आर्थिक बदहाली से जूझ रहे पाकिस्तान की राजनीति में भूचाल आया हुआ है. पाकिस्तान के जाने-माने पत्रकार हामिद मीर ने खुलासा किया है कि पूर्व पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल (रिटायर्ड) कमर जावेद बाजवा ने कश्मीर पर भारत के साथ समझौता किया था.
हामिद मीर ने तो यहां तक कह दिया है कि बाजवा ने कश्मीर को बेच दिया. हामिद मीर ने कहा है कि 25 और पत्रकार इस खुलासे के गवाह हैं. उनके इस खुलासे के बाद से ही पाकिस्तान में राजनीतिक भूकंप आ गया है.
कोई बहुत बड़ा खुलासा नहीं, हामिद मीर पुराने विद्रोही
हामिद मीर ने कोई बहुत नई और अनूठी बात नहीं कही है. यह कोई जबदस्त खुलासा नहीं है. किसी भी देश की सेना के बारे में, खासकर उसके दुश्मन देश के संदर्भ में अगर ऐसा खुलासा होगा तो हंगामा होना तो स्वाभाविक ही है. पाकिस्तान और भारत के रक्षा मामलों को अगर हम तुलनात्मक ढंग से देखें तो वे पाकिस्तान को बेचें या न बेचें, कश्मीर को बेचें या न बेचें, यह तो दुनिया के सामने स्पष्ट तथ्य है कि भारत की सैन्य स्थिति के सामने पाकिस्तान की हालत कुछ भी नहीं है. पाकिस्तान के चूंकि वह सेनाध्यक्ष रहे हैं, तो बाजवा के बयान पर बवाल तो होना ही है. वह बवाल भी पाकिस्तान में होना है.
भारत के लिए तो यह खुशी की बात होनी चाहिए. वहां जो पाकिस्तान का एक सत्ता केंद्र होता है-सैन्य बलों का, वह तो कहने के लिए एक लोकतांत्रिक देश है. हालांकि, कब्जा तो पाकिस्तानी सेना के प्रमुख का ही होता है. अगर पाकिस्तानी सेना का प्रमुख ऐसी बात कहता है तो जाहिर तौर पर पाकिस्तान में भूचाल आना ही है. भारत के परिप्रेक्ष्य में तो यह बेहद खुशी की बात है. यह सोचकर तो अच्छा महसूस करना चाहिए कि पाकिस्तान अंदरूनी हल्कों में भारत से डरता है और चाहता है कि भारत उस पर हमला न करे. यह डर तो अच्छा है.
वैसे भी, आपको याद ही होगा कि हामिद मीर पाकिस्तान में अक्सर विवादों में रहे हैं. वे लगातार पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान के खिलाफ मुखर रहे हैं. आप दो साल पहले का उनका बयान देख लीजिए, जिसके बाद उन्हें ऑफ एयर किया गया और आखिरकार उन्होंने पाकिस्तानी सेना से माफी मांगी. उसके पहले वह 2014 में हमले का शिकार हो चुके हैं और पूरी दुनिया में यही संदेश गया था कि उनकी कार पर हमला किसी और ने नहीं, पाकिस्तानी सेना ने ही करवाया था. वह पाकिस्तानी सेना के बारे में लगातार बोलते हैं और वह एक न्यूट्रल रिपोर्टर की तरह ही बोलते हैं.
हालांकि, आज पूरी दुनिया में यह केवल कहने की बात रह गई है कि रिपोर्टर को निष्पक्ष होना चाहिए. पत्रकार अक्सर इस बात का लिहाज रखते हैं कि उनका जो देश है, उसे कोई नुकसान न पहुंचे. हामिद मीर इस मामले में पुराने क्रांतिकारी रहे हैं. जब वह 30 वर्ष की ही अवस्था में पाकिस्तान के एक राष्ट्रीय दैनिक के संपादक बन गए थे, तभी से वो भारतीय चैनल्स के चहेते रहे हैं. अब तो खैर पाकिस्तान में उनका अनुकरण करने वाले कई हैं. एक दौर में तो भारत के तमाम चैनल्स पर पाकिस्तान के बारे में हामिद मीर ही रिपोर्ट करते थे, बोलते थे. वह पाकिस्तान की आंखों की किरकिरी भी रहे हैं.
इमरान का समर्थन राजनीतिक मजबूरी
इमरान खान इस खुलासे का स्वागत कर रहे हैं, उनके समर्थक हामिद मीर के बयान का स्वागत कर रहे हैं, तो उसकी भी अपनी वजह है. इमरान खान की बाजवा से अदावत किसी से छिपी नहीं हुई है. इमरान मानते हैं कि उनको सत्ता से दूर कराने में बाजवा का ही हाथ था. अब तो वह खुलकर इस बात को बोलते भी हैं. इस खुलासे के बाद पाकिस्तान की राजनीति में भी उथलपुथल होगी. इमरान की जो पार्टी या समर्थक हैं, उनमें जश्न का जो माहौल है, वह उचित ही है. दूसरे, बाजवा के समर्थक दुखी भी हैं. वह हामिद मीर पर हमला भी कर सकते हैं.
अगर भारत की तरफ से कोई इस पूरे मामले में इनवॉल्व था, तो यह भारत की कूटनीतिक सफलता ही कही जाएगी. भारत की तो ये घोषित नीति है कि सीमा पर शांति बनी रहे. कश्मीर के मामले में कोई दूसरा देश हस्तक्षेप न करे. भारत की संसद बाकायदा प्रस्ताव पेश कर चुकी है कि कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग है, अटूट हिस्सा है. अगर भारत का जुड़ाव है किसी भी तरह इस मसले से है तो यह तो स्वागत योग्य बात है. पाकिस्तान के नजरिए से भले ही यह गलत बात हो. उसकी राजनीति में शुरू से ही कश्मीर उसकी पॉलिसी का एक हिस्सा रहा है और वहां के नेता कश्मीर के नाम पर अपनी जनता को मोबिलाइज करते रहे हैं, वहां वह पाकिस्तानी राष्ट्रवाद को उभारने की कोशिश करते रहे हैं, तो निश्चित तौर पर ही बाजवा दोषी ठहराए जाएंगे.
यहां आपको पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ की आत्मकथा के वो पन्ने याद करने चाहिए, जिसमें उन्होंने लिखा है कि पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी अपने पीएम से तो हाथ मिलाते हैं, लेकिन भारत के प्रधानमंत्री को सैल्यूट करते हैं. ये पाकिस्तान की परंपरा रही है कि सेना वहां समांतर सत्ता चलाती है और चुने हुए प्रधानमंत्रियों को अपने ठेंगे पर रखती है. एक भारतीय या तटस्थ पत्रकार होने के नाते मुझे यह जानकर आश्चर्य नहीं होगा कि इमरान को बाजवा ने अंधेरे में रखा, जैसे मुशर्रफ ने नवाज शरीफ को रखा था. यह तो इमरान खान की सोच ही अजीब है कि बाजवा उनको हर बात बताएंगे. वहां तो आर्मी एक पैरलल व्यवस्था चलाती है, तो प्रधानमंत्री को हरेक बात तो बताती नहीं है. यहां तक कि इमरान की पार्टी को खड़ा करने, चुनाव लड़ाने औऱ जितवाने में सेना की भूमिका किसको नहीं पता है? अब ऐसे में ये सोचना कि आर्मी का प्रमुख आपको हरेक बात बताएगा, ये हास्यास्पद है.
इमरान खान उठाएंगे राजनीतिक फायदा
पाकिस्तान की नई पीढ़ी भारत से अपनी तुलना करती है. वह भारत से तुलना कर खुद की सरकार को कोसती है. सोशल मीडिया पर ऐसे कई पाकिस्तानी मिलेंगे जो भारत से तुलना कर कहते हैं कि भारतीय डेमोक्रेसी अच्छी है. वे भारत के मुरीद हैं. इमरान खान की पार्टी यह सोच रही है कि नौजवान वोटर्स को मोबिलाइज किया जाए. वे यह साबित कर सकते हैं कि युवकों को बताएं कि देखिए हमारी सेना कैसी है और पड़ोसी भारतीय सेना कैसी है?
पाकिस्तानी सेना को भारत का भी डर होगा ही. भारत में 2014 के बाद ऐसी सरकार है जो अधिक बोलती नहीं, कर गुजरती है. आपको बालाकोट स्ट्राइक के समय की बात याद होगी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रयागराज में संगम-स्नान कर रहे थे और बालाकोट की स्ट्राइक हो गई. उसी तरह म्यांमार में भी जब सेना घुसी तो उसके पहले बहुत बयानबाजी नहीं की गयी. पाकिस्तानी सेना में भारत के रुख को लेकर एक आशंका तो होगी ही. पाकिस्तानी जनता के मन में भी ऐसा होगा. भारत अब कुछ तो करेगा ही, लेकिन वह कब और कैसे करेगा, यह तो देखने और समझने से अधिक प्रतीक्षा की बात है. अभी का भारत बिना कुछ बोले कर गुजरता है, तो पाकिस्तान की आशंका स्वाभाविक है.
(ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)