Haryana Result Analysis: हरियाणा में आखिर क्यों पिट गया मिशन 370?
दुष्यंत अभी पत्ते नहीं खोल रहे हैं. कह रहे हैं कि विधायक दल की बैठक होगी, राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक होगी जिसमें सामूहिक रुप से तय किया जाएगा कि किसके साथ जाना है या विपक्ष में बैठना है. लेकिन हम सब जानते हैं कि फैसले किस तरह बंद कमरों के पीछे लिए जानते हैं.
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हरियाणा में जाट क्रांति से बीजेपी सदमे में है . जीत के लडडू फीके पड़ गये हैं . कांग्रेस के हाथ से जीत का लडडू आते आते गिर गया लगता है. लेकिन एक शख्स हैं जिनके दोनों हाथ में लडडू हैं. तीसरे नंबर पर रहने के बावजूद वो लडडुओं को जीत का लडडू बता रहे हैं. बताए भी क्यों न. अभी कहानी यह है कि दुष्यंत चौटाला के हाथ में सत्ता में चाबी है. उनकी पार्टी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का चुनाव चिन्ह भी चाबी ही है.
दुष्यंत चौटाला के पिता अजय चौटाला है जो जेल में हैं. उनके दादा ओम प्रकाश चौटाला है जो इस समय जेल में हैं और हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उनके परदादा यानि ओम प्रकाश चौटाला के पिता चौधरी देवीलाल देश के उप प्रधानमंत्री रह चुके हैं. ऐसे में महत्वाकांक्षा दुष्यंत चौटाला के खून में है. आठ महीने पुरानी इनकी पार्टी से ऐसी उम्मीद नहीं की जा रही थी.
लेकिन अब सवाल उठता है कि दुष्यंत आगे क्या करेंगे. दुष्यंत अभी पत्ते नहीं खोल रहे हैं. कह रहे हैं कि विधायक दल की बैठक होगी, राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक होगी जिसमें सामूहिक रुप से तय किया जाएगा कि किसके साथ जाना है या विपक्ष में बैठना है. लेकिन हम सब जानते हैं कि फैसले किस तरह बंद कमरों के पीछे लिए जानते हैं. वैसे दुष्यंत के बारे में कहा जाता है कि वह शायरी पसंद करते हैं. चुनावी रैलियों में अपने लिखे शेर पढ़ते भी है. अपने कार्यकर्ताओं को वानर सेना कहते हैं. विदेश से एमबीए किया है लेकिन गांवों में किसानों के साथ बैठने और खाना खाने से संकोच नहीं करते.
सोशल मीडिया पर लगातार सक्रिय रहते हैं. यानि जमाने के साथ चलते हैं. चाचा अभय चोटाला ने पांच साल पहले 2014 का लोकसभा चुनाव सिरसा से लड़वाया था. तब दुष्यंत बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं थे लेकिन अब जानकारों का कहना है कि दुष्यंत को लगने लगा कि चाचा ही उनकी सियासी सफर में स्पीड ब्रेकर साबित हो सकते हैं और उन्होंने अपने परिवार यानि इंडियन नेशनल लोकदल से ही किनारा कर लिया. जानकारों का कहना है कि दुष्यंत अगर कांग्रेस के साथ जाते हैं तो कम से कम उप मुख्यमंत्री पद लिए बिना नहीं मानेंगे. अगर कांग्रेस की सरकार बनने की सूरत निकलती है.
वैसे हरियाणा में तय है कि जो सबसे बड़ी पार्टी होगी उसी की सरकार बनेगी. इस लिहाज से बीजेपी तो ज्यादा ही फायदे में रहेगी. राजपाल पहला मौका बीजेपी को देंगे. निर्द्लीय को तोड़ना मुश्किल नहीं है. मायावती की पार्टी का एक विधायक जीता है जिसके कहीं भी जाने की बात कही जा रही है.
चलिए मान लिया कि बीजेपी फिर सरकार बनाने में कामयाब हो जाएगी. खट्टर साहब फिर से मुख्यमंत्री भी बन जायेंगे लेकिन डबल इंजन के दावे का क्या हुआ. मिशन 75 का क्या हुआ. लंबे चौड़े वायदों का क्या हुआ. सवाल उठता है कि 370, पाकिस्तान, तीन तलाक के बाद भी त्रिशंकु विधानसभा ही बनती है तो आगे क्या रणनीति बनाई जाए. किसानों नौजवानों के मूल मुद्दों को नकार कर या हाशिये पर डालकर जनता की आंखों में धूल नहीं झोंकी जा सकती. कुछ दिन पहले मैंने लिखा था कि हरियाणा में सब कुछ हरा नहीं है. देखिये.
गुरुग्राम और मानेसर में सड़क के दोनों तरफ बड़ी बड़ी भव्य इमारतों, शापिंग मॉल्स और मल्टी नेशनल कंपनियों के दफ्तर के बीच फुटपाथ पर ई–रिक्शा का इंतजार करते नवयुवकों से बात करो तो सारा विकास धरा पर आ जाता है. नौजवानों का दर्द है कि आर्थिक मंदी की मार झेल रहे हैं और सात आठ हजार की नौकरी के लिए धक्के खा रहे हैं. हरियाणा में प्रति व्यक्ति आय 226644 रुपये सालाना है जो देश की औसत 126466 से एक लाख से ज्यादा है. विकास दर 8.7 फीसद है जो ठीक कही जा सकती है . लेकिन सड़क पर मिले नौजवान हाशिए पर ही हैं.
रोहतक से जींद जाते समय जुलाना के आगे किसानों पर नजर पड़ी जो धरने पर बैठे थे. चार अप्रेल से ....भूमि के मुआवजे की मांग को लेकर. कहने लगे कि सात साल पहले पास के गांव में सड़क के लिए जमीन का अधिग्रहण हुआ तो 39 लाख रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवाजा मिला. लेकिन भूमि अधिग्रहण कानून लागू होने के बाद आज उन्हें हरियाणा सरकार 28 लाख रुपये ही दे रही है. किसानों की मांग दो करोड़ रुपये प्रति एकड़ की है. इनका दुख है कि चुनावों के समय कांग्रेस भी उनकी तरफ ध्यान नहीं दे रही है. हरियाणा में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत 13 लाख 37 हजार किसान रजिस्टर्ड है. इन्हें साल में छह हजार रुपये दो दो हजार की तीन किश्तों में दिया जाना तय किया गया है. सरकार का दावा है कि तीसरी किश्त दी जा रही है लेकिन सरकारी आंकंड़े ही बताते हैं कि 72 हजार 316 किसानों को पहली किश्त का ही इंतजार है. इसी तरह दो लाख 80 हजार किसानों को दूसरी किशत नहीं मिली है. हैरानी की बात है कि चुनाव काल में भी 13 लाख 37 हजारों में से 9 लाख 77 हजार को तीसरी किश्त का इंतजार है.
एक गांव में पेड़ के नीचे हुक्का गुड़गुड़ाते और ताश पीटते किसान दिखे. एक से पूछा कि 2022 तक आमदनी दोगुनी होने का भरोसा दिला रही है बीजेपी. कहने लगे कि 2022 तक आमदनी तो दुगुनी होगी नहीं उल्टे आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या जरुर दोगुनी हो जाएगी. हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से आधी से ज्यादा ग्रामीण है. यहां राज्य की जीडीपी में कृषि का हिस्सा 17 फीसद है लेकिन जींद में एक खेत में नरमा कपास की चुनाई करते हुए एक महिला मिली. नाम भागमती. कहने लगी कि जिंदगी कपास जैसा नरम बिल्कुल नहीं है. केदारनाथजी की कविता याद आ गयी. मैंने एक औरत के हाथों को छुआ मुझे लगा दुनिया को इसी तरह नरम और मुलायम होना चाहिए. कविता से कितनी अलग है भागमती की जिंदगी.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
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