गुजरात दंगे को लेकर पीएम मोदी पर बनाई गई डॉक्यूमेंट्री को भारत सरकार की तरफ से बैन कर दिया गया है. इसके बावजूद लगातार देश की अलग-अलग यूनिवर्सिटी में इसकी स्क्रीनिंग होना पूरी तरह से अवैध है. इसके खिलाफ एक्शन लेते हुए पुलिस एफआईआर दर्ज करने से लेकर गिरफ्तारी तक कर सकती है. किसी भी सूरत में यूनिवर्सिटी में स्क्रीनिंग नहीं होनी चाहिए, क्योंकि वह यूनिवर्सिटी में भारत के अंदर ही है. यहां का ही कानून उस पर लागू होता है.


कोई भी चीज अगर सरकार की नजर में प्रोपगेंडा है, या लोगों के हितों के खिलाफ है उसे बैन किया गया है. ऐसा हो सकता है कि राजनीतिक तौर पर प्रेरित होकर वे चीजें बनवाई गईं हों या फिर बाहर के लोगों ने बनाई हो. इसलिए अगर सरकार मानती है कि बीबीसी की डॉक्यूमेंटी भारत के हितों के खिलाफ है, या प्रधानमंत्री के खिलाफ है, उन्हें अपमानित करने के लिए किया गया है, उनके आदर को कम करने के लिए किया गया है, जो दुनियाभर में ऐसा होता रहता है, तो इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती है.


पीएम के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण चीजों पर बैन जायज


वह विपक्ष के भी पीएम हैं और हैदराबाद और जेएनयू के लिए भी वह प्रधानमंत्री हैं. जो बैन हुआ है, सबसे पहले उसका आदर होना चाहिए. कुछ लोगों ने इसे इमरजेंसी टाइप ऑर्डर लिखा है, ये एक किस्म की आलोचना है. आलोचना का अधिकार आपको आर्टिकल 19 के तहत है. लेकिन आलोचना का मतलब ये नहीं है कि उसे घर के अंदर देखने लगे और यूनिवर्सिटी में उसकी स्क्रीनिंग कर सरकार को चुनौती दें.


ये प्रदर्शन की बात है. जो कोई सरकार के बैन को चैलेंज करना चाहता है तो वे आर्टिकल 226 के तहत हाईकोर्ट में जा सकता है. या भारतीय संविधान के आर्टिकल 32 के तहत सीधा सुप्रीम कोर्ट में जा सकता है, कि ये हमारा मौलिक अधिकार है और प्रेस, मीडिया, फिल्म, डॉक्यूमेंट्री पर इसे बैन लगाने की कोशिश की गई है.


लेकिन जब तक बैन है, कहीं न कहीं आप उसे चलाकर अपराध कर रहे हैं और सरकार के फैसले को चुनौती दे रहे हैं, जो कानूनी तौर पर सही नहीं है.


नोटिफिकेशन जारी करते ही बैन लागू


सरकार अगर नोटिफिकेशन जारी करती है तो वो चीज बैन हो जाएगी. विपक्ष इसके लिए संसद में सवाल कर सकता है. हम प्रदर्शन कर सकते हैं. सरकार को लिखित तौर पर देकर पत्र उसे वापस लेने की मांग कर सकते हैं. लेकिन यूनिवर्सिटी में टेंट लगाकर बैठ गए, वीडियो देख रहे हैं, ये सब गलत है.


सरकार समझ रही है कि यह राजनीति से प्रेरित है, इन लोगों को भटकाया गया है. इसलिए सरकार कोई कड़ा कदम नहीं उठा रही है. सवाल उठ रहा है कि क्या गुजरात केस का अभी फैसला नहीं हुआ है. जब एक मैटर का अंतिम तक शीर्ष कोर्ट से फैसला आ चुका है. फिर आपको क्या अधिकार बनाता है कि इसे सोशल मीडिया पर दिखाएँगे. सरकार ने अगर उसे बैन कर दिया. तो उसे देखना ठीक नहीं है.


बीबीसी कोई छोटा ऑर्गेनाइजेशन नहीं है. अगर उसे गैग ऑर्डर गलत लगता है तो वे सरकार के फैसले के खिलाप कोर्ट का रुख कर सकते हैं. जो चीज सार्वजनिक तौर पर देखने से मना किया गया, उसे सार्वजनिक तौर पर चलाकर अपराध कर रहे हैं.


विरोध करने का अलग तरीका


इस तरह सरकार ने पहले भी कदम उठाया है, जब सरकार को ऐसा कुछ लगा है तो उसने बैन किया है. जिन लोगों ने बनाया उसका अपना होत हो सकता है. लेकिन ये भारत सरकार तय करेगी कि यहां की जनता को उसे देखना चाहिए भी या नहीं. जब तक वह नोटिफिकेशन वैलिड है, पुलिस एक्शन ले सकती है.


बैन का मतलब है जिस तारीख से वह बैन है, न कोई उसे दिखा सकता है और न ही उसे फॉरवर्ड कर सकता है. चूंकि बच्चे हैं, इसलिए यूनिवर्सिटी में स्क्रीनिंग की जा रही है, ये पूरी तरह से गैर-कानूनी है.


छात्रों का काम ये नहीं है, हम प्रदर्शन कर सकते हैं, हम सरकार को लिखकर भेज सकते हैं कि इस तरह का आदेश गलत है. कई बार ऐसा होता है लोग फॉरवर्ड कर देते हैं, लेकिन बैन के बाद आप इसे आगे किसी को भेज भी नहीं सकते हैं. इसके साथ ही, सरकार के पैसे से यूनिवर्सिटी चलती है. इसलिए ऐसी जगहों पर स्क्रीनिंग तो कतई नहीं की जानी चाहिए.


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