केन्द्र सरकार एक यूनिवर्सल पेंशन स्कीम लाने की तैयारी कर रही है. सरकार की इच्छा ये है कि जो आदमी वर्किंग नहीं है या फिर पेंशन के दायरे में नहीं है, उससे इतर जितने लोग हैं उनको स्वैच्छिक रूप से पेंशन से जोड़ा जाए. चूंकि, भारत अब एक ऐसा देश बनने जा रहा है, जहां पर युवाओं के साथ ही बुजुर्ग की आबादी भी बढ़ने जा रही है.


ऐसे में सरकार पर सामाजिक सुरक्षा का बोझ बढ़ने वाला है. देश में सामाजिक सुरक्षा का कोई बढ़िया सिस्टम नहीं है. अलग-अलग राज्यों में वृद्धा पेंशन के नाम पर जो पेंशन मिलती है, उसकी राशि बहुत कम है. ऐसे में एक आदमी का गुजारा भी उस पैसे से हो पाना मुश्किल है. सरकार को अब ये समझ में आ रहा है कि अगले 20-30 साल के बाद जब बड़ी आबादी सामाजिक सुरक्षा के दायरे में आयेगी, उसके लिए एक सिस्टम बनाया जाए. 


इसके लिए सरकार एक यूनिवर्सल पेंशन स्कीम लाने की तैयारी में है, जिसमें सभी नागरिक स्वैच्छिक रुप से पेंशन के लिए अप्लाई करेंगे और उसमें एक निश्चित राशि का योगदान करेंगे. 20-25 साल के बाद उसका एक रिटर्न अमाउंट होगा. अभी जो सिस्टम है उसके मुताबिक सरकारी कर्मचारियों का वेतन से पेंशन के लिए पैसा काटा जाता है, सरकार उसमें योगदान देती है और फिर भारतीय पेंशन निधि कोष (ईपीएफओ) उस फंड को हैंडल करता है. 


सामाजिक सुरक्षा का बढ़ेगा दबाव


दूसरा ये कि प्राइवेट सेक्टर में भी कई ऐसे कर्मचारी हैं, जिनकी पेंशन स्कीम को ईपीएफओ ही देखता है. ये तो बात हुई नौकरी को लेकर, लेकिन मुझे लगता है कि सरकार को अनिवार्य यूनिवर्सल पेंशन स्कीम लेकर आना चाहिए और उसके लिए सरकार किसी को भी एजेंसी बना सकती है. फंड को हैंडल करने के लिए एलआईसी जैसी कंपनियों को सरकार जोड़ सकती है. फंड को सरकार खुद ही हैंडल करे तो ज्यादा अच्छा है.




दरअसल, ऐसा बेहतर होता कि स्वैच्छिक की बजाय अनिवार्य पेंशन स्कीम इस देश में होना चाहिए, जिसमें हर किसी को अनिवार्य रूप से पेंशन के रूप में कुछ ना कुछ पैसा जमा करना होगा. हर नागरिक की इसके लिए उम्र उम्र 25 साल से 30 साल के बीच कर सकते हैं. यानी 25 से 35 साल या फिर 30 से 60 साल या फिर 35 से 65 साल तक एक निश्चित रकम का अंशदान करना चाहिए.


इसकी वजह ये है कि भारत में औसत आयु करीब 72-72 साल हो चुकी है, ऐसे में अगर कोई नागरिक फिट एंड एक्टिव रहेगा तो 65 साल तक भी अंशदान की आयु की जा सकती है. इसमें ये शर्त लगाई जाए कि कम से कम 30 साल तक कोई भी आदमी अपने पेंशन कोष में मिनिमम 1000 रुपये महीने या फिर 2 हजार रुपये महीना अपने हिसाब से मिनिमम तय कर दे.


30 साल तक हो अंशदान सीमा


अंशदान की एक न्यूनतम और अधिकतम दोनों ही राशि तय कर दी जाए और आदमी कुछ भी करता हो, उसका पेंशन अनिवार्य तौर पर खुले. जैसे लोगों का आधार बनाना अनिवार्य है, ठीक उसी तरह से इसे लागू किया जाना चाहिए, ताकि लोग निश्चित रुप से अपना अंशदान करेंगे.


ये अगर शुरू होगा तो इसके दो फायदे होंगे. पहला ये कि जो व्यक्ति पेंशन स्कीम में रहेगा अगर उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं भी रही तो बुढ़ापे में यानी एक उम्र होने के बाद सामाजिक सुरक्षा के तौर पर एक निश्चिम रकम उसे मिलती रहेगी. इससे इस समय सरकार जिस तरह से बुढापे पेंशन या फिर अलग तरीके से बुजुर्गों पर खर्च करती है, वो उन्हें नहीं करना होगा. इसके अलावा, अगर सरकार चाहेगी तो जो लोग पेंशन स्कीम में आम नागरिक होंगे, सरकार एक निश्चित समय तक उसमें खुद भी योगदान कर सकती है. सरकार सरकार नहीं भी उस फंड में योगदान करती है, तब भी जनता अपने फंड से उस स्कीम को चलाएगाी. 


जनता के पैसे से बनाए जाए संसाधन


सरकार की तरफ से उसे फ्लैक्सी पे भी किया जा सकता है, यानी किसी साल कोई 2 हजार या फिर किसी साल 3 हजार करना चाहे तो वो कर सकता है. इसका दूसरा फायदा ये हो सकता है कि भारत की आबादी इस वक्त करीब 140 करोड़ है, अगर इतनी बड़ी आबादी पेंशन के लिए अपना योगदान 30 साल तक कर रही है, सरकार या फिर उस फंड को देखने वाले को भी रिटर्न के तौर पर फौरन कुछ भी नहीं देना है, ऐसे में सरकार के पास एक बड़ा सोर्स ऑफ इनकम जेनरेट होगा, जिस पैसे को सरकार अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर सिस्टम में इस्तेमाल कर सकती है, जैसे- रेल, रोड और अन्य कामों पर खर्च करना.


हर आबादी 18-20 साल के बाद पेंशन स्कीम में जुड़ती जाएगी तो इससे एक चेन बन जाएगा और आने वाले वर्षों में दशकों तक पब्लिक फंडिंग के रिसोर्सेज आपके पास होंगे. जैसे- एलआईसी अभी लोगों के पैसों से धन बना रही है, फिर उसे वापस भी कर रही है. इसी तरह से पेंशन स्कीम में रिसोर्स पैदा कर सकती है, और फिर जनता के पैसों को जब वे बुढापे में आ जाएँगे तो उन्हें वापस कर सकती है.


इस तरह अगर सरकार चाहे तो स्वैच्छिक की बजाय अनिवार्य पेंशन देश में लागू करे. इस तरह की पेंशन योजना लागू होनी चाहिए. इससे देश में सामाजिक सुरक्षा का दायरा बेहतर हो जाएगा और लोगों को वृद्धावस्था में फंड की दिक्कत नहीं होगी. इस समय एक बड़ी आबादी अपने बच्चों पर निर्भर हो जाती है. लेकिन नतीजा ये होता है कि अगर बच्चे सक्षम नहीं है तो उस स्थिति में परिवार में बहुत सारी समस्याएं पैदा हो जाती है. वो बच्चे अपने बुजुर्गों से घर में दूर भागते हैं. इन सामाजिक समस्याओं के पीछे आर्थिक कारण एक बड़ी वजह है. ऐसे में इस स्कीम से एक उम्र के बाद उन वृद्ध लोगों को जीने का सहारा होगा.


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