हर्ष मंदर! एक पूर्व आईएएस जिन्होंने, 2002 गुजरात दंगों से आहत होकर देश के सबसे प्रतिष्ठित नौकरी छोड़ दी और मानवाधिकार कार्यकर्ता के तौर पर काम करने लगे. गरीब-मजलूमों और बेसहारों की आवाज बने. गुजरात दंगों में घृणा और हिंसा ने 1044 लोगों की जान ले ली. एक स्वतंत्र जांच इकाई कंसन्ड सिटीजन ट्रिब्यूनल की मानें तो कम से कम 2000 लोगों की दंगों में मौत हुई, जिसमें ज्यादातर मुस्लिम थे.
इस घटना के दो दशक बाद मंदर एक बार फिर सुर्खियों में हैं और उन्होंने खुद को एक मानवाधिकार कार्यकर्ता, सामाजिक न्याय के एक अथक वकील, गरीब, बेघर लोगों की आवाज के रूप में प्रतिष्ठित किया है और करुणा और भाईचारे को बनाने की कोशिश में जुटे हैं.
मृदुभाषी मंदर के बारे में कहा जाता है कि चाहे किसी ने भी उकसाया हो लेकिन कभी उन्होंने गुस्से पर प्रतिक्रिया नहीं दी. गुस्सा इस पृथ्वी पर है. जो कि वन पर्व जिसे फॉरेस्ट ऑफ बुक के नाम से जाना जाता है उसमें बताया गया है. गुस्सा मानव जाति के विनाश की जड़ है. गुस्से में एक इंसान दूसरे इंसान को मार सकता है, जिससे प्यार करना चाहिए. उससे प्यार करते हैं, जिससे नहीं करना चाहिए. गोवा के एक कलाकार जो मेरे मित्र भी हैं मंदर को अच्छी तरह से जानते हैं. उन्होंने हाल ही में मंदर को गांधी के सांचे में देखा.
ऐसे समय में, जब सभ्य लोगों को यह साबित करना पड़ रहा है कि वे देशद्रोही नहीं हैं और कुछ लोग अपनी इच्छा के अनुसार मॉब लिंचिंग करने पर उतारू हैं. महात्मा गांधी स्वयं राष्ट्र के लिए एक गद्दार बन गए, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि गांधी के जो गुण थे, वे उन लोगों द्वारा तिरस्कृत थे, जो अब सड़कों पर अपनी ताकत दिखा रहा हैं.
मंदर हिंदू नेशनलिस्ट के निशाने पर रहे हैं. लेकिन अब मंदर के खिलाफ पुलिस ने शिकायत की है. आरोपों को उन्होंने खुद खारिज किया है. दरअसल हाल ही में दक्षिणी दिल्ली में भारी रक्तपात हुआ. मंदर ने पुलिस की भूमिका को कठघरे में खड़ा किया. यही नहीं राजनीतिक दलों पर भी सवाल उठाए. 3 मार्च को प्रेस कॉन्फ्रेंस में मंदर ने दिल्ली पुलिस की भूमिका को शर्मनाक बताया. उन्होंने कहा, ''अगर राज्य नहीं चाहेगा तो कोई भी बड़ा दंगा नहीं हो सकता है...अगर कोई बड़ा दंगा होता भी है तो छह घंटे के भीतर इसे नियंत्रित किया जा सकता है और इस तरह के दंगे नहीं होंगे.''
4 मार्च को, मंदर बीजेपी नेताओं कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर और अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश हुए. इन नेताओं पर नफरत फैलाने वाले भाषण देने का आरोप है. माना जाता है कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में तनाव की शुरुआत भाषणों से ही हुई. हिंसा की शुरुआत 23 फरवरी को हुई और कई दिनों तक जारी रही.
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता भारत सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए और उन्होंने दावा किया कि मंदर ने कई मौकों पर सुप्रीम कोर्ट पर भी सवाल उठाए हैं. सॉलिसिटर जनरल ने फिर मंदर के 16 दिसंबर के एडिटेड भाषण को पेश किया, जो उन्होंने जामिया यूनिवर्सिटी में दिया था. 16 दिसंबर की पिछली रात को दिल्ली पुलिस ने यूनिवर्सिटी में घुसकर दर्जनों छात्रों को बेरहमी से पीटा था और बुरा बर्ताव किया था.
चीफ जस्टिस एसए बोबड़े ने मंदर की याचिका को खारिज कर दिया और कहा, ''आपने सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बयान दिया है. हम अभी आपकी याचिका को नहीं सुनेंगे. अगर सुप्रीम कोर्ट के बारे में हर्ष मंदर को ऐसा लगता है, तो हमें पहले उस पर फैसला करना होगा.'' सुप्रीम कोर्ट ने मंदर से दिल्ली पुलिस के आरोपों का जवाब देने के लिए कहा है और उनके कथित नफरत भरे भाषण के बारे में पूछा है.
सुप्रीम कोर्ट में मंदर की तरफ से वकालत करने वाले वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे की मानें तो यह साफ तौर पर याचिकाकर्ता को सरकार की तरफ से दबाने वाला मामला है और "जिनके भाषण से वास्तव में अशांति पैदा हुई, उनके खिलाफ कार्रवाई करने से इनकार करना है."
16 दिसंबर की शाम जामिया के बाहर जमा भीड़ के सामने मंदर ने क्या कहा था? उन्होंने कहा था, "ये जंग, जो इसने शुरू की है, ये जंग हमारे देश के लिए, हमारे संविधान के लिए और प्यार के लिए है." मंदर आगे इस बात को कहते हैं कि सरकार ने भारत के लोगों के खिलाफ जंग शुरू कर दी है और यह सबसे बड़ी विडंबना है कि सत्तारूढ़ दल उन लोगों से प्रेरित है, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कोई भूमिका नहीं निभाई. सरकार अब उन लोगों से बदला ले रही है, जो संविधान में निहित मूल्यों के लिए खड़े हैं और एंटी नेशनल होने का तमगा झेल रहे हैं.
एंटी सीएए प्रोटेस्ट और प्रतिरोध की भावना पूरे देश में दिसंबर के मध्य में ही महसूस होने लगी थी. इसको लेकर मंदर अपने संबोधन के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से में कहते हैं: “यह लड़ाई संसद (भारतीय) में नहीं जीती जाएगी. और न ही इसे सुप्रीम कोर्ट में जीता जाएगा. यह मामला न ही संसद और न ही सुप्रीम कोर्ट में हल किया जाएगा, बल्कि ये गलियों में होगा." मंदर स्पष्ट भाषा में ये साफ करते हैं कि अंधेरे का जवाब रोशनी है और नफरत का जवाब सिर्फ मुहब्बत है. चौंकाने वाला है कि मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच को एक धार्मिक समुदाय से नफरत की खुलेआम वकालत करने वालों के खिलाफ एफआईआर के लिए मंदर की याचिका को खारिज कर दिया.
दिल्ली पुलिस का दावा- हर्ष मंदर ने बार-बार SC के खिलाफ लोगों को भड़काया, CJI ने मांगा जवाब
साल 1922 में महात्मा गांधी के खिलाफ राजद्रोह का केस चला तब जज ने कहा था कि "स्नेह कानून द्वारा निर्मित नहीं किया जा सकता है." उन्होंने कहा था उनकी अदालत में आज तक इतना प्रभावशाली व्यक्ति कभी नहीं आया, जिसे उसके देश में सबसे बड़ा देशभक्त कहा जाता हो और जिसके इतने समर्थक हैं.
अधर्म की वकालत करने या लोगों को हिंसा के लिए उकसाने से दूर मंदर इस बात के लिए काफी हैं कि राज्य कभी जीत नहीं सकता. क्लासिक अभिव्यक्ति में, लोंगों के दिल और दिमाग प्यार के सिवाय हिंसा से इनकार करते हैं. इसके अलावा, यह भारत के लोग हैं, जिन्हें अहिंसा के ज़रिए राज्य से लड़ाई लड़नी होगी. ताकि अपने आपको स्वतंत्रता, न्याय और बराबरी दे सकें.
विनय लाल UCLA में इतिहास के प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं. साथ ही वो लेखक, ब्लॉगर और साहित्यिक आलोचक भी हैं.
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(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)