ग्लोबल वार्मिंग के भयावह दौर की हो चुकी है शुरुआत, नहीं चेती दुनिया तो मानवता हो जाएगी फना
धरती का प्रादुर्भाव एक गर्म दहकते आकाशीय पिंड के रूप में आकाशगंगा में व्यापक उथल पुथल के नतीजे के रूप में हुआ, पर सही मायनो में कहानी इसके धीरे धीरे ठंडी होने से शुरु हुई. अब उसके उलट धरती की कहानी अब उसके गर्म होने की कहानी बनती जा रही है. वैसे हमारी धरती अक्सर गरम और ठंढा होती रही है पर बहुत धीरे धीरे, इतनी धीरे कि कुछ डिग्री तापमान बदलने में हजारों कौन कहे लाखों साल लगते रहे हैं. बीते समय के जलवायु और तापमान का आकलन प्राकृतिक गुफा में जमे लवणों की परत, मूंगा, शंख और घोंघे जैसे जीवों के खोल के अध्ययन के आधार पर किया जाता है. इसके आधार पर स्पष्ट है कि पिछले कुछ ही सालो में ही पृथ्वी का औसत तापमान कम से कम पिछले एक लाख बीस हज़ार साल के औसत तापमान को पार कर रहा है, यानी अभी का वैश्विक औसत तापमान पिछले एक लाख बीस हज़ार सालो में अधिकतम है.
तबाही की तरफ दौड़ रहे हैं हम
पृथ्वी मानव जनित कारणों से सिर्फ 150 साल में ही तबाही के स्तर तक गरम हो चुकी है, यानी बहुत तेजी से गर्म हो रही है. अगर मानवीय गतिविधियां पृथ्वी के तापमान और जलवायु के संतुलन को नहीं बिगाड़ती तो ऐसे हालात कम से कम अगले सवा लाख साल तक पैदा नहीं होते. हालांकि, पृथ्वी के तापमान में बढ़ोतरी और जलवायु में परिवर्तन का एहसास 1972 में हुए स्टोकहोम कांफ्रेंस आते-आते ही हो चुका था, पर हम अपने नये नये तरीको से इतने आश्वस्त थे कि यह स्वीकार करना हमने मुनासिब नहीं समझा. पिछले कुछ दशको में बढ़ते तापमान से होने वाले दुष्परिणाम वैश्विक स्तर पर छिटपुट सामने आने लगे थे, पर पिछले कुछ सालों में अचानक अफरातफरी का माहौल बनने लगा है, गर्मी और तापमान के रिकॉर्ड तेजी से टूटने लगे हैं.
यूरोप, उत्तरी अमेरिका की जानलेवा गर्मी, कैलिफ़ोर्निया से ऑस्ट्रेलिया तक फैली जंगल की आग, मौसम की चरम परिस्थितियां जिसमें हिमाचल से उतर पूर्व तक बादल फटने से लेकर विध्वंसक होते चक्रवात शामिल हैं. पिघलते हिमखंड जैसी अनेक घटनाएं हमारी चिंता को और बढ़ाते हैं. इनका प्रसार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है. बढ़ते तापमान का अंदाजा वैश्विक औसत तापमान, जिसकी गणना पूरी पृथ्वी के धरती और समुद्र के ऊपर हजारों जगह पर दिन और रात में मापे गए तापमान के औसत, से लगाया जाता है, वह बेतहाशा बढ़ता हुआ पाया गया है!
अब तक के दस सबसे गर्म वर्ष 2005 के बाद ही पाए गए औए उनमें से आठ सबसे गर्म साल तो 2015 के बाद के ही हैं. पिछले जून से अगस्त में गर्मी के प्रसार को देखा जाये तो वर्तमान वर्ष निश्चित रूप से दस सबसे गर्म सालों में होगा, वैसे बीते अगस्त को अब तक के सबसे ‘गर्म अगस्त’ होने की घोषणा विश्व मौसम संगठन पिछले हप्ते ही कर चुका है, जो जब से तापमान मापन की शुरुआत हुई है, तब से बीते जुलाई के बाद का यह दूसरा सबसे गर्म महीना भी था.
गरमी से चौतरफा त्राहि-त्राहि
बीता जून, जुलाई और अगस्त का महीना गर्मी के नए प्रतिमान के लिहाज से से इतिहास में दर्ज हो गया. जून का महीना अब तक का सबसे गर्म जून रहा. बात यही नहीं रुकी, जुलाई की शुरुआत में ही पृथ्वी का वैश्विक औसत तापमान ऐतिहासिक रूप से 3 तारीख को 17 डिग्री सेंटीग्रेड के पार चला गया और 6 जुलाई को ये आंकड़ा 17.18 डिग्री सेंटीग्रेड तक जा पहुँचा. जो पिछले रिकॉर्ड 13 अगस्त 2016 के तापमान 16.8 डिग्री सेंटीग्रेड से एक छलांग जैसा था. 3-10 जुलाई का सप्ताह सबसे गर्म सप्ताह पाया गया जिसमें हर दिन तापमान 17 डिग्री सेंटीग्रेड से ऊपर रिकॉर्ड किया गया. जुलाई के 31 में से 21 दिन अब तक से सबसे गर्म दिन साबित हुए और फलस्वरूप जुलाई 2023 ना सिर्फ सबसे गर्म जुलाई परन्तु अब तक सबसे गर्म महीना भी रहा. यूरोपीय संघ (EU) के कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) के मुताबिक गत जुलाई में विश्व का औसत तापमान 16.95 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जो 2019 में दर्ज सबसे अधिक औसत तापमान से एक तिहाई (0.33) डिग्री सेल्सियस अधिक है. वहीं पिछले तीस साल के जुलाई के औसत तापमान से ये 0.7 डिग्री सेंटीग्रेड ज्यादा है. नासा के मुताबिक, जुलाई महीने में अमेरिका, नॉर्थ अफ्रीका और अंटार्कटिका में सामान्यतः औसत तापमान से 4 डिग्री सेल्सियस तक अधिक गर्म रहे. वहीं, अगर इस जुलाई के तापमान की तुलना 1951 से 1980 के बीच जुलाई के औसत तापमान से करें तो तापमान 1.18 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा. जबकि पूर्व औद्योगिक काल के जुलाई के औसत तापमान से यह 1.54 डिग्री ज्यादा का छलांग था.
मानवीय अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न!
गर्मी की मार जुलाई तक नहीं रुकी बल्कि अगस्त भी बुरी तरह प्रभावित हुआ, जिसमें महीने का औसत तापमान 16.82 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है जो पूर्व औद्योगिक काल के जुलाई के औसत तापमान से बीते जुलाई की ही भांति 1.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा है. सी3एस के मुताबिक मौजूदा अगस्त का तापमान पिछले सबसे गर्म अगस्त (2016 और 2020) से 0.31 और अगस्त के औसत तापमान से 0.71 डिग्री सेल्सियस ज्यादा है. 2023 में अब तक के औसत गर्मी का आकड़ा देखें तो वैश्विक तापमान अब तक का साल 2016, जो अब तक का सबसे गर्म साल रहा है, के बाद दूसरा सबसे गर्म साल होने की ओर इशारा करता है, हालांकि, अगले चार महीनो का जलवायु भी निर्णायक हो सकता है. वैसे अल नीनो की के जोर पकड़ने से आशंका है कि 2023 अब तक का सबसे गर्म साल दर्ज हो जाए. पृथ्वी के तापमान की बढ़ोतरी की गणना में आमतौर किसी खास दिन, सप्ताह, महीने या फिर पूरे साल का औसत तापमान एक महत्वपूर्ण मानक होता है परन्तु उससे भी महत्वपूर्ण मानक औसत तापमान में समय के साथ आने वाला तुलनात्मक रूप से बड़े स्तर का बदलाव है. ऐसा देखा गया है कि वैश्विक तापमान का नया रिकॉर्ड अक्सर पिछले रिकॉर्ड से एक डिग्री के 100वें या 10वें भाग के अंतर से टूटता है, पर विगत जुलाई और अगस्त में तो धरती के तापमान में जैसे उछाल ही आ गया हो. यह एक असामान्य परिस्थिति और खतरे की घंटी है और तापमान के बढ़ोतरी में एक नए दौर की शुरुआत है जो आने वाले समय में और गति पकड़ेगा. अल नीनो की शुरुवात के साथ जून से जारी वैश्विक स्तर पर मौसमी चरम की घटनाएं इसे भयावह बना रही है. इस भयावहता को भांपते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेस ने चेतावनी दी कि "अब वैश्विक गर्मी का दौर समाप्त हुआ" और "वैश्विक उबाल का काल आ गया है." इस बढ़ते तापमान को न्यू नॉर्मल के रूप में स्वीकार करना निश्चय ही खुद के विनाश को स्वीकार करना है. इसी जुलाई में असहनीय गर्मी के साथ हमारे समुद्र पर सबसे कम बर्फ़ देखी गयी है जो ना सिर्फ आने वाले भविष्य के लिए बल्कि हमारे वर्तमान के लिए भी गंभीर चेतावनी है. हमें खुद के लिए ना सही कम से कम आनेवाली पीढ़ियों के लिए चेतना होगा क्योंकि वर्तमान जीवन शैली के साथ पर्यावरण के अनुसार अनुकूलन बनाने की भी एक सीमा है. सीमा के बाहर विध्वंस की रेखा को हमें यहीं मिटाना होगा. और ये हमारी गतिविधियों में आमूलचूल परिवर्तन लाये बिना संभव नहीं है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]