गुजरात में भी चुनाव प्रचार आखिरकार अपनी परमगति को प्राप्त हो ही गया! शुरुआत विकास की चर्चा से हुई थी लेकिन इसके बाद पाटीदार, ओबीसी, आदिवासी और क्षत्रियों के जातिगत समीकरणों के सोपान पर पहुंच गई. ये बस चर्चाओं तक सीमित नहीं रही बल्कि कांग्रेस और बीजेपी की तरफ से सीटों का बंटवारा भी इसी आधार पर हुआ और अब यह धर्म की ध्वजा पर जा टिका है. दिलचस्प बात यह है कि इस बार हुज्जत हिंदू बनाम मुस्लिम की नहीं बल्कि छोटा हिंदू बनाम बड़ा हिंदू की हो रही है. गुजरात में 22 साल बाद सत्ता वापसी की कोशिश कर रही कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी स्वयं को मोदी से बड़ा हिंदू साबित करने के लिए ताबड़तोब मंदिर यात्राएं कर रहे हैं और सत्तारूढ़ बीजेपी को उनके इस नए अवतार से लाभ उठाने का एक आसान मौका हाथ लग गया है.


यही वजह है कि सोमनाथ मंदिर की यात्रा के माध्यम से राहुल गांधी के हिंदू ही न होने का शिगूफा छोड़ा गया तो कांग्रेस उनको बड़ा हिंदू साबित करने के लिए राहुल का जनेऊ निकाल कर दिखाना पड़ा! दरअसल बीजेपी को यह बात हजम नहीं हो पा रही कि कोई राजनीतिक बल्लेबाज अचानक उनकी पिच पर आकर बैटिंग करने लग जाए, क्योंकि कांग्रेस ने पुराकाल से भले ही नरम हिंदुत्व का सहारा लिया हो लेकिन उग्र हिंदुत्व और मंदिरों की राजनीति का ठेका तो बीजेपी के ही पास है. यही वजह है कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और अन्य बीजेपी नेता पीएम मोदी की मंदिर परिक्रमाओं को गहरी आस्था का प्रदर्शन और राहुल गांधी के मंदिर जाने को पाखंड बताने से नहीं चूक रहे.


अब यह तो भगवान ही जाने कि आस्था किस बाल्टी में मापी जाती है! जब स्वयं मोदी जी अपनी रैलियों में कहते फिर रहे हैं कि ‘सोमनाथ का मंदिर तुम्हारे परनाना ने नहीं बनवाया’ तो सोच लीजिए कि गुजरात में राजनीति किस स्तर पर पहुंचा दी गई है. वैसे भी मोदी जी को इतना तो पता ही होगा कि मंदिर-मसाजिद बनवाना भारत सरकार का काम नहीं है और कोई सिर्फ अपने परनाना के बनवाए मंदिर में ही जाने तक सीमित नहीं होता. सोमनाथ मंदिर का तो ऐसा है कि नेहरू जी, सरदार पटेल, कन्हैयालाल, माणिकलाल मुंशी, एन.वी. गाडगिल समेत एक प्रतिनिधिमंडल सोमनाथ के पुनर्निर्माण को लेकर महात्मा गांधी के पास गया था, जिससे खुश होकर बापू ने कहा था कि अगर ऐसा होना है तो जनता के पैसे से ही संभव हो सकता है. हिंदू, जैन, पारसी, मुसलमान समुदाय ने लाखों रुपए चंदा जमा किया. जाहिर है, 1951 में हुआ सोमनाथ मंदिर का पुनरुद्धार किसी के परदादा या परनाना ने नहीं किया था. लेकिन इतनी खोज करने का वक्त किसके पास है? जादूगर तो चुनाव में जादू कर जाता है और किसी-किसी की समझ में ही आ पाता है.


गुजरात के जिस विकास मॉडल का सपना दिखाकर मोदी जी ने भारत विजय प्राप्त की थी, उसी विकास मॉडल को गुजरात के ही लोग पागल बता रहे हैं. कांग्रेस के पास गुजरात में विकास के नाम पर बताने के लिए तो एक नया पुल, बांध या नई फैक्ट्री भी नहीं है क्योंकि पिछले 22 साल से बीजेपी सत्ता में है. लेकिन अगर बीजेपी को अपने विकास पर इतना ही भरोसा है तो वह क्यों गुजरात वासियों को ‘सबका साथ सबका विकास’ नारे पर भरोसा नहीं दिला पा रही है? क्यों मोदी जी को कांग्रेस द्वारा बार-बार सरदार पटेल की उपेक्षा की झूठी बात परोसनी पड़ रही है? जबकि दुनिया जानती है कि सरदार पटेल के बेटे-बेटियों को नेहरू ने पहले आम चुनाव के बाद से ही संसद में रखा. सैकड़ों स्कूल और सड़कें सरदार पटेल के नाम पर हैं. अभी हाल में मोदी जी ने अपनी एक चुनाव रैली में स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मोरबी यात्रा का जिक्र कुछ इस अंदाज में किया जो किसी पीएम के मुंह से शोभा नहीं दे सकता. मोरबी का मुच्छी बांध फूटने के बाद मची तबाही की उस घटना के बाद की तस्वीरें जिसने भी देखी होंगी, वह मोदी जी का झूठ आसानी से पकड़ लेगा. गुजराती पत्रिका चित्रलेखा में छपी तस्वीरों से साफ है कि संघ के स्वयंसेवक भी सड़ती लाशों की बदबू और संक्रमण से बचने के लिए अपने मुंह पर इंदिरा जी से बड़ी पट्टी बांधे दिख रहे हैं.


मोदी जी यह कभी नहीं बताएंगे कि बीजेपी के 22 साला राज के दौरान मार्च 2016 के अंत तक गुजरात के सर पर 2.22 लाख करोड़ का कर्ज़ चढ़ चुका था, जो राज्य की जीडीपी का 22.5 प्रतिशत बैठता है. गुजरात शिशु मृत्यु दर के मामले में महाराष्ट्र, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, सिक्किम, नागालैंड यहां तक कि जम्मू-कश्मीर से भी बदतर स्थिति में पहुंच गया है. गुजरात गरीबी दर के मामले में तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश से पिछड़ा हुआ है. राज्य में नई यूनिटें लगने की जगह कुल 468,000 लघु एवं मझोली कंपनियों में से 20 प्रतिशत से ज्यादा बंद पड़ी हुई हैं. देश की जीडीपी में गुजरात की हिस्सेदारी लगभग 7 प्रतिशत थी, वह भी बढ़ाए नहीं बढ़ रही. मानव सूचकांकों में गुजरात की पोजीशन क्या है, मोदी जी अपनी रैलियों में कभी नहीं बताएंगे. वह खुद को भूमि पुत्र, राहुल गांधी को बाहरी और नेहरू-गांधी परिवार को गुजरात का दुश्मन करार देते रहेंगे और मोदी जी को झूठ से उबारने के लिए गुजरात का मध्यमवर्गीय हिंदू व्यापारी समुदाय तो मौजूद है ही.


लेकिन लगता है कि इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी बीजेपी के बिछाए जाल में फंसती जा रही है. कांग्रेस को ध्यान में रखना चाहिए कि भारत आज भी एक धर्मनिपरेक्ष देश है. उसके अधिकांश मतदाता धर्मनिरपेक्ष हैं. ज्यादा बम्हनौती दिखाने से ये मतदाता बिखरेंगे. संघ परिवार की पिच पर बैटिंग करने जा पहुंचना एक बात है और मैच जीतना दूसरी बात. वहां वे आपको पहली ही गेंद पर बोल्ड कर देंगे क्योंकि बीजेपी उग्र राममंदिर आंदोलन से उछाल मारने वाली पार्टी है. संघ काडर के अलावा आम हिंदुओं में भी उसका एक बड़ा वोट बैंक स्थिर हो चुका है. कांग्रेस अगर अपने मूल आदर्शों को छोड़कर हिंदुत्व का कार्ड खेलने जाएगी तो जनेऊ ही नहीं, दाढ़ी-चोटी और लंगोटी दिखाने के बाद भी उसकी नैया पार नहीं लगेगी.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)


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