देश की आर्थिक राजधानी मुंबई 2005 की तरह इस साल फिर पानी-पानी हो गई लेकिन इसके लिए भारी बारिश और हाई टाइड को जिम्मेदार बताने वालों को चुल्लू भर पानी भी मयस्सर नहीं है. यह प्राकृतिक नहीं, मानव निर्मित आपदा है जिसकी जिम्मेदार वृहन्नमुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) है. इसी की काहिली का नतीजा है कि सड़क और रेल मार्ग को लकवा मार गया है तथा मायानगरी कीचड़ में सन गई है. लेकिन बीएमसी के एक उपायुक्त सुधीर नाईक कह रहे हैं- ‘बीएमसी की तारीफ की जानी चाहिए कि छोटे-बड़े नालों की सफाई का काम 15 जून से पहले ही पूरा कर लिया गया था. वह तो 21 जगहों पर एक ही दिन में 200 मिलीमीटर से ज्यादा हुई बारिश ने पूरी तैयारी पर पानी फेर दिया.’ लेकिन इन कमिश्नर साहब से कोई पूछेगा कि जब हर साल की मामूली बारिश में जल-निकासी नहीं हो पाती तो भारी बारिश के समय इनकी लचर आपदा प्रबंधन प्रणाली क्या कर लेगी? एनडीआरएफ की टीमें बाहर से मंगानी पड़ रही हैं. हालात यहां तक बिगड़ गए कि पानी घुस जाने के कारण मध्य मुंबई स्थित केईएम अस्पताल का पूरा पीडियाट्रिक वार्ड मरीजों से खाली कराना पड़ा!

मुंबई के फुटपाथों, बस अड्डों, रेल्वे प्लेटफॉर्म, मंदिरों, चर्चों, गुरुद्वारों, गणेश पंडालों और स्कूलों में पूरी रात लाखों लोग जान बचा कर छिपे रहे और पानी में डूबी रेल पटरियों पर जान से खेलते हुए आज सुबह किसी तरह घर पहुंचे. डोम्बीवली निवासी रामचंद्र शिंदे ने स्टेशन पर बताया- ‘मैं विद्याविहार में फंसा हुआ था. बैटरी खत्म होने के बाद फोन ने भी काम करना बंद कर दिया. उधर घर वाले टेंशन में थे, इधर मैं बेचैन था. अभी जानवरों की तरह कल्याण लोकल में लटक कर यहां पहुंचा हूं.’ शिंदे का यह वाक्य लाखों लोगों की व्यथा बयान करता है. संयुक्त पुलिस आयुक्त अमितेश कुमार भी मजबूर दिखे- ‘भारी बारिश के चलते महानगर में पैदा हुए बाढ़ के हालात बचाव कार्य को बुरी तरह प्रभावित कर रहे थे. यहां तक कि हमारी टीम के भी कुछ जवान फंस गए थे.’

मौसम विभाग के वैज्ञानिक एम. मोहापात्रा कह रहे हैं कि अगले 24 घंटों में मुंबई तथा इसके आस-पास सामान्य से लेकर थोड़ी ज्यादा बारिश हो सकती है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मुंबईकरों का क्या हाल होने वाला है! जरी-मरी (कुर्ला) में रहने वाले मेरे एक परिचित ने बताया कि बाढ़ का पानी दीवार फोड़कर अंदर घुस आया था लेकिन पीने का पानी नहीं है.

राज्य सरकार ने एहतियातन स्कूल-कॉलेजों की छुट्टी घोषित कर दी है, पुलिस ने हेल्पलाइन स्थापित कर दी है, सीएम फड़नवीस ने बेहद जरूरी काम होने की स्थिति में ही लोगों को घर से निकलने की सलाह दी है, घर पहुंचाने के लिए ‘बेस्ट’ विशेष बसें चला रहा है. लेकिन निचले इलाकों में जल-भराव के चलते लोगों की जिंदगी अब भी थमी हुई है. कुछ लोग बीच सड़क पर अपने वाहन छोड़कर भाग गए हैं. दादर और खार रोड में जगह-जगह पेड़ गिरे पड़े हैं. कई इलाकों में घंटों बिजली गुल रही. लेकिन तारीफ करनी होगी मुंबईकरों की, जिन्होंने हर आपदा की तरह लोगों की यथासंभव मदद की. पूरी रात पानी, चाय, बिस्किट, खाना-पीना उपलब्ध कराते रहे. लेकिन दूध, फल और सब्जियां लाने वाली गाड़ियां कल शाम से ही मुंबई के बाहरी इलाकों में अटकी हुई हैं. मौजूदा स्टॉक कब तक चलेगा? भायखला और नवी मुंबई की प्रमुख मंडियों के साथ-साथ सैकड़ों स्थानीय सब्जी मंडियों में पानी भर जाने के कारण सारा सामान सड़ रहा है. दुर्गंध से नाक में दम है. ठाणे के पोखरण इलाके में ठेला लगाने वाले राजू कुशवाहा बताते हैं- ‘मंडी से सब्जियों के टेम्पो नहीं आ रहे हैं और कल से ग्राहक भी नहीं निकल रहे हैं.’

घाटकोपर के जूलर शांतिलाल कथूरिया का अनुभव है- ‘कल शाम को मैं बांद्रा से बस में चढ़ा लेकिन वह कुछ दूर जाकर ट्रैफिक में फंस गई. एक घंटे इंतजार करने के बाद पैदल चला और कुर्ला फ्लाईओवर तक पहुंचा. वहां से दूसरी बस पकड़ी जो थोड़ी दूर चलकर बंद पड़ गई. उसके बाद वाहनों से किसी तरह बचते-बचाते घर तक पैदल ही पहुंचा हूं. मैं एनडीआरएफ के जवानों को धन्यवाद देना चाहता हूं, जिन्होंने कालीना से आगे मुझे एक उफनते नाले में गिरने से बचाया.’

मुंबई का बच्चा-बच्चा जानता है कि चार बाल्टी पानी डाल दो तो मुंबई की एक चौथाई रेल्वे पटरियां डूब जाती हैं. भारी बारिश में रेलवे प्लेटफॉर्म नियाग्रा जलप्रपात नजर आते हैं! मध्य रेलवे का सायन स्टेशन सबसे पहले डूबता है और कुर्ला से मुंबई का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है. मध्य रेलवे के ही परेल, चिंचपोकली, भायखला, सैंडहर्स्ट रोड आदि स्टेशन पल भर में जलमग्न हो जाते हैं. पश्चिम रेलवे में महालक्ष्मी से आगे दादर, माहिम, बांद्रा और विले-पार्ले तक का रूट दो घंटे की लगातार बारिश में डूब जाता है. पनवेल की तरफ जाने वाली हार्बर लाइन तो आसमान में बादल देखते ही ठप हो जाती है. साल-दर-साल के अनुभव के बावजूद न तो रेलवे प्रशासन की कान में जूं रेंगती और न ही महाराष्ट्र सरकार के! दादर का हिंदमाता और सांताक्रूज का सबवे इलाका ऐसा है कि मामूली वर्षा में भी उसे पार कर लेना सात समंदर पार करने के बराबर होता है.

अलबत्ता देश की सबसे अमीर महानगरपालिका के दावे और वादे जरूर आसमानी होते हैं मगर तीन तरफ से समुद्री घेरे वाली मुंबई की भौगोलिक अवस्थिति का सर्वे कभी नहीं कराया जाता. निचले इलाकों से पानी निकालने के लिए रणनीतिक जगहों पर करोड़ों रुपए खर्च करके पंपिंग स्टेशन लगाए जाते हैं लेकिन वे हर बार नाकाफी साबित हो जाते हैं. मुंबई का ड्रेनेज सिस्टम आज भी अंग्रेजों के जमाने का है. धारावी, विक्रोली, मालाड, गोवंडी, मानखुर्द, दहिसर और कुर्ला जैसी अनगिनत जगहों पर वर्षों से खड़ी झोपड़पट्टियों का जीवन कल से वर्ली का गटर बना हुआ है और लोग सपरिवार बर्तन-भांड़े संभालते, पानी उलीचते नजर आ रहे हैं. लोगों के टैक्स के प्राप्त करोड़ों रुपए मात्र नालों की सफाई और सड़कों के गड्ढे भरने के नाम पर बीएमसी के पार्षद, ठेकेदार और अधिकारी डकार जाते हैं लेकिन जान-माल के नुकसान की जिम्मेदारी कोई नहीं लेता! हर साल नए टेंडर निकल जाते हैं.

इन हालात की जिम्मेदारी मुंबईकरों को भी लेनी होगी. पिछली तबाही भूलकर बीएमसी चुनाव के वक्त वे मराठी और गुजराती अस्मिता के नाम पर बंट जाते हैं. जब सत्ता के मन में एक किस्म की आश्वस्ति उत्पन्न हो जाती है तो वह जनता की परेशानियों की ओर से विमुख हो जाती है. अगर मुंबई का ढांचा दुरुस्त करना है तो मुंबईकरों को जागरूक मतदाताओं की तरह व्यवहार करना पड़ेगा. जल और कचरा प्रबंधन में हाथ बंटाना होगा. वरना हमारी प्यारी मुंबई हर बारिश में इसी तरह बरबाद होती रहेगी और हम मूक-असहाय जानवरों की तरह बीएमसी, राज्य सरकार और रेल प्रशासन की नाकामी का रोना रोते रहेंगे. आखिरकार बारिश की तबाही से बचने का इलाज यह तो हो नहीं सकता कि मुंबई में बारिश ही न हो!

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