Gujarat Election 2022: पिछले आठ साल से कांग्रेस के सितारे तो उल्टी चाल चल ही रहे हैं लेकिन पार्टी ने शायद ये कभी सोचा नहीं होगा कि गुजरात चुनाव से ठीक पहले उसे इतना बड़ा झटका भी झेलने को मिलेगा. हार्दिक पटेल पर कांग्रेस ने बड़ा दाव खेलते हुए ही उन्हें गुजरात प्रदेश का कार्यकारी अध्यक्ष इस उम्मीद से बनाया था कि वे पाटीदार समाज का एक बड़ा युवा चेहरा हैं.
कांग्रेस को लग रहा था कि वो हार्दिक के जरिये इस समाज का समर्थन बड़े पैमाने पर हासिल करने में न सिर्फ कामयाब होगी बल्कि वह बीजेपी को कांटे की टक्कर देते हुए बीजेपी को सत्ता से बाहर का रास्ता भी दिखा सकती है. लेकिन कांग्रेस के इस सपने को हार्दिक ने अपना इस्तीफा देकर न सिर्फ चकनाचूर कर दिया, बल्कि पार्टी की बची-खुची साख पर भी ऐसा बट्टा लगा दिया, जिसे इतनी आसानी से हटा पाना, शायद मुमकिन नहीं है.
कांग्रेस ने तीन दिन पहले ही उदयपुर में चिंतन-शिविर किया, जिसमें बड़ी-बड़ी बातें हुईं. पार्टी के हताश हो चुके काडर में जान फूंकने के लिए हिमालय के माफिक वादे किये गये. लेकिन पार्टी शीर्ष नेतृत्व ने ये पता लगाने की कोशिश नहीं कि आखिर हार्दिक पटेल शिविर से नदारद क्यों हैं और अगर वे नाराज हैं, तो उसकी वजह क्या है? लेकिन कहते हैं कि सियासत में जब अहंकार इतना बढ़ने लगे, तो फिर नेताओं को अपने घर में जल रहे चिराग़ के तले का अंधेरा भी नहीं दिखाई देता. लिहाज़ा, पार्टी नेतृत्व को खुद अपने से ये सवाल करना चाहिए कि ऐसे चिंतन शिविर लगाने का क्या फायदा, जहां अपने ही एक ऐसे सेनापति को संभाल नहीं सके, जिसके बुते किला फतह करने का सपना संजो रखा था.
हार्दिक पटेल ने बुधवार को इस्तीफा देते हुए अपने ट्वीट में कहा- "आज मैं हिम्मत करके कांग्रेस पार्टी के पद और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देता हूं. मुझे विश्वास है कि मेरे इस निर्णय का स्वागत मेरा हर साथी और गुजरात की जनता करेगी. मैं मानता हूं कि मेरे इस कदम के बाद मैं भविष्य में गुजरात के लिए सच में सकारात्मक रूप से कार्य कर पाऊंगा.''
हार्दिक ने सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी में पार्टी नेताओं पर जो आरोप लगाए हैं, वे गांधी परिवार के सदस्यों की आंख खोलने के लिये भी काफ़ी है. हार्दिक ने लिखा है- "मुझे बड़े दुःख के साथ कहना पड़ता है कि आज गुजरात में हर कोई जानता है कि किस प्रकार कांग्रेस के बड़े नेताओं ने जानबूझकर गुजरात की जनता के मुद्दों को कमजोर किया है और इसके बदले में स्वयं बड़े आर्थिक फायदे उठाये हैं. राजनीतिक विचारधारा अलग हो सकती है परंतु कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का इस प्रकार बिक जाना प्रदेश की जनता के साथ बहुत बड़ा धोखा है."
ये एक ऐसा आरोप है, जो जनता में कांग्रेस नेताओं के प्रति और भी हिकारत लायेगा. बरसों तक गांधी परिवार के राजदार और सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार रहे अहमद पटेल के निधन के बाद उनके बेटे को पार्टी में कोई सक्रिय भूमिका न देने की जो गलती कांग्रेस ने की थी, उसका हिसाब हार्दिक ने अपना इस्तीफा देकर सूद समेत चुकता करने का काम किया है.
हार्दिक ने अपनी चिट्ठी में ये भी लिखा- "राजनीति में सक्रिय हर व्यक्ति का धर्म होता है कि जनता के लिए कार्य करता रहे, लेकिन अफसोस की बात है कि कांग्रेस पार्टी गुजरात की जनता के लिए कुछ अच्छा करना ही नहीं चाहती. इसीलिए जब मैं गुजरात के लिए कुछ करना चाहता था तो पार्टी ने सिर्फ मेरा तिरस्कार ही किया. मैंने सोचा नहीं था कि कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व हमारे प्रदेश, हमारे समाज और विशेष तौर पर युवाओं के लिए इस प्रकार का द्वेष अपने मन में रखता है."
हार्दिक के बीजेपी में जानें की अटकलें हैं और अगर ऐसा होता है, तो ये कांग्रेस के लिए और भी तगड़ा झटका होगा. इसलिए कि गुजरात में तीसरी ताकत बनकर उभर रही अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच ही तब मुख्य मुकाबला देखने को मिल सकता है.
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