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कैसा है पाकिस्तान का भविष्य, चुनाव हुए तो क्या वहां लोगों की बदलेगी किस्मत, एक्सपर्ट से समझें हर बात

पाकिस्तान की नेशनल असेंबली का कार्यकाल पूरा हो गया था. इसलिए वहां नेशनल असेंबली को भंग किया गया है. एक असमंजस की स्थिति थी कि क्या राष्ट्रपति आरिफ अल्वी प्रधानमंत्री के कहने पर उसी समय भंग कर देंगे या वो दो दिन का इंतजार करेंगे.

संविधान के हिसाब से जिस दिन संसद का कार्यकाल खत्म होता है, उस दिन संसद भंग हो. दो महीने के अंदर चुनाव कराना पड़ता है. लेकिन अगर संसद एक दो दिन पहले भंग हो जाए, तो फिर आपको चुनाव के लिए 90 दिन मिलते हैं. ये एक फैक्टर था, लेकिन 10 अगस्त को जिस तरीके से राष्ट्रपति ने उसी समय संसद को भंग कर दिया, अब 90 दिन के अंदर-अंदर चुनाव होने हैं. यानी अब नवंबर के दूसरे हफ्ते से पहले-पहले चुनाव होने हैं.

क्या 90 दिन में हो पाएंगे चुनाव?

अब पाकिस्तान में प्रोटोकॉल सरकार बनेगी, अब सवाल है कि उसकी अध्यक्षता कौन करेगा. संविधान के हिसाब से उस सरकार को 90 दिन रहना चाहिए. पहले ये होता था कि इस तरह के कार्यवाहक प्रधानमंत्री रोजमर्रा के कामकाज ही देखते थे, लेकिन अब पिछले एक डेढ़ हफ्ते में एक कानून पारित किया गया है. उसके अनुसार कार्यवाहक सरकार को बहुत सारी ऐसी शक्तियां मिल गई हैं, जिसके तहत वो कई पॉलिसी डिसीजन भी ले सकती है. अब प्रधानमंत्री के तौर पर उस कार्यवाहक सरकार की जो भी अध्यक्षता करेगा, उसके पास वो तमाम पावर होंगे, जो किसी भी निर्वाचित प्रधानमंत्री की होती है.

नई जनगणना से चुनाव में हो सकती है देरी

दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि क्या ये चुनाव 90 दिन के अंदर होंगे. उसमें एक पेचीदगी आ गई है. अभी एक जनगणना हुई है. नई जनगणना हो गई है और उसको सरकार ने स्वीकार कर लिया है, तो संविधान के तहत ये लाजमी हो जाता है कि नई आबादी के हिसाब से आपको डिलिमिटेशन यानी परिसीमन करनी पड़ेगी. नया परिसीमन करना पड़ेगा तो उसमें कम से कम 120 दिनों की दरकार होती है और अगर उसमें कोई पेचीदगी आ जाए तो समय बढ़ भी सकता है.

अगर आप 120 दिन भी लेकर चलें, तो फिर ये लाजमी हो जाता है कि चुनाव निर्धारित समय पर नहीं होंगे. यानी चुनाव 90 दिन के अंदर नहीं होंगे और वो शायद 3-4 महीने आगे बढ़ जाए. शायद उससे भी ज्यादा बढ़ जाए. एक आशंका और है कि वहां की फौज ने काफी ताकत ले ली है, अपने आपको काफी ताकतवर कर लिया है और कार्यवाहक सरकार को भी काफी अधिकार मिल गया है. ऐसे में ये लंबा न खींच जाए और पाकिस्तान की जो टूटी-फूटी जम्हूरियत है, उसमें दोबारा से सेंध न लगे.

इमरान खान का क्या है भविष्य?

चुनाव होंगे, कब होंगे या या नहीं होंगे, ये बड़ा फैक्टर है. दूसरा फैक्टर ये है कि अगर चुनाव हुए, तो फिर उसमें क्या होगा. इमरान खान को तो सिरे से बाहर करने की कोशिश की गई है. लेकिन क्या वो पूरे तरीके से फील्ड से बाहर हो गए हैं, ये बड़ा सवाल है. ये माना जा रहा है कि इस हफ्ते या अगले हफ्ते तक ये संभावना है कि जिस केस में इमरान खान को जेल भेजा गया है, उसमें उनको कोर्ट से रिलीफ मिल जाएगा और वो फिलहाल के लिए बाहर आ जाएंगे क्योंकि वे उस केस के ऊपर अपील में गए हैं.

इमरान खान के ऊपर बहुत सारे केस दर्ज कराए गए हैं. ये माना जा रहा है कि उनको किसी न किसी केस में उनको धर लिया जाएगा और उनको लंबी सज़ा हो जाएगी. इमरान खान को एक सजा ऑलरेडी हो चुकी है, तो वो डिस्क्वालिफाई हो जाते हैं, चुनाव में भाग ही नहीं ले सकते हैं. न ही इमरान खान अपनी पार्टी की अध्यक्षता कर सकते हैं.

इमरान खान की लोकप्रियता है बरकरार

मुद्दा ये है कि शहबाज शरीफ की सरकार और फौज के द्वारा जो तमाम पैंतरे आजमाए गए कि इमरान खान को बिल्कुल फील्ड से बाहर निकाल दिया जाए, उससे इमरान खान की लोकप्रियता पर कोई बहुत बड़ा असर नहीं पड़ा है. बहुत लोगों द्वारा ये माना जा रहा है कि इमरान खान अभी भी बहुत ज्यादा लोकप्रिय हैं. अगर एक साफ-सुथरा चुनाव होता है, तो इसकी बड़ी संभावना बनती है कि उनकी पार्टी को तहस-नहस करने, उनको जेल में डालने के बावजूद, वे चुनाव में नहीं खड़े हो सकते, इसके बावजूद इमरान खान के साथ जो भी लोग जुड़े हुए हैं, वो चुनाव को स्वीप कर जाएंगे.

इमरान खान के विरोधियों के ऊपर ये खतरा अभी भी मंडरा रहा है. उनके विपक्षी इस बात को महसूस कर रहे हैं. साथ ही साथ अगर इमरान खान पूरी तरह से आउट हो जाते हैं, हम मान लेते हैं कि उनकी पार्टी का राजनीति में रहने का कोई आधार नहीं रहा, उसके बावजूद अगर चुनाव होते हैं, तब भी कोई बहुत अच्छे नतीजे नहीं निकलेंगे. उसका कारण ये है कि पाकिस्तान की जो राजनीति है, वो एक लिहाज से बहुत ज्यादा खंडित हो चुकी है.

राजनीतिक स्थिरता की संभावना नहीं

माना जा रहा है कि चुनाव का जो रिजल्ट आएगा, वो भी खंडित मैंडेट आएगा. इतना खंडित मैंडेट होगा कि दोबारा से जोड़-तोड़ की सरकार बनानी पड़ेगी. भानुमति का कुनबा टाइल, जैसे अभी 15-16 महीने से थी. उस तरह से अगर सरकार बनानी पड़ेगी, तो पेचीदगियां बढ़ जाएगी. जो भी सरकार आएगी, उसे बहुत सारे ऐसे कदम उठाने पड़ेंगे, जो लोकप्रिय नहीं होंगे. कुल मिलाकर देखा जाए तो आगे पाकिस्तान के लिए बहुत अच्छे आसार नहीं नजर आ रहे हैं.

जिन लोगों को इमरान खान को छोड़ना था, वे तो छोड़कर चले गए. उनमें बहुत सारे लोग ऐसे हैं, जिनको फौज ही लेकर आई थी और फौज के इशारे पर वे लोग निकल गए. उन्होंने नई पार्टियां बनाई हैं. लेकिन जनसमर्थन उन नेताओं के पास नहीं है. उनका छोटा-मोटा समर्थन हो, लेकिन उनका वैसा प्रभाव नहीं है कि वो इमरान खान का सारा का सारा समर्थन अपने पास लेकर आ जाएं.

क्या इमरान खान की होगी वापसी?

इमरान खान के लिए जो पेचीदगी होगी वो ये होगी कि पार्टी की जो मशीनरी होती है, वो एक लिहाज से पूरी तरह से तहस-नहस हो चुकी है. ये उनके लिए एक समस्या है. जनसमर्थन है, लेकिन पार्टी जो मशीनरी होती है अब वो नहीं है या नज़र नहीं आ रही है. कानूनी तौर पर उनको सज़ा हो गई है, तो वे 5 साल के लिए अयोग्य हो गए हैं. न तो वे चुनाव लड़ सकते हैं, न वो अपनी पार्टी की अध्यक्षता कर सकते हैं. अगर वो पार्टी का अध्यक्ष बनकर किसी को टिकट देते हैं, तो वो टिकट कानूनी तौर पर मान्य नहीं होगी. ये इमरान खान के लिए दूसरी पेचीदगी है.

दूसरी तरफ ये भी है कि जो लोग इमरान खान का विरोध कर रहे हैं, वो जब चुनाव में जाएंगे, तो एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी होंगे. इस लिहाज से वो एक-दूसरे का वोट काटेंगे. वहीं इमरान खान का जो वोट है, वो अभी भी एक लिहाज से सॉलिड वोट बैंक है. कहीं ऐसा न हो कि वो आपस में लड़ते रहें और ज्यादा से ज्यादा सीटें इमरान खान जीतकर न ले जाएं.

नवाज शरीफ के आने नहीं बदलेगी तस्वीर

नवाज शरीफ के वापस आने से उनकी पार्टी में थोड़ा उत्साह जरूर बढ़ेगा, लेकिन अगर इमरान खान और नवाज शरीफ एक-दूसरे के आमने-सामने हों, तो मुझे शक है कि इमरान खान की लोकप्रियता के आगे नवाज शरीफ बहुत बड़ा असर डाल सकते हैं.

जो लोग आशा बांधे हुए हैं कि नवाज शरीफ आएंगे और उससे इमरान खान का समर्थन ढेर हो जाएगा, मुझे नहीं लगता है कि ऐसा होगा. ये भी सवाल है कि क्या नवाज शरीफ फौज को स्वीकार्य होंगे. मेरे हिसाब से इस पर भी बहुत बड़ा सवालिया निशान है. फौज नवाज शरीफ के साथ डील तो कर सकती है, जब नवाज शरीफ पर्दे के पीछे से काम कर रहे हैं. लेकिन क्या पर्दे के आगे आकर नवाज शरीफ फिर से प्रधानमंत्री बन जाते हैं, तो क्या फौज इसको स्वीकार करेगी. अगर कर भी लेगी तो उनके साथ कब तक निभाएगी.

इमरान खान पर सेना की सख्ती रहेगी बरकरार

इमरान खान ने जिस तरीके से फौज को ललकारा है, फौज के ऊपर यलगार की है, क्या उसकी माफी हो सकती है. इस मुद्दे पर मुझे थोड़ा-सा शक लगता है. पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर और इमरान खान का 36 का आंकड़ा है. अगर असीम मुनीर एक्सटेंशन ले लेते हैं तो 2028 तक सेना प्रमुख रहेंगे. जब तक वो सेना प्रमुख हैं, तब तक वो किसी भी हालत में इमरान खान को कबूल नहीं करेंगे. इसलिए हालात इमरान खान के पक्ष में तो नजर नहीं आते. लेकिन पाकिस्तान के इतिहास में ये देखने को मिला है कि पूरी तरह से तहस-नहस होने के बाद भी कोई कब बाउंस बैक करके आएगा, ये समझ में नहीं आता है. इमरान खान भी ऐसा कर सकते हैं, इस संभावना को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता है.

पाकिस्तान में उथल-पुथल रहेगा. मुझे नहीं लगता कि वहां की राजनीति में स्थिरता आएगी. न तो वहां राजनीतिक मर्यादा तय होगी और न ही सेना और राजनीति के बीच की कशमकश का समाधान निकलेगा. चुनाव हो भी सकते हैं या नहीं भी हो सकते हैं. लंबे वक्त के लिए चुनाव स्थगित भी हो सकते हैं. चुनाव हो या नहीं हो, इसकी संभावना कम ही है कि पाकिस्तान में राजनीतिक स्थिरता आएगी.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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