राहुल गांधी के 2019 वाले बयान पर सूरत सेशंस कोर्ट में जो केस दायर किया गया था, उस पर फैसला अभी सुनाया गया है. कोर्ट के इस फैसले को दंड के तौर पर न लेते हुए न्यायालय पर लांछन लगाते हुए केवल इस विषय पर माफी मांगना छोड़कर सिर्फ राजनीति करने का एजेंडा उन्होंने अपनाया है. ये हमारे लिए कोई नई बात नहीं है. ये तो गांधी परिवार के परिपाटी रही है.


जब बहुमत से देश में कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस जीतकर आए थे, उस वक्तराहुल गांधी के परनाना नेहरू जी नेहरू जी के विद्वेषपूर्ण व्यवहार के चलते वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए थे. नेताजी को उस वक्त देश छोड़कर जाना पड़ा था और उनकी जो रहस्यमय मौत हुई, उसका राज आज तक आजाद भारत में नहीं सामने आ पाया.


कांग्रेस ने गलत किया, माफी नहीं मांगी


इंदिरा गांधी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए न्याय-व्यवस्था का उल्लंघन करके पूरे देश पर आपातकाल लगाया. सेंशरशिप जारी की. जयप्रकाश नारायण, अटल बिहार वाजपेयी, आचार्य कृपलाणी जैसे देशभक्त लोगों को जेल में डाला. राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ पर पाबंदी लगाई. इमरजेंसी पर जनता की जो प्रतिक्रिया आई, उस पर न तो इंदिरा ने माफी मांगी और न संजय गांधी ने माफी मांगी. उन्होंने सख्ती से नसबंदी उस वक्त कराई थी और इस देश का लोकतंत्र संकट में लाया था. उस वक्त भी उन्होंने माफी नहीं मांगी.


राजीव गांधी ने 1984 में इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद देश में जो सिखों का नरसंहार हुआ था, उसके बाद एक रिएक्शन दिया कि बड़ा पेड़ जब गिरता है तो जमीन हिलती है. इतना कहकर वो बाहर निकल गए. माफी मांगना उन्होंने भी ठीक नहीं समझा. आज तक सिखों के बारे में कभी क्षमा याचना नहीं की. राहुल गांधी ने सांसद होते हुए अपनी सत्ताधारी पार्टी के मनमोहन सिंह जब प्रधानमंत्री थे, उस वक्त उन्होंने एक अध्यादेश निकाला था, उस अध्यादेश की भर्त्सना करते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस में उस अध्यादेश को फाड़ दिया. प्रधानमंत्री का अपमान किया. उसके बाद भी उनको माफी मांगने उचित नहीं लगता. ये इनकी पुरानी परंपरा रही है.


पवन खेड़ा को लेकर एक्शन, राहुल पर क्यों नहीं?


पवन खेड़ा की गिरफ्तारी को लेकर कांग्रेस पार्टी ने जो हलचल दिखाई और सुप्रीम कोर्ट तक भागदौड़ की. लेकिन राहुल गांधी के लिए कुछ भी व्यवस्था नहीं की गई. उनका एजेंडा साफ है. राहुल गांधी को माफी नहीं मांगनी है और इस मुद्दे पर उनको राजनीति करनी है. देश में ऐसी राजनीतिक रोटियां सेंकनेवालों का एजेंडा लोगों को पता चल गया. देश में उन्होंने 15 दिन का जो आंदोलन रखा, उसमें कोई समर्थन नहीं मिल रहा है. अब विदेशों में जाकर जो कुछ भी रिएक्शन ले रहे हैं, विदेशी ताकतें जो कि भारत की बढ़ती ताकतें और मोदी जी की ग्लोबलशिप जिनको बर्दाश्त नहीं हो रहीं, वो देश के बाहर रिएक्ट कर रहे हैं. कांग्रेस पार्टी इस पर उनका धन्यवाद कर रही है. मुझे ऐसा लगता है कि ये हास्यस्पद कार्यक्रम कांग्रेस पार्टी, उनके नेता राहुल गांधी, वे सब लोग कर रहे हैं. 


मुझे लगता है कि उनको भी ये सोचना चाहिए कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, ये न्याय-व्यवस्था का, संवैधानिक संस्थाओं का आदर करने वाला देश है. यहां अमीर-गरीब हो, राजा-रंक हो, सबके लिए कानून एक समान है. राहुल गांधी को भी इस कानून का अनुकरण करते हुए जो भी सजा मिली है, उनका अधिकार है, अगर वे अपील करना चाहते हैं तो ऊपर जा सकते हैं. राहुल की तरफ से ये बयान की जनता की अदालत में लडू़ंगा, विदेशों में बयान देकर इस तरह का माहौल खड़ा करना, ये उनको शोभा नहीं देता है. कांग्रेस पार्टी को जरूर इसका अवलोकन करना चाहिए.   


किसी देश की अंदरूनी राजनीति में नहीं दी दखल


आज तक भारत ने कभी किसी देश में मोदी जी के नैतिक कैपेसिटी होते हुए भी हमने किसी देश के आंतरिक राजनीति पर प्रतिक्रिया नहीं दी है.  देश के बाहर जाकर ये हमारी परिपाटी रही है कि अटल जी जिस वक्त नरसिम्हा राव सरकार के समय डेलिगेशन का नेतृत्व करते हुए पाकिस्तान गए थे, उस वक्त उन्होंने सरकार की तारीफ की थी. वहां उन्होंने जवाब में कहा था कि जब मैं संसद में होता हूं तो विपक्ष का नेता होता हूं, मैं देश की सीमा के बाहर जब जाता हूं और देश को रिप्रजेंट करता हूं तो मैं देश की भर्त्सना नहीं कर सकता. ये हमारी संस्कृति रही है. मुझे ऐसा लगता है कि सबको इसे मानना चाहिए.


राहुल गांधी देश में कुछ नहीं बोलते और विदेशों में जाकर बोलते हैं. इसकी वजह से उनकी विश्वसनीयता कम हुई है. लोग उनको एक मजाकिया के तौर पर लेने लगे हैं. मुझे ऐसा लगता है कि कांग्रेस पार्टी को जरूर इस पर सोचना चाहिए.


[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]