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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

ऐतिहासिक समझौतों और वैश्विक एकता के साथ G20 का समापन लेकिन कुछ मुद्दों पर सुलगते सवाल

जी20 का समापन बहुत ही शानदार यादों के साथ खत्म हुआ. पिछले 6 महीनों से इसे लेकर तयारी चल रही थी. सरकार ने इस समिट के लिए तकरीबन 900 करोड़ से ज्यादा का बजट रखा था, लेकिन ये बजट चार हजार करोड़ से ज्यादा का हो गया. महमानों को सोने और चांदी के  बर्तनों में खाना परोसा गया. पिछले जी20 के मुकाबले ये कहीं भव्य था. देश से लेकर विदेशी मीडिया में भी इसकी खूब चर्चा रही. इस समिट ने देश के साथ विदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा और पहचान को ना सिर्फ और मजबूत किया बल्कि लोकप्रियता में भी इज़ाफा किया.

जी20 समिट के समापन के मौके पर सदस्य देशों के बीच तकरीबन सभी मुद्दों पर आपसी सहमति थी. भारत के लिए एक बड़ी जीत ये रही कि इटली ने वन रोड वन बेल्ट से बाहर होने का एलान किया और अमेरिका-भारत के साझा प्रयास से शुरू भारत, मध्य पूर्व के अरब मुल्क, इजराइल और यूरोप कॉरिडोर में शामिल होने का फैसला किया. ये चीन के लिए एक झटका है, इसके साथ ही रूस यूक्रेन युद्ध के मसौदे के भाषा को लेकर भारत अमेरिका के बीच सहमति नहीं बन रही थी. आखिरकार सहमति बनी और रूस-यूक्रेन युद्ध की जगह सिर्फ यूक्रेन में चल रहे युद्ध शब्द का इस्तेमाल किया गया.

रूस हुआ हैरान

रूस भी इसे लेकर हैरान था, उसने मसौदे में भाषा के चयन को लेकर ख़ुशी जताई. पिछले साल इंडोनेशिया के बाली में हुए जी20 समिट में रूस-यूक्रेन युद्ध शब्द का इस्तेमाल हुआ  था और रूस की जंग को लेकर आलोचना की गई थी. इसे लेकर भारत के विदेश मंत्री एस. जय शंकर ने कहा कि वह बाली था और ये भारत है. एस. जयशंकर के इस ब्यान से ऐसा लगता है कि भारत एक विश्वगुरु बन कर उभर रहा है या कम से कम एक नया सुपर पावर बन कर उभर रहा है.

विदेश मंत्री को अपने बयान में संयम बरतना चाहिए था, हर राष्ट्र का अपना स्वाभिमान होता है, अभी हाल ही में जब इंडोनेशिया ने पाम तेल के निर्यात पर रोक लगाई थी तो भारत में खाने के तेल की कीमत में आग लग गई थी. कहा जाता  है कि भारत सरकार ने जी20 शिखर सम्मेलन के दौरन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन को उनके साथ भारत आए अमेरिकी पत्रकारों से बातचीत करने के लिए यानी प्रेस कॉन्फ्रेंस करने की इजाजत नहीं दी थी. वियतनाम पहुंचने के बाद बिडेन ने प्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि जी20 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी के साथ प्रेस की आजादी, सिविल सोसाइटी के अधिकार जैसे मुद्दे पर भी बात की. विदेशी अखबारों में जहां शिखर सम्मेलन की सफलता को लेकर मोदी सरकार की तारीफ की गई, वहीं कुछ मुद्दों को लेकर सरकार की आलोचना भी की गई. 

कुछ चीजों को लेकर सवाल

बहरहाल, आज का भारत न सिर्फ तेज़ी के साथ उभरता आर्थिक शक्ति है, बल्कि 2 दहाई से ज्यादा समय गुजर चुका है,  भारत को एक परमाणु ऊर्जा शक्ति संपन्न देश बने हुए, भारत जब परमाणु शक्ति संपन्न देश नहीं था, उभरती आर्थिक शक्ति संपन्न देश भी नहीं था तब इंदिरा गांधी ने अमेरिका को लोहे का चना चबा दिया था. वो एक महान कुटनीतितिज्ञ खिलाड़ी थीं, आज भी उनका मुकाबला मुश्किल है. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के पहले जब इंदिरा गांधी ने अमेरिका का दौरा किया था तब इन्होंने कई मौक़ों पर अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की खिंचाई कर दी थी, हाल ही में अमेरिका में डिक्लासिफाइड टेप्स के सामने आने से इस बात का खुलासा हुआ है. टेप में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और एनएसए प्रमुख हेनरी किस्सेंजर जो बाद में अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट बने, हेनरी किसेंजर के साथ बातचीत सामने आई है, जिसमें दोनों नेता पानी पी पी कर इंदिरा गांधी को कोसते सुने जा सकते हैं.

रिचर्ड निक्सन ने इंदिरा गांधी के लिए बहुत ही गलत अमर्यादित शब्दों का इस्तेमाल करते हुए नजर आ रहे हैं. निक्सन  कहते हैं कि वो खुद को समझती क्या है?  उसे इस बात की भी जरा सी फिक्र नहीं है कि अमेरिका उसकी आर्थिक मदद करता है, मुफ्त में अनाज भी देता है, वो अमेरिकी डॉलर को तो मानो मुंह ही नहीं लगाती. बांग्लादेश युद्ध को लेकर  निक्सन ने हेनरी किसेंजर से कहा कि उसने तो हमें यकीन दिलाया था कि भारत, पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध नहीं छेड़ेगा, फिर ठंडी आहे लेते हुए किसिंजर से कहते हैं कि अब वो समय गुजर गया कि कोई मुल्क तीन चार हजार मील दूर बैठ कर किसी मुल्क पर  हुकुम चला सकता था. 

आज का अलग भारत

इंदिरा गांधी ने भारत में जी20 से बड़ी बैठक गुट निर्पेक्ष देशों के कि थी जिसमें 90 सदस्य देशों ने शिरकत की थी, साथ ही कई देशों को विशेष तौर पर अमंत्रित किया गया था, ये बैठक सोवियत रूस और अमेरिका के विरोध के बावज़ूद हुआ था. आज का तो दौर ही अलग है. आज भारत की अपनी एक पहचान है, राजीव गांधी ने जिस कंप्यूटर युग की शुरुआत की थी, उसके बाद भारत निश्चित तौर पर सॉफ्ट वेयर में विश्व गुरु बन गया है.

आज तो चाड और नाइजर जैसे गरीब अफ़्रीकी मुल्क भी सुपर पावर के धौस में नहीं आते, हेनरी किसेंजर ने 1971 में कहा था कि वो दौर गुज़र गया जब हज़ारों किलो मीटर दूर बैठकर किसी मुल्क पर हुकुम चलाया जाए, अब की बात कि जाए तो अब दुनिया सिमट चुकी है, अब  तो दुनिया वसुदेव कुटुंबकम है, यहीं तो समिट का टैग लाइन भी था!

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.] 

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