कर्नाटक और हरियाणा में इन्फ्लूएंजा ए वायरस के H3N2 सब-टाइप से पीड़ित दो मरीजों की मौत हो चुकी है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इससे निपटने की तैयारियों को लेकर एडवाइजरी भी जारी कर चुका है. हाल के दिनों में देश भर में इस वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. ऐसे में लोगों के मन में इस वायरस को लेकर कई तरह के सवाल हैं जैसे कि अगर किसी को ये हो जाता है तो क्या करना चाहिए आदि....तो इस पर कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल इंदौर के डॉक्टर रवि दोसी ने कहा कि देखिये, ये इन्फ्लूएंजा एक वायरस है और H3N2 उसका एक वेरिएंट है. ये मूलतः नाक और मुख के द्वारा ये ह्यूमन बॉडी के अंदर प्रवेश करता है और फिर फेफड़े में जाकर ये निमोनिया जैसी सूजन को जन्म देता है. इस वजह से वहां पर काफी गढ़ा कफ बनने लगता है. इस वायरस के साथ-साथ कई तरह के सेकेंडरी बैक्टीरिया भी आ जाते हैं.
इसके चलते होने वाले सूजन से कई तरह के केमिकल भी निकलते हैं जिस वजह से बॉडी के अंदर बुखार आना, बदन दर्द होना, कमजोरी होना ये सारी समस्याएं सामने आने लगती हैं. इसके अधिकांश लक्षण श्वास प्रणाली से जुड़े होते हैं जैसे कि जुकाम, गले में दर्द, श्वास लेने में दर्द होना, सीने में दर्द इसके अलावा पूरे बॉडी में तेज बदन दर्द होना, तेज बुखार होना, बेहद कमजोरी महसूस होना और पतले दस्त होना और कभी-कभी लोगों को सुगंध की भी समस्या आती है. उनको प्रॉपर स्मेल नहीं आती है.
इन्फ्लूएंजा एक कॉमन बीमारी है और इसके जो सामान्य केस होते हैं उसमें व्यक्ति को एक दो दिनों तक बुखार और खांसी होकर ठीक हो जाते हैं. अगर किसी को दो दिनों से अधिक 100 डिग्री से अधिक बुखार और साथ में सर्दी-खांसी हो या बलगम आना चालू हो जाए तो उस स्थिति में उन्हें डॉक्टर से परामर्श लेना जरूरी हो जाता है. देखिये, ऐसे तो लोग अपने से सामान्य सर्दी-जुकाम और बुखार होने पर मेडिसिन का इस्तेमाल कर लेते हैं कि इस इन्फ्लूएंजा में तीव्रता है जैसे कोरोना के समय में भी हम लोगों को सलाह देते थे कि वे जेनेरिक दवाओं का प्रयोग नहीं करें. चूंकि आज-कल के जो वायरल निमोनिया के पैटर्न है ये कम समय में बहुत जल्दी बिगड़ जाते हैं और लंग्स पर अटैक कर देते हैं तो ऐसे में मैं तो यही सलाह दूंगा कि अगर सामान्य सर्दी-जुकाम और बुखार पेरासिटामोल से नहीं ठीक हो रहा हो तो मरीज को तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं. जेनेरिक दवाएं नहीं लीजिए क्योंकि वो सेफ नहीं है.
देखिये, किसी भी वायरल इन्फेक्शन में प्रीकॉशन सेम ही रहता है. जैसे की मास्क लगाना, सोशल डिस्टेंसिंग, हाथ धोकर खाना खाना, जुकाम की स्थिति में रुमाल का इस्तेमाल करना चाहिए. ये एक बेसिक कफ एसीटेट जो रहता है वो सभी वायरल बीमारियां कोविड और इन्फ्लूएंजा दोनों के ऊपर अप्लाई होता है. तो जो सावधानियां कोविड संक्रमण के दौरान बरती गईं है वे इन्फ्लूएंजा के केश में भी लागू होती हैं और रही बात एक एपिडेमिक के तौर पर फैलने की तो एक समय आता है जब मामलों में बढ़ोत्तरी देखी जाती है तो ये वो समय है जब हमें सावधान रहने की जरूरत है. चूंकि ये संक्रमण काफी तेजी से फैलता है क्योंकि अगर एक व्यक्ति को होता है तो पूरा परिवार भी इसकी चपेट में आ जाता है.
अगर कोई बीमारी तीव्र रूप धारण कर ले और निमोनिया फेफड़े के अधिकांश हिस्से को प्रभावित कर दे तो निश्चित रूप से मरीज की परिस्थिति गंभीर हो सकती है तो ऐसे में हमें बहुत सावधानी से इस तरह के मामलों को डील करनी होती है ताकि ये मामला और नहीं बिगड़ जाए. अगर किसी को ऑक्सीजन की आवश्यकता लग रही हो तो उसे तुरंत दे दिया जाए. निश्चित रूप से इन्फ्लूएंजा एक खतरनाक बीमारी है और अगर ये हमें ग्रसित करती है तो बेस्ट पॉसिबल इलाज लेना चाहिए. इसे कभी भी हल्के में नहीं लेना चाहिए. क्योंकि ये मामले कभी-कभी मरीज की मृत्यु का कारण बन जाती हैं. ऐसे कुछ मामले अभी हरियाणा और कर्नाटक में देखने को मिले हैं.
जितनी भी वायरल बीमारियां होती हैं उनका इन्क्यूबेशन पीरियड चार से पांच दिनों का होता है और सेडिंग पीरियड रहता है वो 10 से 15 दिन का रहता है तो उस समय मरीज को नियमों का पालन सख्ती से करना चाहिए. देखिये, जो जब किसी व्यक्ति में लक्षण दिखता है तो उस वक्त इसके प्रसार की भी संभावना बढ़ जाती है तो उस वक्त उन्हें निश्चित रूप से पूरी सावधानियों का पालन करना चाहिए.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.ये आर्टिकल डॉक्टर रवि दोसी से बातचीत पर आधारित है.]