कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता राहुल गांधी 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' में व्यस्त है. इसे राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का दूसरा संस्करण भी बताया जा रहा है. 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' मणिपुर के थौबल जिले से 14 जनवरी को शुरू हुई है. यह यात्रा 66 दिनों की है. राहुल गांधी की यह यात्रा 15 राज्यों की क़रीब 100 लोक सभा संसदीय क्षेत्र और 337 विधान सभा क्षेत्र से गुज़रते हुए  20 मार्च को मुंबई में समाप्त होगी.


'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' के दौरान राहुल गांधी 6,700 किलोमीटर से ज़ियादा की दूरी तय करेंगे. राहुल गांधी इससे पहले सितंबर 2022 से लेकर जनवरी 2023 की अवधि में कन्याकुमारी लेकर श्रीनगर तक 'भारत जोड़ो यात्रा' कर चुके हैं. उस दौरान 3500 किलोमीटर की यात्रा में राहुल गांधी ने 12 राज्यों का सफऱ तय किया था.


सियासी वास्तविकता से मुँह मोड़ रही है कांग्रेस


सैद्धांतिक तौर से राहुल गांधी समेत तमाम कांग्रेसी नेता इस यात्रा को आम चुनाव , 2024 से संबंधित नहीं बताते हैं. हालाँकि व्यवहार में ऐसा नहीं है. इन दोनों ही यात्राओं का संबंध वास्तविकता में चुनावी लाभ ही है. कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या ही यह है कि वो सिद्धांत और व्यवहार के फ़र्क़ को लेकर ख़ुद ही संशय में है.


कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है. आज़ादी की लड़ाई में इसका योगदान किसी से छिपा नहीं है. आज़ादी के बाद लंबी अवधि तक केंद्र की सत्ता पर कांग्रेस का ही क़ब्ज़ा रहा है. इन सबके बावजूद कांग्रेस फ़िलहाल अपने सबसे बुरे दौर में है. सरल शब्दों में कहें, तो, कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. लोक सभा चुनाव, 2024 कांग्रेस के भविष्य और अस्तित्व दोनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है.


भरोसा और छवि संकट से जूझ रही है कांग्रेस


यह वास्तविकता है. कांग्रेस के तमाम नेता इसे स्वीकार करें या न करें, लेकिन वास्तविकता बदल नहीं सकती है. भारतीय राजनीति के तहत सिद्धांत और व्यवहार फ़र्क़ नहीं करने का ही नतीजा है कि आज कांग्रेस भरोसे के संकट से भी जूझ रही है. एक समय में जिन-जिन राज्यों में कांग्रेस की तूती बोलती थी, उन राज्यों में कांग्रेस की छवि बेहद ख़राब हो चुकी है. उन राज्यों में लोगों का भरोसा कांग्रेस पर बिल्कुल ही ख़त्म हो चुका है. यहाँ लोगों से तात्पर्य शत-प्रतिशत लोगों से नहीं है, लेकिन उन लोगों से ज़रूर है, जिनके समर्थन के बिना केंद्र की सत्ता के आस-पास भी पहुँचना लगभग नामुमकिन है.



बहुसंख्यक लोगों में भरोसा जगाना ही चुनौती


सबसे पहले तो कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं को इस वास्तविकता को स्वीकार करना होगा कि फ़िलहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी बेहद ताक़तवर स्थिति में है. इसके साथ ही यह बात भी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को संजीदगी से स्वीकार करना होगा कि पार्टी के सामने आगामी लोक सभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी चुनौती नहीं है. इसके विपरीत एक बार फिर से कांग्रेस को लेकर उन बहुसंख्यक लोगों में भरोसा जगाना ही सबसे बड़ी चुनौती है, जो चुनाव के दिन मतदान केंद्रों पर जाकर अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं.


बीजेपी इस रणनीति के हिसाब से बेहद ताक़तवर स्थिति में है. कांग्रेस को यह स्वीकारना ही होगा. इस कसौटी पर कांग्रेस की स्थिति बेहद कमज़ोर है. एक तो भारत में मतदान प्रतिशत ही कम रहता है. लोक सभा चुनाव, 2019 में 67.40% वोटर टर्नआउट था. इसका साफ मतलब है कि उस चुनाव में 32.6 फ़ीसदी मतदाताओं ने मत डाले ही नहीं थे. उसी तरह से 2014 के लोक सभा चुनाव में कुल वोटर टर्नआउट 66.44 फ़ीसदी रहा था या'नी 33.56% मतदाताओं ने वोट डाले ही नहीं.



बीजेपी ने 2014 के आम चुनाव में महज़ 31% हासिल करके भी 282 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं बीजेपी को 2019 में 37.36% हासिल हुए थे, लेकिन वो 303 सीट जीतने में सफल रही थी. इसके विपरीत कांग्रेस 2014 में 19.31% वोट हासिल करके भी महज़ 44 सीट ही जीत पायी थी. वहीं 2019 के चुनाव में कांग्रेस को 19.14% वोट शेयर के साथ 52 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. 


कांग्रेस को वास्तविकता समझने की दरकार


बीजेपी ताक़तवर स्थिति में है. उसे अकेले दम पर केंद्रीय स्तर पर चुनौती देने की स्थिति में कांग्रेस समेत कोई भी दल नहीं है. इसका अभिप्राय यह नहीं है कि देश के अधिकांश या बहुसंख्यक लोग बीजेपी को पसंद करते है. लेकिन जो चुनावी सिस्टम और गणित है, उसमें बीजेपी बाक़ी दलों से बेहद आगे हैं. इस कारण से आगामी लोक सभा चुनाव में भी बीजेपी की जीतने की संभावना बेहद प्रबल है. पूरे देश में अगर कोई विपक्षी दल है, जो बीजेपी के सामने चुनौती पेश कर सकती है, तो वो सिर्फ़ कांग्रेस ही है. इसमें भी किसी तरह से शक-ओ-शुब्हा की गुंजाइश नहीं है. हालाँकि कांग्रेस की दयनीय स्थिति को देखते हुए 2024 में कुछ ख़ास होने की भी संभावना कम ही है.


कांग्रेस के सामने है अस्तित्व का संकट!


बिखरा विपक्ष और उसमें भी उत्तर भारत के राज्यों में कांग्रेस को लेकर लोगों के मन में जिस तरह का संशय है, उसे देखते हुए बीजेपी का पलड़ा तो भारी है ही, कांग्रेस के भविष्य के लिए भी 2024 का चुनाव महत्वपूर्ण साबित होने वाला है.


सवाल यह महत्वपूर्ण नहीं है कि 28 विपक्षी दलों का गठबंधन 'इंडिया' आम चुनाव, 2024 में बीजेपी को लगातार तीसरा कार्यकाल हासिल करने से रोक पायेगा या नहीं. उससे भी गंभीर सवाल है कि क्या कांग्रेस अपने आपको बचा पायेगी, उसकी सीटों की संख्या तीन अंकों में पहुँच पायेगी या फिर पार्टी का प्रदर्शन 2019 से भी बुरा रहने वाला है.


कांग्रेस के सामने तीन अंकों में पहुँचने की चुनौती


कांग्रेस की वर्तमान राजनीतिक ज़मीनी स्थिति और पार्टी को लेकर राज्यवार माहौल की बात करें, तो यह कहा जा सकता है कि उसके लिए आम चुनाव, 2024 में तीन अंकों तक पहुँचना बेहद मुश्किल होने वाला है. जैसी स्थिति है, उसमें 2019 के आँकड़ों को पार करना भी कांग्रेस के लिए चुनौती है. राज्यवार कांग्रेस की वर्तमान स्थिति के विश्लेषण से इसे बेहतर तरीक़े से समझा जा सकता है.


बिहार में कांग्रेस की स्थिति बेहद ख़राब


उत्तर प्रदेश और बिहार एक समय में कांग्रेस की सबसे बड़ी ताक़त वाले राज्यों में शामिल थे. केंद्र की सत्ता पर क़ाबिज़ होने के लिहाज़ से ये दोनों ही राज्य सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं. 2014 और 2019 दोनों चुनाव में बीजेपी के लिए ये दोनों ही राज्य तुरुप का पत्ता साबित हुए. वहीं ये दोनों ही राज्य कांग्रेस के लिए दुःस्वप्न साबित हुए.


कांग्रेस को बिहार में 2019 में एक सीट और 2014 में दो सीट से ही संतोष करना पड़ा था. कांग्रेस का बिहार में वोट शेयर 2014 में 8.40% और 2019 में महज़ 7.70 फ़ीसदी रहा था. यह तब रहा था, जब कांग्रेस....आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी. बिहार के लोगों के बीच कांग्रेस की छवि को लेकर अभी भी बहुत कुछ नहीं बदला है. इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि जो माहौल है, उसके मुताबिक़ आरजेडी और जेडीयू के साथ होने के बावजूद कांग्रेस की सीट बिहार में बढ़ने की बहुत गुंजाइश नहीं है.


उत्तर प्रदेश में फ़ाइदा होने की स्थिति नहीं


उत्तर प्रदेश में तो कांग्रेस की स्थिति और भी दयनीय है. कांग्रेस उत्तर प्रदेश में 2019 में सिर्फ़ एक सीट (वोट शेयर 6.36%) और 2014 में महज़ दो सीट ( वोट शेयर 7.53%) जीत पायी थी. फरवरी-मार्च 2022 में हुए उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में तो कांग्रेस कुल 403 में से दो सीट ही जीत पायी थी. इस चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर महज़ 2.33 फ़ीसदी रहा था.


इन आँकड़ों से ब-ख़ूबी अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के सामने सफाया होने का ख़तरा मंडरा रहा है. आगामी लोक सभा चुनाव में भले ही कांग्रेस का समाजवादी पार्टी से गठबंधन रहेगा, लेकिन उसका कोई ख़ास फ़ाइदा पार्टी को मिल सकता है, इसकी संभावना नहीं दिखती है. मायावती के विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' दूरी बनाने से भी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ गयी हैं.


आम लोगों में कांग्रेस को लेकर नकारात्मक सोच


उत्तर प्रदेश और बिहार के अलग-अलग हिस्सों में सियासी हक़ीक़त का जाइज़ा लेने के बाद कहा जा सकता है कि दोनों ही प्रदेशों में आम लोगों के बीच कांग्रेस को लेकर बेहद नकारात्मक सोच बन गयी है. आम चुनाव, 2024 में अब दो से तीन महीने का ही वक़्त बचा है. इन दोनों ही प्रदेशों में कांग्रेस की छवि को सुधारने या आम लोगों में भरोसा जगाने के लिए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की ओर से कुछ ठोस क़दम उठाने की पहल भी नहीं दिख रही है.


सात राज्यों में कांग्रेस का है व्यापक जनाधार


कांग्रेस तीन अंकों में पहुँचेगी या नहीं यह बहुत हद तक कुछ राज्यों में पार्टी के प्रदर्शन पर निर्भर करता है. इन राज्यों में मुख्य तौर से राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं. ये सारे वो राज्य हैं, जहाँ बीजेपी का सीधा मुक़ाबला कांग्रेस से होता आया है और आगामी लोक सभा चुनाव में भी ऐसा ही होने वाला है. भले ही इन राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन 2014 और 2019 के चुनाव में उतना अच्छा नहीं रहा था, लेकिन आज भी इन राज्यों में कांग्रेस के पास एक बड़ा जनाधार है.


जनाधार होने पर भी सीट जीतना मुश्किल


राजस्थान में 25, गुजरात में 26, मध्य प्रदेश में 29, छत्तीसगढ़ में 11, हरियाणा में 10, उत्तराखंड में 5 और हिमाचल प्रदेश में 4 सीट हैं. इन सात राज्यों में कुल मिलाकर 110 सीट लोक सभा सीट आती हैं. लोक सभा चुनाव, 2019 में इन 110 में से सिर्फ़ तीन लोक सभा सीट पर कांग्रेस जीत पायी थी, जबकि बाक़ी 108 सीट बीजेपी के पास गयी थी. राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में तो कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला था. वहीं कांग्रेस मध्य प्रदेश में एक और छत्तीसगढ़ में दो सीट हासिल कर पायी थी.


उत्तर प्रदेश और बिहार में बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए इन सात राज्यों में से अधिकांश में शत-प्रतिशत सीट जीतने के लक्ष्य के क़रीब पहुंचकर ही बीजेपी 2014 और 2019 में बहुमत हासिल करने में कामयाब हुई थी. आगामी लोक सभा चुनाव में भी बीजेपी की सबसे बड़ी ताक़त यही सारे राज्य साबित हो सकते हैं. पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की नज़र भी इन्हीं नौ राज्यों पर अधिक है.


सात राज्यों में बीजेपी से सीधा मुक़ाबला


राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में पिछले दो लोक सभा चुनाव में प्रदर्शन के आधार पर को कांग्रेस बेहद कमज़ोर स्थिति में दिख रही है. लेकिन सच्चाई भी यही है कि इन राज्यों में कांग्रेस की संभावना 2024 को लेकर सबसे प्रबल है क्योंकि यहीं ऐसे राज्य हैं, जहाँ कांग्रेस का अभी भी एक मज़बूत जनाधार है. अगर इन राज्यों में कांग्रेस ने बीजेपी का वर्चस्व तोड़ते हुए अपने प्रदर्शन में अभूतपूर्व सुधार कर लिया, तो फिर उसके लिए आगामी लोक सभा चुनाव में तीन अंकों में पहुँचना संभव हो सकता है.


यह इतना आसान नहीं होगा. इसका एक बहुत बड़ा कारण है. उत्तर प्रदेश के साथ ही यही वो सात राज्य हैं, जहाँ लोक सभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और हिंदुत्व का मुद्दा सबसे अधिक प्रभावी होता है. उसमें भी 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के बाद इन राज्यों में हिन्दू-मुस्लिम आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण और भी ज़ियादा होगा, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है.


क्या 2019 की तुलना में बेहतर करेगी कांग्रेस?


ऐसे में एक मज़बूत जनाधार होने के बावजूद राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के लिए 2019 के मुक़ाबले प्रदर्शन में सुधार करना या फिर बीजेपी के वर्चस्व को तोड़ना आसान नहीं होगा. उसमें भी नवंबर, 2023 में हुए विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के हाथ से राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सत्ता निकल चुकी है.


इसके साथ ही मध्य प्रदेश की सत्ता पर क़ाबिज़ होने का कांग्रेस का सपना भी चकनाचूर हो चुका है. गुजरात की स्थिति से हम सब ब-ख़ूबी वाक़िफ़ हैं. हिमाचल में सत्ता होने के बावजूद वहाँ की चार सीटों पर लोक सभा चुनाव में बीजेपी को हराना कांग्रेस के लिए दुरूह कार्य ही साबित होने वाला है. हरियाणा में एक या दो सीट पर कांग्रेस की संभावना बन सकती है. उत्तराखंड में पार्टी की स्थिति कमोबेश पहले ही जैसी है.


पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के लिए कुछ ख़ास नहीं


पश्चिम बंगाल और ओडिशा में भी कांग्रेस की स्थिति डवाँ-डोल है. पश्चिम बंगाल में तो पिछली बार के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस दो सीट जीतने में सफल रही थी, लेकिन पिछले पाँच साल में यहाँ कांग्रेस का रक़्बा और भी सिकुड़ गया है. हमने देखा है कि मार्च-अप्रैल 2021 में हुए पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला था. विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' के तहत अगर ममता बनर्जी से कांग्रेस की बात भी बनती है, तो दो सीट पर भी जीत दर्ज करना पार्टी के लिए बड़ी बात होगी. ऐसे भी प्रदेश में बीजेपी की बढ़ती ताक़त को देखते हुए ममता बनर्जी कांग्रेस को अधिक सीटें देने का ख़तरा कतई मोल नहीं ले सकती हैं. अगर वो ऐसा करती हैं, तो यह एक प्रकार से तृणमूल कांग्रेस के भविष्य के लिए आत्मघाती क़दम ही साबित होगा.


ओडिशा में लगातार कमज़ोर हुई है कांग्रेस


आम चुनाव, 2024 में ओडिशा से भी कांग्रेस को कोई ख़ास आस नहीं होनी चाहिए क्योंकि अब यहाँ नवीन पटनायक की बीजू जनता दल को चुनौती देने के लिए बीजेपी ने अपना व्यापक जनाधार तैयार कर लिया है. बीजेपी के उभार से ओडिशा में कांग्रेस के लिए बने रहना ही मुश्किल हो गया है. कांग्रेस को 2019 में यहाँ सिर्फ़ एक लोक सभा सीट पर जीत मिली थी और 2014 में तो खाता तक नहीं खुला था. पिछले पाँच साल में बीजेपी का जनाधार यहाँ बढ़ा ही है, ऐसे में कांग्रेस के लिए ओडिशा में एक सीट को बरक़रार रखना भी मुश्किल काम ही होगा.


झारखंड में सिकुड़ता जनाधार समस्या


कांग्रेस को झारखंड में 2019 और 2014 दोनों ही चुनाव में खाली हाथ रहना पड़ा था. यहाँ की कुल 14 में से 12 लोक सभा सीट पिछले दो चुनाव में बीजेपी के खाते में ही गयी है. ऐसे भी यहाँ कांग्रेस की पहचान हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा की सहयोगी के तौर पर रह गयी है. लोक सभा चुनाव के लिहाज़ से झारखंड में कांग्रेस के जनाधार में पिछले डेढ़ दशक से कोई ख़ास सुधार नहीं हुआ है, बल्कि स्थिति लगातार बिगड़ ही रही है.


उत्तर-पूर्वी राज्यों में संकट में है कांग्रेस


सिक्किम समेत उत्तर-पूर्व के तमाम राज्यों की बात करें, तो कांग्रेस के लिए कोई ख़ास मौक़ा 2024 में नहीं दिखता है. सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा, असम, मिज़ोरम और मेघालय को मिलाकर कुल 25 लोक सभा सीट हैं. इनमें सबसे ज़ियादा 14 सीट असम में हैं. पूर्वोत्तर के राज्यों में असम से ही कांग्रेस के लिए थोड़ी उम्मीद बची है. हालाँकि असम में भी 2019 और 2014 के मुक़ाबले  बेहतर प्रदर्शन करने की स्थिति में कांग्रेस नज़र नहीं आ रही है. कांग्रेस असम में 2019 और 2014 दोनों ही आम चुनाव में तीन-तीन सीट जतने में सफल रही थी.


मणिपुर से ही राहुल गांधी ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा की शुरूआत की है. इसके अलावा पिछले कुछ महीनों में भले ही मणिपुर हिंसा को लेकर कांग्रेस सक्रिय रही है, इसके बावजूद सियासी हक़ीकत यही है कि असम को छोड़कर उत्तर-पूर्व के बाक़ी राज्यों में कांग्रेस के लिए एक भी सीट पर जीत दर्ज करना बहुत बड़ी बात होगी. पिछले एक दशक में असम के साथ ही इन तमाम राज्यों में बीजेपी लोक सभा चुनाव के लिहाज़ से बेहद मज़बूत हुई है. ऐसे में कांग्रेस के लिए असम में भी पिछला प्रदर्शन दोहराना मुश्किल होगा.


दक्षिण भारतीय राज्यों से भी बहुत उम्मीद नहीं


कांग्रेस को लोक सभा चुनाव 2019 में अधिकांश सीट दक्षिण भारतीय राज्यों केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना से हासिल हुई थी. इस चुनाव में कांग्रेस को केरल से 15, तमिलनाडु से 8 और तेलंगाना से तीन सीट हासिल हुई थी. आम चुनाव, 2019 में कांग्रेस को आधी सीट (52 में से 26) इन तीन राज्यों से ही मिली थी.


केरल में संख्या बढ़ने की संभावना नहीं


देश के तमाम राज्यों में निराशा मिलने के बावजूद 2019 में केरल से कांग्रेस को भरपूर समर्थन मिला था. केरल में फ़िलहाल बीजेपी के लिए कोई ख़ास अवसर नहीं है. यहाँ शुरू से ही कांग्रेस की अगुवाई में यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) या'नी सीपीआई (एम) की अगुवाई में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट के बीच सीधा मुक़ाबला होता आया है. केरल में कुल 20 लोक सभा सीट है. कांग्रेस को यहाँ 2019 में 15 और 2014 में 8 सीट पर जीत मिली थी. वहीं 2009 के आम चुनाव में कांग्रेस यहाँ13 सीट पर जीत गयी थी.


केरल में बारी-बारी से कांग्रेस और सीपीएम पर भरोसा जताने की एक परंपरा सी रही है. इस लिहाज़ से कांग्रेस के लिए 2019 की तरह केरल में 15 सीटें जीतना आसान नहीं होगा. उसमें भी कांग्रेस और सीपीआई (एम) विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' एक-दूसरे के सहयोगी हैं. ऐसे में यहाँ सीट बँटवारे पर दोनों ही दलों के बीच किस तरह की सहमति बनती है, इस पर भी सबकी निगाह है. इतना तो ज़रूर कहा जा सकता है कि आपसी सहमति से केरल की सभी सीटों पर विपक्षी गठबंधन की जीत हो सकती है, लेकिन कांग्रेस की सीट 2019 के मुक़ाबले नहीं बढ़ने वाला है. यह तय है.


तमिलनाडु में भी सीट बढ़ाना मुश्किल


तमिलानडु में पिछली बार कांग्रेस 8 लोक सभा सीट जीतने में सफल रही थी. इन सीटों पर कांग्रेस की जीत में बड़ा योगदान डीएमके के साथ गठबंधन का रहा था. तमिलनाडु में कुल 39 लोक सभा सीट है. यहाँ कांग्रेस की स्थिति डीएमके के छोटे भाई की तरह है. डीएमके के सहयोग के बिना तमिलनाडु में कांग्रेस के लिए कोई ख़ास स्कोप नहीं है.


कांग्रेस जब 2014 में तमिलनाडु की सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ी थी, तो उसका खाता तक नहीं खुला था. जबकि बतौर डीएमके सहयोगी तमिलनाडु में कांग्रेस 2009 के लोक सभा चुनाव में 8 और 2004 में 10 सीट जीतने में सफल रही थी. आगामी लोक सभा चुनाव में भी कांग्रेस तमिलनाडु में डीएमके की सहयोगी रहेगी. इसके बावजूद उसके लिए पिछला प्रदर्शन दोहराना आसान नहीं होगा. ऐसे भी तमिलनाडु की जनता का जो रुख़ रहता है, उसके मुताब़िक इस बार के चुनाव में डीएमके-कांग्रेस गठबंधन के मुक़ाबले एआईएडीएमके की दावेदारी अधिक मज़बूत दिख रही है.


तेलंगाना में एक-दो सीट का हो सकता है लाभ


तेलंगाना की बात करें, तो यहाँ के. चंद्रशेखर राव से सत्ता छीनकर कांग्रेस की उम्मीदें पिछली बार की तुलना में ज़रूर बढ़ गयी है. हालाँकि तेलंगाना में लोक सभा सीट कम होने और प्रदेश की राजनीति में बीजेपी के बढ़ते दबदबे से कांग्रेस के लिए बहुत अधिक संख्या बढ़ाना आसान नहीं होगा.


यहाँ कुल 17 लोक सभा सीट है. 2019 में केसीआर की भारत राष्ट्र समिति को 9, बीजेपी को 4 और कांग्रेस को 3 सीटों पर जीत मिली थी. असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के खाते में एक सीट गयी थी. अभी भी केसीआर प्रदेश की राजनीति में मज़बूत दख़्ल रखते हैं और लोक सभा चुनाव में बीजेपी को भी यहाँ से बहुत उम्मीदें है. बीजेपी एड़ी-चोटी का ज़ोर भी लगा रही है. ऐसे में कांग्रेस अधिक से अधिक एक-दो सीट बढ़ा ले, तो वहीं बड़ी बात होगी.


कर्नाटक में कांग्रेस की बढ़ सकती है सीट


दक्षिण भारत में कर्नाटक ही एकमात्र राज्य है, जहाँ कांग्रेस की सीट बढ़ने की भरपूर गुंजाइश और संभावना दिख रही है. मई 2023 में विधान सभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल कर कांग्रेस ने कर्नाटक की सत्ता से बीजेपी को बे-दख़्ल कर दिया था. उसके बाद से ही कर्नाटक को लेकर कांग्रेस की उम्मीद को बल मिला है. यहाँ कुल 28 लोक सभा सीट है और कांग्रेस को 2019 में इनमें से सिर्फ़ एक सीट पर जीत मिली थी. वहीं बीजेपी 25 सीट जीतने में सफल रही थी. हालाँकि पिछले पाँच साल में कर्नाटक में बीजेपी की पकड़ कमज़ोर हुई है. बी.एस. येदियुरप्पा की सक्रियता घटने की वज्ह से भी ऐसा हुआ है.


बीजेपी-जेडीएस गठबंधन से बढ़ी मुश्किल


विधान सभा चुनाव, 2023 के मुक़ाबले आम चुनाव, 2024  के लिए कर्नाटक में सियासी समीकरण बदल चुके हैं. आगामी लोक सभा चुनाव में यहाँ बीजेपी और एच डी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस के बीच गठबंधन रहेगा. यह पहलू कांग्रेस के लिए सीट बढ़ाने की उम्मीदों को झटका देने वाला साबित हो सकता है.


ऐसे भी लोक सभा चुनाव में कर्नाटक से बीजेपी को पिछले 4 चुनाव से भरपूर समर्थन मिलते रहा है, चाहे राज्य में सत्ता कांग्रेस की ही क्यों न रही हो. बीजोपी को 2004 में 18 सीट और 2009 में 19 सीट पर जीत मिली थी. 2014 में बीजेपी के खाते में 17 सीटें गयी थी. पिछली बार तो बीजेपी ने प्रदेश में 25 सीटों पर कमल का परचम लहरा दिया था. इन तथ्यों को देखते हुए प्रदेश की सत्ता में होने के बावजूद कांग्रेस के लिए कर्नाटक में बहुत अधिक सीट बढ़ाना आसान नहीं रहने वाला है.


आंध्र प्रदेश में खाता खोलना होगा मुश्किल


दक्षिण भारत में एक राज्य ऐसा है, जहाँ कांग्रेस की स्थिति बेहद दयनीय है. यह राज्य आंध्र प्रदेश है. तेलंगाना के अलग राज्य बनने के बाद आंध्र प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस के लिए बहुत कुछ बचा नहीं है. आंध प्रदेश की राजनीति पर 2019 से वाईएस जगनमोहन रेड्डी का प्रभुत्व क़ायम है. वाईएसआर कांग्रेस की मौजूदा ताक़त को देखते हुए आंध्र प्रदेश में तमाम विपक्षी दलों के लिए 2024 की राह बेहद काँटों भरी नज़र आ रही है.


यहाँ कांग्रेस की स्थिति का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि 2019 के लोक सभा चुनाव और विधान सभा चुनाव में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुल पाया. पिछले पाँच साल में जगनमोहन रेड्डी की लोकप्रियता और बढ़ी ही है. ऐसे में यहाँ से कांग्रेस की उम्मीदें तक़रीबन शून्य ही है.


महाराष्ट्र में कुछ सीट बढ़ा सकती है कांग्रेस


इन राज्यों के अलावा तीन राज्य ऐसे बचते हैं, जहाँ कांग्रेस का प्रदर्शन कैसा रहेगा, वो गठबंधन में तालमेल पर निर्भर है. ये राज्य हैं..महाराष्ट्र, पंजाब और दिल्ली. महाराष्ट्र में पिछली बार कांग्रेस को सिर्फ़ एक सीट पर जीत मिली थी. वहीं 2014 में कांग्रेस के खाते में महज़ दो सीट गयी थी. इस बार यहाँ एनसीपी (शरद पवार गुट) और शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और कांग्रेस के बीच गठबंधन रहेगा. ऐसे में कांग्रेस को चुनाव लड़ने के लिए ही ज़ियादा सीट नहीं मिलेगी.उसमें भी महाराष्ट्र में बीजेपी, शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) और एनसीपी (अजीत पवार गुट) के एक पाले में होने से विरोधी खेमे की राह बेहद मुश्किल हो गयी है. ऐसे में कहा जा सकता है कि पिछले दो चुनाव के मुक़ाबले 2024 में कांग्रेस को प्रदेश में चंद सीटों का फ़ाइदा हो सकता है, लेकिन सीटों की संख्या बहुत बढ़ जायेगी, इसकी संभावना कम ही है.


पंजाब: कांग्रेस की सीट बढ़ने की संभावना नहीं


पंजाब में कुल 13 और दिल्ली में 7 लोक सभा सीट है. इन दोनों ही प्रदेशों में अगर सीटों पर सहमति बन जाती है, तो, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी गठबंधन के तहत चुनाव लड़ेगी. फरवरी 2022 में पंजाब की सत्ता हासिल कर आम आदमी पार्टी के हौसले बेहद बुलंद है. आम आदमी पार्टी जिस स्थिति में है, पंजाब में विपक्षी गठबंधन के तहत 2024 में कांग्रेस को दो से चार सीट से अधिक देने पर तैयार होगी, इसकी संभावना बेहद कम है.


अगर पंजाब में कांग्रेस अकेले दम पर चुनाव लड़ती है, तो उसके लिए स्थिति और भी दयनीय हो जायेगी. पंजाब में कांग्रेस को 2019 में 8 सीट पर जीत मिली थी, जबकि 2014 में यहाँ 3 लोक सभा सीट कांग्रेस के खाते में गयी थी. इतना तो तय है कि पंजाब में कांग्रेस की सीट 2019 के मुक़ाबले नहीं बढ़ने वाली है.


दिल्ली में कांग्रेस के लिए बहुत उम्मीद नहीं


पिछले दो लोक सभा चुनाव से कांग्रेस दिल्ली में कोई भी सीट नहीं पायी है. केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में सभी सात लोक सभा 7 सीट पर 2019 और 2014 में बीजेपी जीतने में सफल रही थी. इस बार गठबंधन के तहत अगर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मिलकर चुनाव लड़ती है, तो बीजेपी के लिए दिल्ली की सभी सीटों पर जीतना आसान नहीं होगा. हालाँकि आम आदमी पार्टी से सीटों पर सहमति बनने के बावजूद दिल्ली में कांग्रेस बमुश्किल एक या दो ही सीट बढ़ा सकती है. लेकिन ऐसा तभी होगा, जब आम आदमी पार्टी का वोट पूरी तरह से कांग्रेस को ट्रांसफर हो.


केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में 5 लोक सभा सीट है. वहीं केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में एक लोक सभा सीट है. जम्मू-कश्मीर की राजनीति में बीजेपी, पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के बीच लड़ाई है. यहाँ वर्तमान में पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस और बीजेपी का जनाधार कांग्रेस से बेहतर है. सीटों की कम संख्या को देखते हुए भी कांग्रेस के लिए यहाँ से बहुत उम्मीदें नहीं रह जाती हैं. इनके अलावा गोवा में कुल दो लोक सभा सीट है. कांग्रेस को 2019 में यहाँ एक सीट हासिल हुई थी, जबकि 2014 में खाता नहीं खुला था. केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी, अंडमान और निकोबार, चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली एवं दमन और दीव, लक्षद्वीप में कुल मिलाकर 6 लोक सभा सीट हैं. कांग्रेस के लिए संख्या के तौर पर इन सीटों पर जीत से भी कुछ ख़ास लाभ नहीं होने वाला है.


कुल मिलाकर वर्तमान में कांग्रेस की जो वास्तविक राजनीतिक स्थिति है, उसके मद्द-ए-नज़र पार्टी के कर्ता-धर्ता या कहें शीर्ष नेतृत्व को सबसे पहले आम लोगों में छवि में सुधार और भरोसा पैदा करने पर ध्यान देने की ज़रूरत है. पार्टी की पहली प्राथमिकता यही होनी चाहिए. इस पहलू पर ध्यान दिए बिना कांग्रेस के लिए 2019 की तुलना में आम चुनाव, 2024 में बेहतर प्रदर्शन करना बेहद मुश्किल और चुनौतीपूर्ण है.


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