Ground Report: बंद गली का वो आखिरी घर
ऐसा संयोग बहुत ही कम होता है जैसा उस दिन हुआ. हुआ यूं कि हम तो भोपाल के जेपी अस्पताल परिसर में खड़े होकर गर्मी में बिजली संकट से जूझते अस्पतालों पर कहानी की पीटीसी कर रहे थे और थोड़ी देर बाद ही गिरिजाशंकर जी की किताबों के विमोचन में जाना था. मगर जैसा कि होता है आफिस से फोन आया कि आप ललितपुर चले जाइए वहां पर एक मामला हुआ है जिसमें सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पहुंच रहे हैं तो आप ऐसे निकलिये कि लखनऊ से वो ललितपुर पहुंचे उससे पहले आप पहुंचिये. हम सारी प्राथमिकताएं भुलाकर ललितपुर के रास्ते में थे.
बाहर अच्छी खासी गर्मी और उससे जूझने में नाकाम होता हमारी गाड़ी का एसी. भोपाल से विदिशा फिर सागर और सागर से फोर लेन होते हुये ललितपुर का रास्ता मगर बीच में ही पता लग गया कि घटना की शिकार लड़की का घर ललितपुर से पहले पाली कस्बे में ही है जहां हम एक बार जा चुके थे. ये मामला यूं था कि कुछ दिनों पहले एक नाबालिग लड़की को तीन लड़के भगाकर भोपाल लाये, बुरा काम किया और बाद में उसे पाली के थाने छोडा जहां पर थानेदार ने ही उससे दुष्कृत्य किया.
सीएम योगी कुछ दिनों बाद ही जिले के दौरे पर थे तो आनन फानन में थानेदार को आरोपी बनाकर उसकी छुट्टी कर दी गयी और पूरा थाना लाइन हाजिर की सजा भुगतने को मजबूर हो गया. हम थोडी देर बाद ही अपने जाने पहचाने पाली कस्बे में थे. हम यहां छह महीने पहले तब आये थे जब खाद की तंगी के चलते कुछ किसानों ने खुदकुशी की थी और कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी इस कस्बे में उन पीडित परिवारों से मिलने आयी थीं. मगर ये क्या हम चौराहे पर आये और उस पीड़ित के परिवार के घर का रास्ता पूछे तो वही रास्ता बताया जहां प्रियंका के वक्त गये थे. उस गली में चलते चलते सब याद आ रहा था कि कैसे प्रियंका आयी थीं, कैसे उनके लिये गली के मोढ़ के आखिरी मकान में पीडित परिजन एकत्रित हुये थे और उनके स्वागत में कैसे कांग्रेसी कार्यकर्ता चारों तरफ खडे थे.
इस बार भी गली वही थी मगर उस मोड से आगे का रास्ता भी था जहां पर बिल्कुल आखिरी छोर पर बने घर में रहता था उस पीडित नाबालिग बालिका का परिवार. पूरी गली में चप्पे चप्पे पर पुलिस की तैनाती और संकरे से रास्ते में इस बार कांग्रेसी नहीं सपा के कार्यकर्ता सफेद झक कुर्ता पायजामा और सिर पर लाल टोपी पहन कर खडे थे. कुछ तो उस परिवार के घर के अंदर भी मौके पर खडे थे कि उनके नेता आयें तो उनसे नजर मिल जाये बस और इस सबसे सहमा डरा था वो परिवार का मुखिया या उस लडकी का पिता मनोज जो अंदर अंधेरे में अपने आठ बच्चों में से पांच को अपने आस पास समेटकर बीडी पीकर तनाव कम कर रहा था.
पुलिस, मीडिया और सपा कार्यकर्ताओं की उस पूरी भीड से बेहद परेशान लग रहा था मनोज. माइक लगाते ही वो बोल उठा साहब हमारी बेटी के साथ बुरा काम हुआ है, थाने में ही इसलिये हमें न्याय चाहिये. थानेदार ने ही हमारी बेटी के साथ गलत काम किया है. मगर रास्ते में कुछ लोगों ने हमें जो जानकारी दी थी उसके आधार पर हमने भी सवाल पूछा कि थानेदार ने तुम्हारे खिलाफ मुकदमा किया था तो तुम जेल गये थे इस मामले का उससे कुछ लेना देना तो नहीं. सकपकाए मनोज ने कहा नहीं हमारी बेटी ने जो कहा है आप उस पर भरोसा करिये हमें न्याय चाहिये. थोडी देर गली में दिख रही सरगर्मी अचानक कम हो गयी. पता चला कि अखिलेश गांव में ना आकर ललितपुर अस्पताल जा रहे हैं जहां पर वो चाइल्ड लाइन में रह रही नाबालिग और उसकी मां से मिलेंगे.
उत्साह से चमक रहे चेहरे वाले कार्यकर्ता अब अपनी टोपी उतार कर खींसे में खोंसते हुये गली से लौट रहे थे. हमें भी ललितपुर जाने को कह दिया गया था मगर जाने से पहले हमने वो थाना देखना जरूरी समझा जो पूरे प्रदेश में चर्चा का केंद्र बना था. थाना परिसर में ही थाना प्रभारी द्वारा नाबालिग से बलात्कार के दुर्दांत किस्से प्रदेश की सरकार और पुलिस को महकमे को शर्मसार करने को काफी है.
मगर पाली छोडते छोडते जो हमें पता चला वो चौंकाने वाला ही निकला. लोग कह रहे थे कि घटना जैसी बतायी जा रही है ठीक वैसी तो नहीं है. बहुत सारे पेंच और टिवस्ट हैं इस शर्मनाक अपराध कथा में. इस छोटे कस्बे में पिछले दिनों में ऐसे बहुत सारे मामले आये जिनमें बलात्कार के मुकदमे दर्ज कराने के नाम पर पैसों की बडी उगाही हुयी है. कुछ महिला और पुरुष पुलिस के साथ मिलकर इस वसूली वाले अपराध को अंजाम देते हैं, कुछ मामले थाने तक आते हैं तो कुछ नहीं आते. मगर बडे पैमाने पर पैसा वसूली का ये खेल इन दिनों बुंदेलखंड के गांवों में चल रहा है. ठीक वैसा ही जैसा मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में होता है. बलात्कार के मामले थानों मे तो दर्ज होते हैं मगर बाद में वो मुकदमे के दौरान ही खत्म हो जाते है या करा दिये जाते हैं. यूपी में इस तरह के गलत कामों में दलित परिवार की महिलाएं शामिल हो जाती हैं. कई बार पुलिस पैसा लेकर छूट जाती है तो कई बार पुलिस भी उलझ जाती है. पाली की घटना में अभी बहुत सच्चाई सामने आनी बाकी है.