इन दिनों परिवारवाद की राजनीति पर काफ़ी तीखे हमले हो रहे हैं,जो कुछ तक सही भी हैं लेकिन सच तो ये भी है कि अगर बारीकी से गौर करेंगे,तो कोई भी पार्टी इससे अछूती नहीं है.कांग्रेस पर परिवारवाद को बढ़ावा देने का सबसे बड़ा आरोप लगता रहा है लेकिन लोग शायद ये भूल जाते हैं कि उसी कांग्रेस का चाणक्य माने जाने वाले और 10 साल तक मनमोहन सिंह की सरकार में बगैर मंत्री बने सबसे ताकतवर नेता रहे अहमद पटेल ने कभी अपने बेटे-बेटी को सियासत का स्वाद चखाना तो बहुत दूर की बात है,उन्हें उसकी दहलीज पर भी नहीं फटकने दिया.


धर्म या मज़हब चाहे जो हो लेकिन जब पिता का साया सिर पर नहीं रहता,तब हर बेटा खुद को अनाथ भले ही न समझे लेकिन असहाय जरुर  समझने लगता है.और ख़ासकर तब जबकि बरसों तक पिता ने एक ही पार्टी और उसके सबसे ताकतवर परिवार का पूरी वफ़ादारी के साथ निभाया हो और उस शख्स के अचानक दुनिया से विदा हो जाने के बाद वही परिवार उस गमजदा बेटे की खैरियत भी न पूछे,तो सोचिये कि उस बेटे पर पिछले तकरीबन डेढ़ साल से क्या बीत रही होगी.दुनिया के आला दर्जे के मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि इस हालत में एक इंसान के दिल का दर्द बहुत बड़े गुबार के रुप में बाहर निकलता है और अगर उसे वक़्त रहते नहीं संभाला जाता,तो वह गुस्से की ऐसी आग में बदल जाता है,जो आग बड़ी तबाही की वजह भी बन सकती है.


कोरोना महामारी से लड़ते हुए नवंबर 2020 में अपनी जंग हार कर सियासत की इस मायावी दुनिया से विदा हो चुके अहमद पटेल के बेटे फैसल पटेल भी  फिलहाल उसी दौर से गुजर रहे हैं.गनीमत ये है कि अभी सिर्फ उनका दर्द ही छलका है लेकिन कौन जानता है कि ये दर्द कब गुस्से की उस ज्वाला का रुप भी ले ले,जो अगले छह महीनों में गुजरात में कांग्रेस की बची-खुची जमीन को भी बंजर करके रख दे.


दरअसल, फैसल पटेल ने एक ट्वीट करके दिल्ली से लेकर गुजरात कांग्रेस तक में सियासी तूफान ला दिया है.मंगलवार की देर रात को किये उन्होंने अपने इस  ट्वीट में लिखा है कि "मैंने अपने विकल्प खुले रखे हैं,जिसका मतलब ये भी निकाल सकते हैं कि मैं सार्वजनिक जीवन को अलविदा कहने की सोच रहा हूँ.पार्टी आलाकमान से बग़ैर कोई प्रोत्साहन (Recognition) मिले गरीबों व जरूरतमंदों की मदद करते हुए अब मैं थक चुका हूँ."


सियासी जानकार मानते हैं कि फैसल का ये ट्वीट गुजरात कांग्रेस में आने वाले तूफ़ान का एक बड़ा इशारा है.इसलिये कि अब वे गुजरात में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का एक बड़ा चेहरा बनकर उभर सकते हैं.इसके संकेत उन्होंने पिछले साल अप्रैल में केजरीवाल से मुलाकात करते ही दे दिये थे कि वे अब अपने पिता की पार्टी में गांधी परिवार की उपेक्षा भरी ज़लालत झेलते हुए बहुत ज्यादा दिनों तक साथ नहीं रहने वाले हैं.


पिछले साल चार अप्रैल को फैसल पटेल ने केजरीवाल के साथ मुलाकात की वो तस्वीर सोशल मीडिया पर भी पोस्ट की थी और साथ ही  लिखा था "आखिरकार हमारे दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल जी से मिलने पर गौरवांवित महसूस कर रहा हूं! एक दिल्ली निवासी के रूप में, मैं उनके वर्क इथिक्स और नेतृत्व कौशल का एक अग्रणी प्रशंसक हूं. मानवता पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रभाव और देश में वर्तमान राजनीतिक मामले पर उनसे चर्चा की." फैसल की केजरीवाल से हुई उस मुलाकात ने कांग्रेस को परेशान कर दिया,खासकर गांधी परिवार को.बताते हैं कि उस तस्वीर के सामने आते ही दस,जनपथ को घेरे रखने वाली पार्टी नेताओं की चौकड़ी ने सोनिया गांधी समेत राहुल व प्रियंका के भी कान भर दिये कि अब फैसल को भाव देने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि उन्होंने केजरीवाल का दामन थाम लिया है.


लेकिन सवाल उठता है कि पार्टी को अपने इशारों पर चलाने वाले इस खानदान के तीनों सदस्यों ने खुद अपने दिमाग से भला ये क्यों नहीं सोचा कि जिस शख्स ने घनघोर मुसीबत के वक़्त में भी गांधी परिवार का साथ नहीं छोड़ा, तो आखिर ऐसा क्या हो गया कि उनके दुनिया से चले जाने के बाद उनका बेटा विपक्षी पार्टी के मुख्यमंत्री की चौखट तक जा पहुंचा और आखिर ऐसी नौबत ही क्यों आई? हैरानी की बात ये है कि पंजाब से लेकर राजस्थान तक पार्टी नेताओं के अंदरुनी झगड़ों को सुलझाने के लिए उन्हें खुद फोन करके दिल्ली आकर मुलाकात करने की गुहार लगाने वाली प्रियंका गांधी ने भी आखिर फैसल को अपने पास क्यों नहीं बुलाया कि, भाई, बताओ तो सही कि आखिर क्या नाराजगी है और हमसे कहाँ गलती हो गई?


अहमद भाई को नजदीक से जानने वाले मानते हैं कि फैसल पटेल के प्रति गांधी परिवार का ये उपेक्षा वाला बर्ताव बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है और इसके पीछे जरुर वे लोग हैं,जो कांग्रेस से उनका नाम मिटाने की मंशा पाले बैठे हैं.वे कहते हैं कि हो सकता है कि राहुल गांधी को न पता हो लेकिन घर की बड़ी बेटी होने के नाते मां ने प्रियंका को तो जरुर ये बताया होगा कि राजीव गाँधी की असामयिक मौत के बाद से लेकर 2004 में कांग्रेस के सत्ता में आने तक इस खानदान ने जो कुछ झेला है,तब एक अहमद पटेल ही थे,जो हर वक़्त उस परिवार के  साथ एक चट्टान की तरह खड़े थे.वे उस खानदान के सबसे बड़े राजदार भी रहे.


लेकिन उस शख्स की इंसानियत पर हैरानी इसलिये ज्यादा होती है कि राजनीति में रहने वाले व्यक्ति की जुबान से कभी न कभी तो कोई राज तो निकल ही आता है.लेकिन न्यूज़ चैनलों के एक्सपोज़र से हमेशा दूर रहने वाले और रात दो-तीन बजे तक भी अक्सर पत्रकारों से चर्चा में मशगूल रहने वाले अहमद पटेल ने अपने जीते-जी कभी कोई राज नहीं खोला.साल 2020 में 25 नवंबर को उन्होंने आखिरी सांस ली और अगले दिन गुजरात में अपने गृह नगर भरूच में जब उन्हें सुपुर्द-ए-खाक-खाक किया गया, तो गांधी खानदान से लेकर मनमोहन सिंह सरकार का हर राज भी वहीं दफन हो गया. लिहाज़ा,अब फैसल पटेल उसी विरासत को केजरीवाल के साथ मिलकर गुजरात में जिंदा रखना चाहते हैं,तो इससे कांग्रेस क्यों डरी हुई है?



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