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किसान आंदोलन 2.0 की आहट और दिल्ली में एक महीने के लिए धारा 144... चुनाव से पहले सरकार के लिए एक और चुनौती

किसानों ने एक बार फिर से आंदोलन का ऐलान कर दिया है और सड़कों पर उतरने को तैयार हैं. नोएडा, ग्रेटर नोएडा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने हालांकि कुछ दिनों पहले ही बातचीत के बाद आंदोलन वापस ले लिया, लेकिन उनका मसला मुआवजा था. इस बार वे किसान बहुत जोर शोर से इस आंदोलन को समर्थन का ऐलान भी नहीं कर रहे हैं. पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है और जाट खापें भी बहुत अधिक मुखर नहीं हैं.

हालांकि, पंजाब और हरियाणा के किसान फिर से दिल्ली की तरफ कूच कर रहें है और उनका कहना है कि 13 फरवरी को वो दिल्ली में महारैली करेंगे.  इसके लिए हरियाणा सरकार ने कई तरह के कदम भी उठाए हैं, कई जिलों में इंटरनेट सेवा बंद की गई है, बैरिकेड भी लगाए गए हैं. अमृतसर जिले के किसान जत्थे बन्दियों ने  व्यास नदी के पुल से  सुबह 8 बजे दिल्ली की तरफ  कूच  शुरू कर दिया है. आज रात ये  किसान फतेहगढ साहेब में रात्रि पड़ाव करके कल सुबह दिल्ली की सीमा पर पहुंचेंगे. 

किसानों की मांगें नहीं हुईं पूरी

बीते वर्ष जब किसानों द्वारा आंदोलन किया गया और लगभग साल भर वे सड़कों पर रहे, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मांफी मांगते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया था. उसके बाद किसानों ने सरकार की बात पर भरोसा किया कि जल्द ही सरकार एमएसपी के लिए एक कमेटी गठित करेगी और एमएसपी को सुनिश्चित करने का निर्णय लेगी. उस बात को लेकर किसानों ने कहा था कि ये आंदोलन जिन मुद्दों पर किया गया है उन मुद्दों पर सरकार ने अपनी ओर से सहमति दी है, इसलिए आंदोलन को स्थगित किया जाता है. ध्यान देने की बात है कि आंदोलन खत्म नहीं किया गया था. उस वक्त जब किसानों ने आंदोलन से वापसी की थी तब उन्होंने घोषणा की थी कि आंदोलन को सरकार के निर्णयों तक स्थगित किया जा रहा है. बार-बार उन्हें आश्वाशन मिला, एमएसपी के लिए जिस समिति का गठन किया जाना था, उसके गठन में 8 महीने का समय लगा और गठन में वही संजय कुमार अग्रवाल अध्यक्ष भी थे, जो भारत सरकार के कृषि सचिव थे. समिति के अन्य 28 सदस्यों में भी उन लोगों को शामिल किया गया जो सरकार के पक्ष में थे.  

इसके बाद किसानों ने खुद को ठगा हुआ महसूस किया और उनके द्वारा आपत्तियां दर्ज करायी गईं. उनका मानना था कि समिति से शायद समस्याओं का समाधान उस प्रकार से न निकल पाए, जिस तरह से वह चाहते थे, उसका इंतजार किया गया लेकिन उस समिति की कोई भी बैठक किसानों के प्रतिनिधियों और किसान जत्थेबंदियों के नेताओं के साथ उस प्रकार से नहीं हुई, उसमें विस्तृत चर्चा होकर बिंदुओं के समाधान उस प्रकार से नहीं निकल पाए, जिस प्रकार किसान चाहते थे. बार–बार किसान इंतजार करते रहे. जब वे कोरे आश्वासनों से थक गए तब वो अपने मुद्दे लेकर एक बार फिर से गंभीर हुए, सरकार की नीति और नीयत के ऊपर विश्वास नहीं रहा, तब किसानों द्वारा फिर से इस आंदोलन को शुरू करने का और आगे बढ़ाने का निर्णय लिया.

MSP है सबसे बड़ा मुद्दा

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों से जो किसान सड़क पर उतरे थे, उनके मुद्दे अलग हैं, उनके मुद्दे अपने मुआवजे के लिए थे. किसानों के स्थानीय मुद्दे निरंतर हर प्रदेश में बने हुए हैं, जहां समय-समय पर किसान अपने मुद्दों के समाधान के लिए प्रदर्शन करते रहते हैं. ये जो किसान 13 फरवरी से आंदोलन के लिए दिल्ली पहुंच रहे हैं, वह भारत के पूरे किसान समाज की व्यापक भलाई और उसके संरक्षण के लिए है. सरकार ने अनावश्यक रुप से एक पैनिक बटन को दबाया, जिसकी इस वक्त कोई आवश्यकता नहीं थी. सरकार के पास अधिक समय था, यदि सरकार किसानों के मुद्दे का समाधान चाहती तो निरंतर बातचीत कर सकती थी, जो शायद सरकार ने उचित नहीं समझा. दो-तीन दिन पहले केंद्र के तीन मंत्री किसानों से बात करने के लिए चंडीगढ़ पहुंचे और अब फिर से एक और मीटिंग होने वाली है. समाधान के लिए बातचीत का ये सिलसिला पहले भी किया जा सकता था, किसानों के साथ शांति से बातचीत की जा सकती थी.

राजनीति से इस आंदोलन का संबंध स्थापित करने का जबरन प्रयास किया जा रहा है, राजनीतिक दृष्टिकोण से सरकार की तरफ से पहले भी कदम उठाए गए हैं, जिसमें डॉ.स्वामीनाथन को भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित करना भी एक राजनीतिक प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है, तो वहीं चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिया जाना जो किसानों के नेता रहे, किसानों की भावनाओं को साधने के लिए राजनीतिक प्रयोग ही माना जा रहा है. किसान अपनी किसी भी मांग के लिए किसी समय पर एक निर्णय लेते है तो उसे कठघरे में खड़ा कर दिया जाना उचित नहीं है.

किसानों का आंदोलन हमेशा शांतिपूर्ण 

किसान समस्या के समाधान के लिए शांतिपूर्वक अपने आंदोलन को आगे बढ़ाने की कोशिश करते रहे है. पूरे भारत में जितने भी प्रदर्शन किसानों की ओर से किए गए वो अधिकतर शांतिपूर्वक ही हुए. पिछली बार किया गया किसान आंदोलन 13 महीने तक चला, लेकिन किसी ने एक पत्थर तक नहीं फेंका, किसी प्रकार की हिंसा का सहारा नहीं लिया गया. यदि सरकार किसान के प्रति गंभीर हो तो बहुत से ऐसे समाधान हैं जो किसानों के लिए किए जा सकते है. वातावरण के अंदर बहुत बदलाव हुए है और इन बदलाव के कारण विश्व स्तर पर कार्बन फुटप्रिंट का वायुमंडल में अधिक हो जाना माना जाता है.

यदि कार्बन फुटप्रिंट को जानने की कोशिश की जाए तो विज्ञान से साफ पता चलता है कि कार्बन डाईऑक्साइड या वैसी गैसें जो वातावरण के लिए हानिकारक है, उनका उत्सर्जन पेट्रोलियम, कोल थर्मल पावर स्टेशन, कन्सट्रक्शन इत्यादि की वजह से होता है. इनको सीमित करने के लिए अंतराष्ट्रीय स्तर पर समझौते किए जाते हैं. समस्याओं को नियंत्रित करने के लिए जितना पैसा सरकार को दिया जाता है यदि उस पैसे का इस्तेमाल किसानों के लिए किया जाए तो किसानों से जुड़ी समस्याओं का समाधान हो सकता है.

किसान सालों से अपने प्रयासों से कार्बन उत्सर्जन को संतुलित करने के लिए फसलों की रखवाली करता रहा है. सरकार को बहुत गंभीरता से किसानों की भलाई करने के प्रयास करने ही होंगे, अन्यथा किसान इसी तरह आंदोलित होकर सड़कों पर उतरेंगे. किसानों के तो हालांकि कई मसले हैं, लेकिन फिलहाल उनकी जो तात्कालिक मुद्दे हैं, उनको तो सरकार को एड्रेस करना ही चाहिए. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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