(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
फ्रांस में एक 17 साल के शख्स नाहेल की मौत पर जर्मनी से इजरायल तक क्यों अलर्ट हुई सरकार, जानें विवाद की असल जड़
फ्रांस में 17 वर्षीय किशोर नाहेल की पुलिस फायरिंग में हिंसा के बाद भारी मात्रा में हिंसा, तोड़फोड़ और आगजनी हुई. हजारों गाड़ियों को फूंका और करीबन तीन हजार दुकानों को लूट लिया गया. अब तक करीबन 2400 लोगों को अरेस्ट कर लिया गया है, लेकिन पिछले एक हफ्ते से जारी हिंसा वहां अब तक थमी नहीं है. इसी दौरान, जर्मनी से लेकर इजरायल तक भी इस घटना के छींटे पड़े हैं और ये सारे देश इस घटना के बाद अलर्ट पर हैं.
ये जो घटना हुई है, नाहेल की फायर में मौत वाली, वह दरअसल अल्जीरियन मूल का लड़का था. वह पेरिस के सबर्ब में रहता था. पिछले कुछ वर्षों से देखा जा रहा है कि फ्रेंच सोसायटी में रेसियल यानी नस्लीय आधार पर विभेद बढ़ रहा है और इसी का रिफ्लेक्शन फ्रेंच पुलिस में भी देखा जा रहा है. पॉलिटी और सोसाइटी में भी चेंज आ रहा है. ये एक ऐसी घटना थी, जिसमें नाहेल ने ट्रैफिक रूल्स तोड़ा था, पुलिस नाहेल को चेज कर उसे दंडित कर सकती थी, लेकिन उसे प्वाइंट ब्लैंक पर बुलेट मार दी गयी. पिछले साल भी करीबन 31 लोगों को गोली मार दी गयी थी, बिना किसी चेतावनी या अरेस्ट के, तो फ्रेंच पुलिस में रेशियल ईशूज तो आ गए हैं, और जो एक डिबेट फ्रेंच सोसाइटी में चल रहा है- अदर्स वर्सेस अस-वाली, यह घटना उसी का प्रतिफलन है.
सरकार ने काम किया, समाज को करना होगा
फ्रांस की सरकार ने उस पुलिस वाले को तुरंत पकड़ा, उसे जेल में डाला और जांच शुरू की. इसके बावजूद हिंसा बढ़ती गयी, क्योंकि पूरे समाज में एक नस्लीय खाई बन रही है. यह पॉलिटिकल मामला भी है. हालांकि, फ्रांस में तकरीबन सभी दलों ने एक सुर में इसकी निंदा की, लेकिन इसके कारण तो खोजने ही होंगे कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? पुलिस फोर्स इतनी आक्रामक क्यों हो रही है, जो बात आसानी से संभल सकती थी, उसको इतना बढ़ा कैसे दिया गया, ये सब भी पूछना चाहिए. टीनएज में थोड़ा सा विद्रोही स्वभाव होता है, लॉ आदि को तोड़ना भी एक थ्रिल जैसा अहसास होता है, तो उसके उपाय भी हैं. उसको रोक सकते थे, अरेस्ट कर सकते थे, लेकिन सीधा गोली ही मार देना कहां का न्याय है? पुलिस जो भी सफाई दे, वह गलत है और इसमें कोई दूसरी राय नहीं हो सकती है.
शरणार्थियों के लिए चिंता का विषय
फ्रेंच सोसायटी हमेशा से लिबरल रही है, उदारवादी रही है. प्रवासियों यानी माइग्रैंट्स को लेकर भी यह समाज उदार रहा है. जब 2016 में माइग्रैशन-क्राइसिस हुआ तो हमें याद रखना चाहिए कि फ्रेंच और जर्मनी वाले ही इनको अंदर लेकर आए. बहुत सारे देश जैसे हंगरी, इटली वगैरह इस पर सख्त रुख अपना रहे थे. दूसरे यूरोपीय देशों को भी उन्होंने मनाया. फ्रेंच सोसायटी तो एक मिसाल थी. अब वहां अगर ऐसा हो रहा है तो यह चिंता की बात है. इसलिए, केवल जर्मनी ही नहीं, सारे देश इस पूरे मामले पर नजर रखे हुए हैं. ये सारी जगहें हैं, चाहे वह जर्मनी हो या इजरायल, हरेक जगह शरणार्थी हैं, इसलिए हरेक देश इस पर नजर रखे हुए है. फ्रांस की बात पूरे देश में फैल सकती थी. आप देखें कि चाहे वो पिंक रेवोल्यूशन हो, या अरब वाली क्रांति हो, वे एक से दूसरी जगह तेजी से फैलती हैं. ट्रांसनेशनल मामला होने की वजह से ही सारे देश चिंतित हैं.
फ्रेंच समाज में ध्रुवीकरण
फ्रांस के समाज में कुछ दिनों से शरणार्थियों को लेकर ध्रुवीकरण बढ़ा है. इस बीच उनकी संख्या भी तेजी से बढ़ी है. फिर, जॉब मार्केट हो या रिसोर्सेज की बात है, उसको लेकर नस्ली डिवाइड हो चुका है. इस बीच शरणार्थी काफी तेजी से बढ़े भी हैं. इससे जो मूल निवासी हैं उनको कहीं न कहीं महसूस होता है कि उनका हक छीना जा रहा है. शरणार्थी सोच रहे हैं कि जो उनको मिलना चाहिए, वह नहीं मिल रहा. यह डिवाइड एक बॉयलिंग पॉइंट पर आ चुका है.
यह सीधे तौर पर फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रां के ऊपर सवालिया निशान है. वह यूरोप के किसी भी मसले पर लीड लेते रहे हैं, लेकिन खुद उनके देश में जब ये सब हो रहा है, तो एक बड़ा सवाल तो है ही. यूरोप के अंदर फ्रांस और खासकर मैक्रां के लीडरशिप पर तो सवाल उठते ही रहेंगे. हालात को सुधारने की कोशिश हालांकि जारी है, फ्रांस की फुटबॉल टीम ने भी अपील की है. राजनीतिक दल भी अपील कर रहे हैं और हो सकता है कि कुछ दिनों में ये दंगे भी बंद होंगे, लेकिन सारे समुदायों और कम्युनिटी के बीच बातचीत शुरू होना बहुत जरूरी है, इस रेशियल डिवाइड को पाटना बहुत जरूरी है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]