वैसे तो तिहाड़ जेल को अति सुरक्षित जेल माना जाता है. इस जेल का बोझ कम करने के लिए दिल्ली में दो और जेलों का निर्माण किया गया, एक रोहिणी और दूसरी मंडोली जेल. कारण यही था कि अकेले तिहाड़ जेल पर कैदियों का बोझ ना बढ़े, जिससे सुरक्षा और अन्य व्यवस्था कमजोर ना हो. लेकिन 2 मई को तिहाड़ जेल में हुई गैंगस्टर टिल्लू की हत्या ने ये सवाल खड़ा किया है कि तिहाड़ जेल कि ये कैसी हाई सिक्युरिटी है, जो चार कैदी मिलकर एक कैदी हत्या कर देते हैं. वो भी बन्द सेल(जेल का कमरा) में नहीं बल्कि खुले बरामदे में. इतना ही नहीं टिल्लू के पोस्टमार्टम के दौरान ये खुलासा हुआ है कि टिल्लू के शरीर पर 90 से ज्यादा घाव मिले हैं, यानी उसके शरीर पर 90 से ज्यादा वार किए गए.


टिल्लू हत्या का रिकैप


टिल्लू ताजपुरिया को तिहाड़ जेल संख्या 8 के हाई सिक्योरिटी वार्ड में रखा गया था. अब आप हाई सिक्योरिटी का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं की 4 कैदी पूरे फिल्मी अंदाज में पहली मंजिल से चादर के सहारे नीचे कूदते हैं और फिर पूरी तस्सली से टिल्लू ताजपुरिया को लोहे की छड़ से बनाये गए सूए से गोदते हैं. ये हत्या इतने इत्मीनान से करते हैं कि टिल्लू के शरीर के लगभग प्रत्येक अंग पर वार किया जाता है. टिल्लू के साथ जो अन्य हाई रिस्क वाले कैदी बन्द होते हैं, उन्हें भी ये चारों कैदी उनके सेल में ही बंद कर देते हैं.



तमिलनाडु पुलिस के जवान देखने के सिवाए कुछ कर नहीं पाए


टिल्लू ताजपुरिया की हत्या को जिस तरीके से अंजाम दिया गया है, उसने तिहाड़ जेल की साख पर कई सवाल खड़े किए हैं. खास तौर से सुरक्षा को लेकर खुद जेल प्रशासन की तरफ से जो जानकारी साझा की गई है, उसमें बताया गया है कि टिल्लू ताजपुरिया हाई सिक्योरिटी वार्ड में बंद था. चारों हमलावर पहली मंजिल से चादर के सहारे ग्राउंड फ्लोर पर उतरते हैं. सवाल ये खड़ा होता है कि आखिर ये कैसी हाई सिक्योरिटी है?



सुरक्षा में तैनात जवानों के सामने हुई हत्या


जेल सूत्रों का कहना है कि जिस समय वारदात को अंजाम दिया जा रहा होता है, वहां पर मौजूद तमिलनाडु स्पेशल पुलिस के जवान भी तैनात होते हैं. वे आगे बढ़ कर बीच बचाव करने का प्रयास करते है, तो चारों हमलावर उन्हें भी धारदार हथियार से डरा कर पीछे कर देते हैं. यही वजह होती है कि हाई सिक्योरिटी वार्ड की सुरक्षा में तैनात सुरक्षा कर्मी भी डर की वजह से पीछे हट जाते हैं. सूत्रों का कहना है कि जेल में तैनात सुरक्षा कर्मियों के पास डंडे के सिवाए कुछ नहीं होता. बीच में ये प्रस्ताव उठा था कि सुरक्षा कर्मियों के पास कम से कम पीपर स्प्रे तो होना चाहिए लेकिन वो भी किसी को नहीं मिला. अगर मंगलवार को पीपर स्प्रे होता तो शायद उसी की मदद से इस हत्याकांड को रोका जा सकता था.



कुख्यात बदमाशों को अलग अलग राज्यों की जेलों में ट्रांसफर करने की फ़ाइल का क्या हुआ


जेल सूत्रों का कहना है कि एनआईए ने जब लॉरेंस बिश्नोई, नीरज बवानिया आदि जैसे कुख्यात बदमाशों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की तो ये बात भी सामने आई थी कि ऐसे कुख्यात बदमाशों को दिल्ली से बाहर अलग-अलग राज्यों जैसे असम, तमिलनाडु आदि की जेलों में ट्रांसफर किया जाएगा. जिससे इनकी गतिविधियों पर लगाम लगाई जा सके. चर्चा ये भी चली थी कि फाइल तैयार हो चुकी है लेकिन इस बात को महीनों बीत चुके हैं और अभी तक कुछ भी नहीं हुआ है.



सिर्फ टिल्लू की हत्या ही नहीं, एक महीने के अंदर ये दूसरी हत्या है


2 मई को तिहाड़ जेल में हुई टिल्लू ताजपुरिया की हत्या अकेली नहीं है, बल्कि इससे पहले 14 अप्रैल को तिहाड़ जेल नम्बर 3 में ही प्रिंस तेवतिया नामक बदमाश की हत्या कर दी गयी थी. प्रिंस तेवतिया लॉरेंस बिश्नोई गैंग से ताल्लुक था. यानी लगभग 18 दिन के अंदर ही दोनों विरोधी गैंग के अलग अलग बदमाशों की हत्या की वारदात अतिसुरक्षित कही जाने वाली तिहाड़ जेल में कर दी जाती है. अब जब टिल्लू की हत्या हुई है तो जेल के अंदर और बाहर दोनों ही जगह गैंगवार का खतरा भी मंडरा रहा है.



जेल में मोबाइल आदि चलने के मामले अक्सर आते रहते हैं सामने


जेल की सुरक्षा पर सवाल खड़े हो रहे हैं क्योंकि जेल के अंदर अक्सर मोबाइल ऑपरेट होने के मामले सामने आते रहते हैं. जेल प्रशासन भी समय समय पर चेकिंग अभियान चलाते हुए मोबाइल पकड़ते रहते हैं. 2021 में जब गोगी की हत्या को रोहिणी कोर्ट में अंजाम दिया गया था तो ये बात सामने आई थी कि टिल्लू ताजपुरिया लगातार अपने दोनों शूटरों के साथ फोन पर सम्पर्क में था. 


[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]