पानीपत जेल रेडियो 16 जनवरी 2025 को अपनी स्थापना के चार साल पूरे कर लिया और ये न सिर्फ हरियाणा बल्कि पूरे देश और समाज के लिए एक बड़ी बात है. इसकी कई वजहें भी हैं. इसकी शुरुआत मैं साल 2013 से करूंगी जब पहली बार मैंने भारत में जेल के रेडियो को आते हुए देखा था. वो जेल थी- तिहाड़ जेल. उस समय तिहाड़ जेल में तिनका तिनका तिहाड़ पर काम चल रहा था और मैंने देखा कि जेल के रेडियो पर बात हो रही है.


फिर बाद के सालों में 2019 में जिला जेल आगरा में जब मैं उत्तर प्रदेश की जेलों पर आईसीएसआर के लिए रिसर्च कर रही थी, उस वक्त बंदियों से बात करते हुए जेहन में बात आयी कि अखबार, टीवी या फिर आपस कि बातचीत के अलावा अगर कैदियों के पास अपना रेडियो होता तो कितना अच्छा होगा. सुंदर बात ये रही कि प्रशासन ने इस बात को स्वीकार कर लिया और फिर जिला जेल आगरा में जेल के रेडियो की स्थापना हुई. 


लेकिन तब तक भारतीय जेलों को इस बात का अंदाजा नहीं हुआ था कि यह रेडियो सिर्फ मनोरंजन या सूचना का साधन ही नहीं बनेगा, बल्कि आपदा के समय बहुत बड़ी जरूरत के तौर पर अपनी जगह बना लेगा. ये बात मैं इस आधार पर कह रही हूं कि 2020 में जब कोरोना ने अपनी दस्तक दी और जेलों में मुलाक़ात बंद हो गई तब जेल का यह रेडियो बहुत बड़े सुकून देने वाले माध्यम के तौर पर स्थापित हुआ.


कैदी से बात कर आया विचार


इस बीच, हरियाणा के डीजी प्रिज़न के. सेल्वाराज को मैंने फोन कर ये कहा कि हरियाणा के जिले में रेडियो लाने कि शुरूआत अब तक नहीं हुई तो क्यों न ऐसा कुछ किया जाए? उन्होंने हामी भरी और तिनका तिनका फाउंडेशन ने हरियाणा के जेलों में रेडियो लाने की मुहिम को शुरू की. 


16 जनवरी 2021 को हरियाणा के जेल मंत्री ने पानीपत में रेडियो का उद्घाटन किया और इस तरह 'पानीपत की जेल' हरियाणा पहली ऐसी जेल बनी, जहां पर रेडियो आया. उसके बाद 4 चरण बनाए गए और इन चार चरणों का नतीजा ये हुआ कि आज 20 में से 10 जेलों में रेडियो है. कोरोना जब आया उस दौर में इन जेलों में ऑडिशन, उसके बाद ट्रेनिंग और फिर रेडियो जॉकी के तौर पर इन्हें रेडियो का माइक्रोफोन सौंपने का काम चल रहा था. 


धीरे-धीरे जो बहुत ज्यादा रुचि रखने वाले कैदी थे, वो सभी समाने आए कि वह भी रेडियो जॉकी बनना चाहते है. पहले चरण में 21 बंदियों का पूरे हरियाणा से चयन हुआ और उसके बाद ट्रेनिंग प्रक्रिया पूरी हुई. इसके बाद तिनका मॉडल ऑफ प्रिज़न रेडियो बनाया गया.


कोरोना के वक्त पता चली अहमियत


खास बात ये हुई कि कई तरह के बंदी मिले, जिनमें से एक था कशिश. कशिश एक अंडर ट्रायल कैदी था. उसने बताया कि जेल में आने से पहले वह संगीत में अपना कैरियर बनाना चाहता था. लेकिन, किसी वजह से जेल में आ गया. वो चाहता है कि वो गाए, लेकिन कहां पर गाए. कशीश की तरफ ऐसे बहुत से बंदी थे जो गाना चाहते थे, लेकिन कहां पर गाते. क्या बैरक में ही गाए और उसी से संतुष्ट हो जाए? उन सबके लिए साधन बन गया जेल का रेडियो.


कोरोना के समय में डिप्रेशन और एग्रेशन से जेल रेडियो जूझने का भी एक साधन बन गया. फिर एक दिन जिला जेल पानीपत के सुपरिटेंडेंट देवीदयाल ने इस बात की पुष्टि कि कोरोना के पूरे दौर में डिप्रेशन और एग्रेशन को घटाने में जेल रेडियो की महत्वपूर्ण भूमिका रही. इसकी अहमियत का अंदाजा ऐसे भी लगा सकते हैं कि कई मौके ऐसे आए जब कोई भी ऐसा नहीं था जब जेल के हॉस्पिटल में कोई भी मानसिक बीमारी की वजह से उसका इलाज कराने गया हो. यानी रेडियो ने डिप्रेशन को भगाने में कमाल का काम किया है. कुछ सक्रिय श्रोता, सक्रिय फीडबैक देने वाला और कुछ कैदी थे चिट्ठियां देनेवाले. फिर हमने बना दी तिनका जेल पाठशाला.


[ये पूरा आर्टिकल तिनका तिनका फाउंडेशन की अध्यक्ष, शिक्षाविद् और जेल सुधारक डॉक्टर वर्तिका नंदा के साथ टेलिफोनिक बातचीत पर आधारत है. उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]