(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
UNSC में भारत को स्थायी सदस्य बनाने का फ्रांस ने किया सपोर्ट, क्यों विरोध कर रहा है चीन?
पिछले 72 साल से भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यता पाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन बहुत पहले अमेरिका के विरोध के चलते ऐसा नहीं हो पाया. अब हर बार चीन कोई ऐसा अड़ंगा डाल देता है कि वह आज भी दुनिया की सबसे बड़ी पंचायत की इस ताकतवर समिति का स्थायी सदस्य नहीं बन पाया है. हालांकि पिछले साल ही अमेरिका के रुख में बदलाव आया और उसने भारत को स्थाई सदस्यता देने का खुलकर समर्थन किया लेकिन अब भारत के लिए अच्छी खबर ये है कि वैश्विक स्तर पर उसकी बढ़ती हुई ताकत को देख ब्रिटेन के बाद अब फ्रांस ने भी भारत को स्थाई सदस्यता देने का समर्थन किया है.
वैसे फ्रांस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीटों के निर्माण के लिए भारत के साथ ही जर्मनी, जापान और ब्राजील को लेकर भी अपना समर्थन दोहराया है. वैसे स्थाई सदस्यता पाने की दौड़ में भारत का पक्ष अब पहले से ज्यादा मजबूत हो गया है. वह इसलिए कि सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता वाले पांच देश हैं- अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन.इनमें सिर्फ चीन को छोड़कर बाकी चारों देश भारत के पक्ष में हैं.
हालांकि परमानेंट सीट हासिल करने की दौड़ में जापान और ब्राजील भी शामिल है, लेकिन अहम बात ये है कि एशिया, यूरोप, अफ्रीका और खाड़ी के अधिकतर देश इस मुद्दे पर हमारे पक्ष में हैं. तीन और बातें हैं, जिनसे स्थाई सदस्यता पाने के लिए हमारा मामला मजबूत होता है. पहला ये कि दुनिया की कुल आबादी का छठा हिस्सा भारत में है. दूसरा, भारत ने कभी किसी देश पर पहले हमला नहीं किया है और तीसरा ये भी कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और दुनिया में भारतीय अर्थव्यवस्था सबसे तेज गति से आगे बढ़ रही है.
दरअसल, चीन ने इस मसले पर शुरू से ही भारत से खुंदक पाल रखी है और उसने हर बार भारत के खिलाफ वोट देकर उसे स्थाई सदस्य बनने से रोक रखा है. सुरक्षा परिषद में साल 1950 से लेकर अब तक कुल 8 बार वोटिंग हुई है लेकिन हर बार पर्याप्त वोट न मिलने के कारण वह स्थाई सदस्यता हासिल नहीं कर सका और आज भी वह एक अस्थायी सदस्य ही है. चीन अलग-अलग बहानों से भारत की स्थायी सदस्यता का हमेशा से विरोध करता रहा है.
इसी साल जुलाई में सरकार ने लोकसभा में बताया था कि UNSC के पांच स्थाई सदस्यों में से केवल चार का ही समर्थन हासिल है. विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने बताया था कि केवल चीन ही भारत के स्थायी सीट पाने के समर्थन में नहीं है, जिसे लेकर लगातार उससे बात की जा रही है. सुरक्षा परिषद में सुधार को लेकर शुक्रवार (18 नवंबर) को यूएनएससी की वार्षिक बहस हुई थी, जिसमें फ्रांस ने भारत को स्थायी सदस्य बनाने की पुरजोर वकालत की. फ्रांस ने सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की गंभीरता को दोहराते हुए कहा कि वीटो का मुद्दा अत्यधिक संवेदनशील है. यूनाइटेड नेशन (यूएन) में फ्रांस की प्रतिनिधि ने कहा है कि समय आ गया है जब उभरते ताकतवर देशों की दुनिया की सबसे पावरफुल संस्था में भागीदारी बढ़े. फ्रांस ने न सिर्फ भारत बल्कि जर्मनी, ब्राजील और जापान को भी सिक्योरिटी काउंसिल में स्थाई सदस्य बनाने की मांग की है.
प्रतिनिधि ने जोर देते हुए कहा कि 'फ्रांस लगातार यह मांग उठा रहा है. हम चाहते हैं कि काउंसिल दूसरे देशों को भी साथ लेकर चले जिससे यह संस्था और ज्यादा मजबूत हो. उन्होंने यह भी कहा कि सिक्योरिटी काउंसिल के काम को और बेहतर बनाने के लिए इसमें 25 सदस्य जोड़े जा सकते हैं, जिनमें अफ्रीकी देशों को भी शामिल किया जाए क्योंकि भौगोलिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए कई सीटों को बांटा जाना चाहिए.
सिक्योरिटी काउंसिल में बदलावों को लेकर हुई इस बहस में हिस्सा लेते हुए यूएन में भारतीय राजनयिक रुचिरा कंबोज ने भी ये मुद्दा उठाया था, जिसमें उन्होंने UNSC में समान प्रतिनिधित्व रखने की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि बदलावों में जितनी देरी होगी, उससे संस्था और दुनिया को उतना ही नुकसान भी होगा. हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है जब भारत की तरफ से इस तरह के सुधारों की मांग उठाई गई हो.
बता दें कि साल 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिकी दौरे के समय वहां के राष्ट्रपति जो बाइ़डेन ने UN सिक्योरिटी काउंसिल की स्थायी सीट पर भारत की दावेदारी की वकालत की थी. उस समय भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने बताया था कि सिर्फ अमेरिका ही नहीं, बल्कि सभी क्वॉड मेंबर देश इस बात पर सहमत हैं. अब देखना ये है कि इस मुद्दे पर भारत के पक्ष में चीन को मनाने के लिए रूस क्या भूमिका निभाता है?
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