जब देश के 45% विधायकों का रिकॉर्ड आपराधिक तो फिर कैसे साफ-सुथरी होगी राजनीति

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर की नई रिपोर्ट से पता चलता है कि देश की 28 विधानसभाओं और 3 केंद्र शासित राज्य यानी कुल 4123 विधायकों में से करीब आधे 45% के ऊपर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. विधायकों के खिलाफ इन आपराधिक मामलों को देखकर ऐसा पता चला है कि कुछ विधायकों के खिलाफ सामान्य किस्म के अपराध दर्ज है तो वहीं कुछ के खिलाफ संगीन.
सबसे चौंकानेवाली बात ये है कि आंध्र प्रदेश के चुने गए 79% विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. ये मामले इन विधायकों ने चुनाव के समय दाखिल किए गए हलफनामे के आधार पर एडीआर की तरफ से दिए. देश के लगभग सभी राज्यों में कुछ ऐसे विधायक हैं, जिनकी संख्या है 45% तक हैं, जिन पर हत्या या हत्या के प्रयास, अपहरण, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार जैसे गंभीर श्रेणी के मामले दर्ज हैं.
सामान्य मुकदमे का मतलब हुआ कि कहीं किसी के खिलाफ कोई शिकायत हो गई या चुनाव के समय बोल देना, झगड़े झंझट की FIR दर्ज होना इनको सामान्य अपराध कहा जाता है. 4123 में से यदि 4029 विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं तो ये बेहद गंभीर चीज हो जाती है. ऐसा भी नहीं है कि ये पहली बार हो रहा है. जब से प्रत्याशियों को अपने खिलाफ दर्ज मुकदमों को चुनावी हलफनामे में बताना अनिवार्य किया गया, तब से ही इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है.
बढ़ रही आपराधिक रिकॉर्ड वाले MLAs की संख्या
सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि आपराधिक रिकॉर्ड वाले ऐसे विधायकों की संख्या सिर्फ विधानसभा में ही नहीं, बल्कि लोकसभा में भी इनकी तादाद लगातार बढ़ रही है. नई लोकसभा में जो अभी जो आंकड़े आए थे उसके मुताबिक 543 सदस्यों में से 251 पर अपराधी मुकदमे हैं. यानी आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोकसभा सदस्यों की संख्या करीब आधी है. एडीआर की रिपोर्ट भी 45% कहती है. गौर से देखा जाए तो इनमें किसी एक पार्टी के विधायक नहीं हैं. इनमें सभी पार्टियों के विधायक हैं वो चाहे सत्तारुढ़ पार्टी हो या विपक्षी पार्टी हो. सभी पार्टियों में 45% से लेकर 66% तक ऐसे आपराधिक रिकॉर्ड वाले विधायक हैं.
इसमें आंध्र प्रदेश सबसे ऊपर गया. 80% का मतलब खुद सोचिए जरा कि 100 में से 80 विधायक ऐसे हैं जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं.यही हाल तेलंगाना का है. वहां 69% आपराधिक छवि वाले विधायक हैं. इनमें से जो गंभीर मामले हैं, वो भी आधे से ज्यादा हैं. बिहार 66 %, महाराष्ट्र 65% और तमिलनाडु 69% है. इससे ये पता चलता है कि इन राज्यों में आधे से ज्यादा चुने हुए नेता इस तरह के मुकदमे में शामिल हैं. हालांकि, ये जरूरी नहीं कि ये अपराध किया ही गया हो. लेकिन, मुकदमे तो दर्ज हो गए हैं.
आपराधिक छवि वाले नेताओं से उठते सवाल
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी कि जिन लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हैं उनको चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट इससे इनकार करते हुए कहा कि इन पर रोक नहीं लगाई जा सकती है, क्योंकि मुकदमे कई कारणों से दर्ज किए जाते हैं.
सिर्फ मुकदमे दर्ज होने के आधार पर किसी को चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता है, क्योंकि मुकदमे कई कारणों से दर्ज होते हैं. कई बार निजी दुश्मनी के चलते मुकदमे दर्ज करा दिए जाते हैं. जब कोई घटना घटती है तो उसमें किसी राजनेता का भी नाम आ जाता है. इसका ये मतलब नहीं की उन्होंने अपराध किया. पिछले दिनों एक और सवाल उठ रहा था कि जिनको कोर्ट ने दंडित कर दिया है, उन्हें भविष्य में जीवनभर के लिए चुनाव लड़ने से रोका जाए. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी नहीं माना.
अभी तक ये प्रावधान है कि यदि कोर्ट ने किसी अपराध में दंडित कर दिया है तो कम से कम 6 साल के लिए वो चुनाव लड़ने के अयोग्य करार दिया जाता है. सवाल ये भी उठता है कि जिस कोर्ट ने दंडित कर दिया तो क्या वे पार्टी का कोई पदाधिकारी भी नहीं बन सकता है? कोर्ट ये कहता है कि किसी मामले में सजा न मिले, तक तक आरोपी व्यक्ति निर्दोष है. यदि सजा हो जाती है तभी दंडित माना जाएगा.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]
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