दो हफ़्ते तक चले हंगामे के बाद सोमवार को आखिरकार सरकार ने विपक्ष की मांग मानते हुए लोकसभा में महंगाई पर चर्चा तो करा दी लेकिन उसका नतीजा सिफर ही रहा. जो विपक्ष महंगाई के मुद्दे पर चर्चा के लिए इतना हंगामा कर रहा था, उसी कांग्रेस के सदस्यों ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के जवाब से असंतुष्ट होकर सदन से ही वॉक आउट कर दिया. 


इसलिये सवाल ये भी उठता है कि क्या विपक्ष इस मुद्दे पर सिर्फ राजनीति ही कर रहा था? अगर नहीं, तो फिर उसे सरकार को घेरने के लिए सदन को अपनी पीठ तो नहीं दिखानी चाहिए थी. हालांकि संसदीय परंपरा में इसे भी सरकार के खिलाफ विरोध का ही एक तरीका माना जाता है.


वैसे किसी ज्वलन्त मुद्दे पर जब संसद में चर्चा होती है,तो विपक्ष समेत आम जनता को भी ये उम्मीद होती है कि सरकार राहत देने के लिए कोई ऐलान कर सकती है. चूंकि बहस महंगाई पर थी, इसलिये अगर सरकार चाहती तो और ज्यादा कुछ नहीं तो घरेलू रसोई गैस सिलेंडर की कीमतों में कुछ कमी का ऐलान करके लोगों के जख्मों पर मलहम लगा सकती थी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.


शायद इसीलिए तृणमूल कांग्रेस की सांसद काकोली घोष दस्तीदार ने सदन में ही कच्चा बैगन चबाकर सरकार को ये अहसास दिलाने की कोशिश की कि देश में महंगाई का क्या आलम है. उन्होंने एक वाजिब सवाल भी उठाया कि क्या सरकार चाहती है कि हम कच्ची सब्जियां खाएं? क्योंकि कुकिंग गैस की कीमतें इतनी ज्यादा हो गई हैं कि आम आदमी के लिए खाना पकाना मुश्किल हो गया है.


हालांकि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने चर्चा का जवाब देते हुए महंगाई को काबू में रखने के लिए सरकार द्वारा उठाये गए कदमों का जिक्र करते हुए कई दावे किये लेकिन उन्होंने टीएमसी सांसद के इस सवाल  का कोई जवाब नहीं दिया कि पिछले साल भर में रसोई गैस की कीमतों में इतनी बढ़ोतरी आखिर क्यों हुई है और सरकार इस पर लगाम क्यों नहीं लगा पा रही है?


दरअसल,पिछले महीने ही सरकार ने गैस सिलिंडरों के दाम में 50 रुपए का इजाफा किया है. पिछले एक साल में यह आठवीं बार था, जब सिलिंडर की कीमतों में बढ़ोतरी की गई. दिल्ली में इन दिनों 14.2 किलो का गैर सब्सिडी वाले सिलेंडर की कीमत 10,53 रुपए है.जबकि छोटे शहरों में तो ये और भी ज्यादा महंगा है.


जून 2021 से तुलना की जाए,तो अब तक सिलिंडर की कीमत में 244 रुपए की बढ़ोतरी हो चुकी है.वहीं इस साल बीते मार्च से तुलना करें,तो अब तक इसमें 152.50 रुपए का इजाफा हो चुका है.खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतें तो अपनी जगह हैं लेकिन खाना पकाना ही इतना महंगा हो जाये,तो इसे आम आदमी पर दोहरी मार ही समझा जाएगा.


हालांकि वित्त मंत्री ने माना कि भारत जिस विकास दर को हासिल करने की उम्मीद कर रहा था, उसमें कमी आई है, लेकिन फिर भी हम सबसे तेजी से विकास कर रहे हैं. महामारी और अन्य वैश्विक मुद्दों के बावजूद, हम अधिकांश देशों की तुलना में बहुत बेहतर कर रहे हैं. हमें देखना होगा कि दुनिया में क्या हो रहा है और भारत दुनिया में क्या स्थान रखता है. विश्व ने ऐसी महामारी का सामना पहले कभी नहीं किया.


विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी हम सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में खड़े होने और पहचाने जाने में सक्षम हैं. भारत में मंदी या मंदी की चपेट में आने का कोई सवाल ही नहीं है. कांग्रेस पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि उसके नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में 22 महीने तक महंगाई 9 फीसदी से ऊपर रही थी. जबकि हम मुद्रास्फीति को 7% या उससे कम पर बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं.


सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बाद खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी से गिरावट आई है. महामारी, दूसरी लहर, ओमिक्रोन, रूस-यूक्रेन (युद्ध), इसके बावजूद हम मुद्रास्फीति को 7% या उससे कम पर बनाए रखा. इसे आपको मानना होगा. 


कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने पार्टी सदस्यों के वॉकआउट को सही ठहराते हुए कहा कि वित्तमंत्री का जवाब निराशाजनक था. सरकार रवैया ऐसा है,मानो देश में महंगाई है ही नहीं और लोगों को कोई तकलीफ नहीं हो रही है. तिवारी ने कहा कि अगर देश की 140 करोड़ की आबादी की समस्याओं पर सवाल उठा रहे विपक्ष को लेकर आपका यह जवाब है तो हम आपको क्यों सुनें?


वहीं शिरोमणि अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर बादल ने कहा कि महंगाई पर चर्चा के लिए सरकार ने 10 दिन और 150 करोड़ रुपए करोड़ रुपए बर्बाद कर दिए. अब उनका जवाब भी निराश करने वाला है. सरकार को महंगाई नजर नहीं आ रही है, लेकिन नोटबंदी और कोविड लॉकडाउन के बाद लोग बहुत ज्यादा परेशान हैं.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)