देश के विभिन्न राज्यों में खनन माफिया कितना बेखौफ हो चुका है, इसका ताजा उदाहरण हरियाणा में देखने को मिला है, जहां एक पुलिस अफसर की डंपर से कुचलकर सरेआम हत्या कर दी गई. ये घटना एक बड़ा सवाल उठाती है कि हमारी राज्य सरकारें खनन माफिया के सामने क्या इतनी बौनी हो चुकी हैं या फिर ऐसे माफिया को मिलने वाला राजनैतिक प्रश्रय ही इसकी बड़ी वजह है?


इसलिए कि ये कोई पहला मामला नहीं है. देश के अलग-अलग राज्यों में पहले भी ये माफिया पुलिस अफसरों समेत उनका विरोध करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं व आरटीआई एक्टिविस्ट को अपना निशाना बनाता रहा है. हालांकि हरियाणा जैसी कोई भी घटना होने के बाद उस समय तो सरकार तुरंत हरकत में आ जाती है लेकिन कुछ दिन बीत जाने के बाद माफिया फिर उसी ताकत से अवैध खनन के गोरखधंधे में जुट जाता है. इसलिए सवाल उठता है कि ऐसे माफिया को राजनीतिक संरक्षण कहां से मिलता है, जिसके चलते पुलिस भी उस पर हाथ डालने से पहले दस बार सोचती है?


दरअसल,हरियाणा के नूंह जिले में स्थित अरावली की पहाड़ियों में अवैध खनन के जरिये पत्थर निकालने का खेल पिछले कई सालों से चल रहा है.आलम ये है कि हर साल नूंह में अवैध खनन की करीब 50 शिकायतें दर्ज होती हैं लेकिन कार्रवाई उनमें से महज एक-दो पर ही होती है. बताते हैं कि अवैध खनन का ये काला कारोबार स्थानीय पुलिस की मिलीभगत के बगैर नहीं हो सकता. इसलिये जिन मामलों में सांठगांठ सिरे नहीं चढ़ पाती है,वहां खनन माफिया के गुर्गों और पुलिस के बीच अक्सर फसाद होता रहा है.


मंगलवार को हुई घटना को भी इसी पहलू से जोड़कर देखा जा रहा है. एक शिकायत मिलने के बाद हरियाणा पुलिस के डीएसपी सुरेंद्र सिंह भी अवैध पत्थर खनन की जांच करने  मौके पर पहुंचे थे.पत्थर से लदे एक डंपर ट्रक के ड्राइवर को जब उन्होंने रुकने का इशारा किया,तो उसने रोकने की बजाय उसकी रफ्तार बढ़ाते हुए उन्हें ही कुचल डाला.


अधिकारियों के मुताबिक, डीएसपी के ड्राइवर और सुरक्षाकर्मी ने सड़क के किनारे कूदकर अपनी जान बचाई, लेकिन सुरेंद्र सिंह ट्रक की चपेट में आ गए. हालांकि डीएसपी सुरेंद्र सिंह बिश्नोई की हत्या के चंद घंटों के भीतर ही पुलिस ने बड़ी कार्रवाई करते हुए एनकाउंटर में एक बदमाश को गिरफ्तार किया है. एनकाउंटर के दौरान बदमाश के पैर में गोली लगी है.


बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अरावली की पहाड़ियों में किसी भी तरह के खनन पर रोक लगा दी गई थी.बावजूद इसके खनन माफिया अपनी हरकतों से बाज नहीं आए लेकिन सवाल फिर यही है कि पुलिस की मर्जी के बगैर के कैसे संभव हो सकता है.


कुछ स्थानीय लोग तो ये भी दावा करते हैं कि खनन के  इस खेल में कई सफेदपोश भी शामिल हैं. डीएसपी की हत्या के बाद अब ये सवाल भी उठ रहा है कि वे सफेदपोश कौन हैं और उनको किस राजनीतिक दल से संबंध है? इस हत्याकांड की जांच के बहाने पुलिस को उन सफेदपोश,ताकतवर लोगों के चेहरे उजागर करने की हिम्मत भी जुटानी चाहिए, अन्यथा जनता में तो यही संदेश जायेगा कि ये सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं.




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