दुनिया के सबसे ताकतवर देशों के समूह जी-20 के विदेश मंत्रियों की दिल्ली में हुई बैठक में यूक्रेन युद्ध का ही साया छाया रहा और मेजबान भारत की तमाम कोशिशों के बावजूद कोई साझा बयान जारी नहीं हो पाया. रूस और चीन ये दो देश ही थे, जिन्होंने यूक्रेन युद्ध की निंदा करने से इनकार कर दिया, जिसके कारण साझा बयान पर कोई सहमति नहीं बन पाई.शायद यही वजह है कि दुनिया की सबसे बड़ी पंचायत यानी संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस के प्रवक्ता को ये कहने पर मजबूर होना पड़ा कि मेजबान के रूप में भारत ने अपने प्रयासों में कोई कमी नहीं की है लेकिन यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों के बीच बढ़ते ‘मतभेद' का नतीजा है, लेकिन सवाल उठता है कि अगर रुस और चीन का यही अड़ियल रुख रहा तो अगले सितंबर में जी-20 के राष्ट्राध्यक्षों के होने वाली बैठक भी क्या ऐसे ही निराशाजनक माहौल के साये में होगी?
विदेशी मामलों के जानकार कहते हैं कि चूंकि भारत जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है, इसलिये उसकी पूरी कोशिश रहेगी कि उसकी अध्यक्षता का कार्यकाल निराशा के माहौल में न ख़त्म हो, लेकिन इसके लिए कोई रास्ता निकालने की पहल आखिरकार भारत को ही करनी होगी. हालांकि भारत ऐसी पहल पहले ही कर चुका है. जी-20 के विदेश मंत्रियों की इस बैठक से पहले बीते महीने ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार NSA अजित डोभाल ने मास्को में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की थी. वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूत के नाते उनका संदेश लेकर ही पुतिन से मिले थे. आमतौर पर पुतिन किसी देश के NSA से मुलाकात नहीं करते लेकिन ऐसी खबरें आई थीं कि मोदी के आग्रह पर ही पुतिन मुलाकात के लिए राजी हुए थे ,इसलिए उसे बेहद अहम माना गया.पर, दोनों के बीच क्या बातचीत हुई, इसकी कोई पुख्ता व आधिकारिक जानकारी न तो रूसी मीडिया में आई और न ही भारतीय मीडिया में, लेकिन सूत्रों के हवाले से आई खबर में दावा किया गया था कि भारत ने पुतिन को यही संदेश दिया कि वे यूक्रेन के रुख को लेकर कुछ नरमी बरतें, जिसकी झलक 2 मार्च को नई दिल्ली में होने वाली विदेश मंत्रियों की बैठक में दिखाई भी दे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
यूक्रेन को लेकर रुस अपने रुख पर ही अड़ा रहा और चीन ने भी उसका साथ देकर युद्ध को खत्म करने की दिशा में कोई रास्ता निकालने वाली इस बैठक को एक तरह से बेनतीजा ही कर दिया.जानकार कहते हैं कि भारत को अब यूक्रेन युद्ध को लेकर गुटनिरपेक्ष रहने का नाज़ुक संतुलन बनाने के साथ-साथ बाक़ी देशों से अपील करनी होगी कि वो मिलकर काम करने का कोई रास्ता निकालें.जाहिर है कि भारत अब तक रूस की सीधे तौर पर आलोचना करने से बचता रहा है और उसने संवाद के जरिये ही समस्या का समाधान निकालने की कूटनीति पर ही जोर दिया है. बैठक खत्म होने के बाद विदेश मंत्री एस. जयशंकर को साफ कहना पड़ा कि यूक्रेन संघर्ष को लेकर मतभेद थे और इस वजह से साझा बयान जारी करने पर सहमति नहीं बनी, लेकिन साथ ही उन्होंने कहा कि ज्यादातर मुद्दों, खास तौर से विकासशील देशों से जुड़ी चिंताओं पर सहमति बनी है.
उनके मुताबिक अगर सभी मुद्दों पर सबके विचार समान होते तो पक्का एक साझा बयान जारी होता, लेकिन कुछ मुद्दे हैं और मुझे लगता है वो मुद्दे, मैं स्पष्ट कहूंगा कि वे यूक्रेन संघर्ष से जुड़े हैं, जिन पर मतभेद हैं. उन्होंने कहा कि इसलिए ज्यादातर मुद्दों पर हम सारांश और परिणाम दस्तावेज बना सके. सारांश बना, क्योंकि यूक्रेन के मुद्दे पर मतभेद हैं और इस कारण अलग-अलग विचार रखने वाले पक्षों के बीच सहमति नहीं बन सकी. हालांकि, जयशंकर ने प्रस्तावित साझा बयान के दो पैराग्राफ का विरोध करने वाले देशों के नाम नहीं लिए, लेकिन अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने संवाददाता सम्मेलन में साफ कर दिया कि रूस और चीन ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति का समर्थन नहीं किया. उन्होंने कहा कि यूक्रेन के मुद्दे पर मतभेद थे, जिन पर सुलह की स्थिति नहीं बन सकी. कई राजनयिकों ने कहा कि यूक्रेन संघर्ष को लेकर अमेरिका नीत पश्चिमी जगत और रूस-चीन के बीच गहरा विभाजन देखा गया. इसीलिये जयशंकर को ये कहना पड़ा कि इस मुद्दे पर विचार दो ध्रुवों में बंटे हुए थे. हमने कोशिश तो की, लेकिन देशों के बीच फ़ासले बहुत अधिक थे.
बता दें कि जी-20 के समूह में दुनिया के सबसे अमीर 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं.इस संगठन के सदस्य देश मिलकर दुनिया का 85 फ़ीसदी आर्थिक उत्पाद बनाते हैं और इनकी आबादी दो तिहाई है.एक साल पहले यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद अमेरिका और रूस के विदेश मंत्रियों की ये पहली आमने-सामने की मुलाक़ात थी.एंटनी ब्लिंकन और लावरोफ़ क़रीब 10 मिनट अलग से भी मिले थे.अमेरिका के विदेश विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक एंटनी ब्लिंकन ने रूस के विदेश मंत्री से कहा कि 'जब तक ज़रूरी होगा, तब तक पश्चिमी देश यूक्रेन के साथ खड़े रहेंगे.हालांकि रुसी अधिकारियों ने इस बात से इनकार किया है कि रूस और अमरीका के विदेश मंत्रियों की कोई मुलाक़ात हुई थी. वैसे जी-20 के विदेश मंत्रियों की इस बैठक की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में चेतावनी दी थी कि दुनिया के मतभेद, स्थायी विकास को जोखिम में डाल रहे हैं.संयोग देखिये कि ऐसा ही हुआ भी और मतभेद, आम सहमति में नहीं बदल पाये.
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