवल पर समझने की जरूरत है. देश में किसी भी सरकार हो या किसी भी पार्टी की सरकार हो, अगर उनके नीतियों पर सरकार आगे बढ़ती हैं तो आप आगे जाएंगे. अगर देखा जाए तो मनमोहन सिंह के सबसे कट्टर क्रिटिक मौजूदा प्रधानमंत्री रहे हैं. उन्होंने पार्लियामेंट तक में मनरेगा की आलोचना की थी. उन्होंने यहां तक कहा कि वो इसको इसलिए बनाए रखेंगे क्योंकि पिछले सरकार के काम विफलताओं का एक उदाहरण है, लेकिन जब कोरोना का समय आया और काफी लोग बेरोजगार हो गए तो वही मनरेगा देश के काम आया है. देश उसी पर डिपेंड हुआ और जो लोग बाहर से पलायन कर वापस लौट कर के आए थे, उनको उसी पॉलिसी के तहत रोजगार देने का काम किया गया था, तो यह मनमोहन सिंह की ही देन है. कुछ साल पीछे जाकर देखें तो एशिया में जिनको साउथ एशियन टाइगर्स कहा जाता था, और इनके इकोनामी में वह सब ध्वस्त हो रहे थे. उस समय साउथ एशिया में भारत एकमात्र देश था, जिसकी इकोनाॅमी बची रही और दिवालिया नहीं हुई. इसका भी श्रेय मनमोहन सिंह को ही जाता है.
कठपुतली की सरकार होने के लगते रहे आरोप
एक आरोप मनमोहन सिंह पर उनके 10 वर्षों के शासनकाल में लगातार लगता रहा कि वो एक डमी यानी की कठपुतनी प्रधानमंत्री थे और असली शासन तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष हो या फिर नेशनल एडवाइजरी काउंसिल के जो चेयर पर्सन सोनिया गांधी करती रहीं. यह तो एक आरोप है. इसका कोई प्रमाण नहीं है. ऐसा प्रोपगेंडा बीजेपी के लोगों के द्वारा लगाई जाती रही है. लेकिन अगर बीजेपी इस तरह का आरोप लगाती है तो इस तरह के तमाम प्रोग्रेसिव एजेंडे और पॉलिसीज देश के सामने आई तो उसका श्रेय उनको ही तो जाता है जो कंट्रोल कर रहा था.
उन्होंने मनरेगा, राइट टू फूड और राइट टू एजुकेशन दिया तो इसका श्रेय तो उनको जाता है और जनता को इसका सीधे तौर पर फायदा हुआ. पहले आरटीआई से किसी विभाग के बारे में पूछ सकते थे, लेकिन आज नहीं पूछ सकते, अगर आपने आरटीआई से सवाल पूछा तो उसके तहत जवाब बाद में आता है पहले पुलिस कार्रवाई करने पहुंच जाती है. पिछले कांग्रेस के सरकारों में देश ने उतनी तरक्की नहीं की या उतना विकास नहीं हुआ जितना की मनमोहन सिंह की सरकार में देश ने की और लोगों ने इसको महसूस भी किया. मनमोहन सिंह देश के आदर्श प्रधानमंत्री के तौर पर देखा जा सकता है जिन्होंने ये बताया कि देश में किस तरह से इम्पावर करता है.
आर्थिक संकट से बाहर निकाले में अहम भूमिका
भारत का जब इकोनॉमी खुला तो उस समय हालात ठीक नहीं थे, देश का सोना तक गिरवी रखा हुआ था. भारत रूस पर डिपेंड था. बाद में संबंध टूटने के बाद मनमोहन सिंह का ही समझ से देश ने उस समय के आर्थिक दौर से बाहर निकला. बहुत से लोग मनमोहन सिंह का मुल्यांकन सिर्फ पॉलिटिक्स के नजरिये से करते हैं. मनमोहन सिंह को सिर्फ प्रधानमंत्री के अलावा एक अच्छे अर्थशास्त्री के तौर पर समझने की जरूरत है.
मनमोहन के काम पर क्यों नहीं लड़ा गया चुनाव
अक्सर एक सवाल उठता रहा है कि जब मनमोहन सिंह ने वास्तव में बेहतर काम किया था तो फिर कांग्रेस को गांधी परिवार की जरूरत पड़ती रही. मनमोहन सिंह के कार्यों को आगे रखकर प्रचार प्रसार क्यों नहीं किया गया. जानकारों का कहना है कि गांधी परिवार की जड़े इतनी कांग्रेस से जुड़ी है कि गांधी परिवार का ही पर्याय कांग्रेस है. ये आम लोगों के मन में भी बसा हुआ है. कांग्रेस का पहला परिवार गांधी परिवार है. जिसकी तीन से चार पीढ़ी को पूरा देश जानता है. पिछले दो दशक के बेहतर प्रधानमंत्री में से एक मनमोहन सिंह रहे हैं. मनमोहन सिंह ने जो काम किया वो अतुलनीय है. हालांकि कांग्रेस की पहचान गांधी परिवार है. दोनों चीजों में कोई कंट्राडिक्शन भी नहीं है. क्योंकि पॉलिसी पूरी पार्टी मिलकर बनाती है. कोई एक व्यक्ति नहीं बनाता जैसा कि अब के समय में है. जिसमें एक ही व्यक्ति सब पॉलिसी बनाता है. विदेश मंत्री को भी ये पता नहीं है कि क्या विदेश की पॉलिसी होगी. पिछली सरकार कलेक्टिव सरकार थी, जिसके एक्सिक्यूटीव प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे. इस तरह का कंट्राडिक्सन की बात नहीं होना चाहिए.
परंपरागत सीट से क्या आएंगे गांधी परिवार
मनमोहन सिंह रिटायर हो गए, उनकी जगह पर सोनिया गांधी उच्च सदन पहुंची है. उतर प्रदेश के अमेठी और रायबरेली सीट पर कोई घोषणा नहीं हुई है. राहुल गांधी ने वायनाड से नामांकन कर दिया है. अभी ये साफ नहीं है कि वो यूपी से कहीं आएंगे कि नहीं आएंगे. हालांकि यूपी एक बड़ा राज्य भी है और वहां से लोकसभा की सीटें अधिक हैं. कार्यकर्ताओं और प्रदेश की कांग्रेस कमेटी और दोनों जगहों की जनता की मांग है कि दोनों सीटों पर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी चुनाव लड़ें. कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को भी उम्मीद है कि वहां से गांधी परिवार चुनाव लड़ेगा और इस उम्मीद पर कांग्रेस काम भी कर रही है.
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