(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
लिटमस टेस्ट में फेल योगी
पूरे देश में बीजेपी के स्टार प्रचारक बन चुके योगी आदित्यनाथ की चमक यूपी के उपचुनाव नतीजों ने मद्धिम कर दी है. बात सिर्फ़ योगी और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के संसदीय क्षेत्र हारने की नहीं, बल्कि लोकसभा के सेमीफ़ाइनल में धड़ाम हो जाने जैसी है. योगी ने खुद आगे आकर हार को तो स्वीकार तो कर लिया है, लेकिन लिटमस टेस्ट में फ़ेल होने के बाद उनके इक़बाल पर फ़र्क़ ज़रूर पड़ेगा. साथ ही उनके राजनीतिक फ़ैसलों और कार्यप्रणाली पर भी असर साफ दिखेगा.
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने सामाजिक समीकरणों को साधने के लिए कड़े फ़ैसले लिए जाएंगे. साथ ही संगठन मंत्री सुनील बंसल समेत दूसरे प्रबंधकों को भी आलाकमान की तरफ़ से नए दिशानिर्देश जारी किया जाना तय है. क्योंकि सबसे बड़ी चिंता सपा-बसपा केमेस्ट्री हिट होने से लोकसभा चुनावों पर पड़ने वाले असर को लेकर है. 25 साल पुराना इतिहास न दोहराया जाए इसके लिए बीजेपी आलाकमान जल्द ही कुछ कड़े फ़ैसले ले सकता है.
यह बात 1993 की है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन हुआ था. तब उछला था नारा, "मिले मुलायम कांशीराम हवा में उड़ गए जय श्रीराम." दरअसल इस चुनाव से एक साल पहले कल्याण सिंह को बर्खास्त कर उत्तर प्रदेश में राष्ट्पति शासन लगाया गया था. कल्याण सिंह के नेतृत्व में बीजेपी सत्ता में वापसी के लिए आश्वस्त भी थी. हो क्यों न, कल्याण ने राम मंदिर निर्माण और बाबरी विध्वंस के लिए अपनी सरकार गंवाई थी.बुधवार को गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा चुनाव के लिए हुए मतगणना के दौरान बार-बार लोगों को वही दौर याद आया. अब भले ही मुलायम और कांशीराम सीधे परिदृश्य में नहीं हैं, लेकिन उनके उत्तराधिकारी अखिलेश और मायावती एक बार फिर साथ आए और पूरा परिदृश्य ही बदल दिया. रामभक्त योगी यूपी के मुख्यमंत्री हैं. लखनऊ से त्रिपुरा तक सब जगह भगवा लहरा रहा है लेकिन यहां एसपी-बीएसपी मिले तो बीजेपी हार गई.
नतीजों ने दिए गहरे घाव
उत्तर प्रदेश की इन दोनों लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे भारतीय जनता पार्टी को गहरे घाव देकर जा रहे हैं. दरअसल गोरखपुर सीट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और फूलपुर सीट उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे से खाली हुई थी. ऐसे में इन दोनों सीटों पर हार ने बीजेपी को बैकफुट पर ला दिया है. फिलहाल बीजेपी के पास प्रदेश सरकार के एक साल पूरे होने पर हुए इस चुनाव में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के गढ़ में सीटें हारने से जुड़े सवालों के जवाब नहीं हैं.
आपसी खींचतान पड़ी भारी
दरअसल दोनों सीटों पर बीजेपी को आपसी खींचतान भारी पड़ी है. गोरखपुर में नगर विधायक राधामोहनदास अग्रवाल से योगी की पुरानी नाराजगी जगजाहिर है और क्षेत्रीय अध्यक्ष धर्मेंद्र सिंह पहले मेयर और फिर लोकसभा का टिकट ना मिलने से नाराज़ रहे. हालात ये थे कि पूरा चुनाव योगी के सहारे लड़ा जा रहा था और उन्हें खुद 16 सभाएं करनी पड़ीं. वहीं फूलपुर में बनारस के पूर्व मेयर को प्रत्याशी बनाना आम कार्यकर्ता हजम न कर सके. परिणाम स्वरूप दोनों जगह ज्यादातर कार्यकर्ता प्रचार में तो निष्क्रिय रहे ही, वोटिंग के दिन भी घर से नहीं निकले. ये माहौल बदलने के लिए अब ऊपर से नीचे तक कील-कांसे दुरुस्त करने में पार्टी जुटेगी.
देरी से चुनाव करा फंसी बीजेपी
चुनाव में देरी कराने का फ़ैसला ही बीजेपी को भारी पड़ गया. खुद अपनी फूलपुर सीट न बचवा सके उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने इन चुनावों को 2019 के लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल करार दिया था. चुनाव परिणामों ने बीजेपी को यह सेमीफाइनल हरा दिया है. ऐसे में अब 2019 के लिए चुनौती बढ़ गयी है. वैसे माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की सीटों पर चुनाव में विलंब से भी यह स्थिति आयी है. यदि समय रहते चुनाव हो जाते तो सपा-बसपा को मिलने का मौका नहीं मिलता.
उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार बने एक साल हो गया है. ऐसे में जनता की उम्मीदों की पोटली खाली रह जाने का खामियाजा भी बीजेपी को भुगतना पड़ रहा है. नतीजों से महागठबंधन की राह भी आसान हो गयी है. विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस तो साथ थे ही, उपचुनावों में सपा-बसपा ने साथ आकर संभावनाओं को और मजबूत किया है. सपा-बसपा-कांग्रेस के साथ अजित सिंह की अगुवाई वाले आरएलडी के जुड़ने की भी पूरी उम्मीद है. ऐसे में यह महागठबंधन निश्चित रूप से बीजेपी के लिए चुनौती साबित होगा. अगले कुछ महीनों में तस्वीर साफ होगी और बीजेपी को भी नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)