"मां, सिर्फ हमारा शरीर ही नहीं गढ़ती बल्कि हमारा मन, हमारा व्यक्तित्व, हमारा आत्मविश्वास भी गढ़ती है.और अपनी संतान के लिए ऐसा करते हुए वो खुद को खपा देती है, खुद को भुला देती है." ये पंक्तियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी मां हीराबेन के लिए लिखते हुए इंसान के जीवन में मां के अनमोल महत्व को समझाया था.आज उनके सिर से मां का साया उठ चुका है . अपनी मां को खो देने की जो दर्दभरी अनुभूति एक साधारण इंसान को होती है,जाहिर है कि वैसी ही पीड़ा पीएम मोदी भी झेल रहे होंगे.


ये अलग बात है कि अपनी मां की अर्थी को कंधा देने और चिता की ज्वाला को देखते हुए भी मोदी ने अपना दिल मजबूत किये रखा. आंखों में आने वाले आंसुओं को रोक रखा. लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है कि मां के चले जाने के दर्द का गुबार बेटे ने अकेले में भी न निकाला हो,इसीलिये वे रोये तो अवश्य ही होंगे, क्योंकि वे जरुरत से ज्यादा भावुक इंसान भी हैं . ऐसा शख्स बहुत देर तक अपने आंसुओं को नहीं रोक सकता.


मां का फ़र्ज़ अदा करते ही वे देश का फ़र्ज़ पूरा करने में जुट गये


मां का फ़र्ज़ अदा करते ही वे देश का फ़र्ज़ पूरा करने में जुट गये. उन्होंने वर्चुअल तरीके से ही कोलकाता के समारोह का शुभारंभ किया.पीएम मोदी सार्वजनिक मंचों से कई बार कह चुके हैं कि मां के साथ उनका खास लगाव है. देश के लोगों ने इसेके मर्तबा न्यूज़ चैनलों के जरिये देखा भी है. संघ का एक मामूली प्रचारक बनने से लेकर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक का सफर तय करने वाले मोदी के व्यक्तित्व और कृतित्व को अगर गौर से देखें,तो उन्हें एक ईमानदार,मजबूत,कभी हार न मानने वाला कर्मयोगी बनाने में उनकी मां का सबसे बड़ा योगदान रहा है. स्वयं मोदी ने भी सार्वजनिक तौर पर इस तथ्य को स्वीकारा है.


छः संतानों के पालन-पोषण व उनके संघर्ष 


दरअसल,हीराबेन ने इसी साल बीती 18 जून को अपना 100वां जन्मदिन मनाया था. उस मौके पर पीएम मोदी ने गांधीनगर जाकर उनका आशीर्वाद भी लिया था. तब प्रधानमंत्री ने पहली बार अपनी लेखनी से मां के त्याग,तपस्या और गरीबी व अभावों के बीच छः संतानों के पालन-पोषण व उनके संघर्ष का विस्तार से जिक्र करते हुए बताया था कि उनके लिए मां का कितना महत्व है. उसी दिन उन्होंने अपनी आधिकारिक वेबसाइट 'नरेंद्र मोदी डॉट इन' पर 'मां' शीर्षक से एक भावुक कर देने वाला ब्लॉग लिखा था,जिसमें उन्होंने अपने जीवन के कई सारे अनछुए पहलुओं को पहली बार सार्वजनिक किया था. 


उसमें उन्होंने कई सारे ऐसे संस्मरणों को भी साझा किया,जिनके बारे में उनके भाई-बहनों को भी शायद पहले पता नहीं होगा.पीएम मोदी का लिखा वह ब्लॉग काफ़ी बड़ा है,जिसमें उन्होंने अपने बचपन से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक की यात्रा और इसमें आये कुछ महत्वपूर्ण पड़ावों का बेहद सीधी-सरल लेकिन दिल को छू जाने वाली भाषा -शैली में लिखा है. उस ब्लॉग को पढ़ने के बाद लगता है कि मोदी अगर राजनीति में कूदते तो शायद देश के एक उत्कृष्ट लेखक होते. उस ब्लॉग की कुछ अहम बातों को यहां साझा किए बगैर हीराबेन को श्रद्धांजलि अधूरी ही समझी जाएगी.


इंसान के जीवन में मां के महत्व को समझाते हुए उन्होंने लिखा था-"मां, ये सिर्फ एक शब्द नहीं है. जीवन की ये वो भावना होती है जिसमें स्नेह, धैर्य, विश्वास, कितना कुछ समाया होता है. दुनिया का कोई भी कोना हो, कोई भी देश हो, हर संतान के मन में सबसे अनमोल स्नेह मां के लिए होता है.मां की तपस्या, उसकी संतान को, सही इंसान बनाती है. मां की ममता, उसकी संतान को मानवीय संवेदनाओं से भर्ती है.मां एक व्यक्ति नहीं है, एक व्यक्तित्व नहीं है, मां एक स्वरूप है. हमारे यहां कहते हैं, जैसा भक्त वैसा भगवान. वैसे ही अपने मन के भाव के अनुसार, हम मां के स्वरूप का अनुभव कर सकते हैं."


दूसरों पर अपनी इच्छा ना थोपने की भावना मां से सीखे


अपनी मां से वैसे तो मोदी ने बहुत सारे गुण सीखे हैं लेकिन इस बात का खास जिक्र करते हुए वे लिखते हैं "दूसरों की इच्छा का सम्मान करने की भावना, दूसरों पर अपनी इच्छा ना थोपने की भावना, मैंने मां में बचपन से ही देखी है. खासतौर पर मुझे लेकर वो बहुत ध्यान रखती थीं कि वो मेरे और मेरे निर्णयों के बीच कभी दीवार न बनें. उनसे मुझे हमेशा प्रोत्साहन ही मिला. बचपन से वो मेरे मन में एक अलग ही प्रकार की प्रवृत्ति पनपते हुए देख रही थी. मैं अपने सभी भाई-बहनों से अलग सा रहता था. मेरी दिनचर्या की वजह से, मेरे तरह-तरह के प्रयोगों की वजह से कई बार मां को मेरे लिए अलग से इंतजाम भी करने पड़ते थे.लेकिन उनके चेहरे पर कभी शिकन नहीं आई. मां ने कभी इसे बोझ नहीं माना. जैसे मैं महीनों-महीनों के लिए खाने में नमक छोड़ देता था."


मां ने कहा था- तुम कभी रिश्वत नहीं लेना


राजनीति में रहते हुए रिश्वत की कालिख से खुद को बचाते हुए ईमानदार बने रहने का मंत्र भी मोदी ने अपनी मां से ही सीखा है. मोदी कहते हैं,मेरी मां ने हमेशा मुझे अपने सिद्धांत पर डटे रहने, गरीब के लिए काम करते रहने के लिए प्रेरित किया है. मुझे याद है, जब मेरा मुख्यमंत्री बनना तय हुआ तो मैं गुजरात में नहीं था. एयरपोर्ट से मैं सीधे मां से मिलने गया था. खुशी से भरी हुई मां का पहला सवाल यही था कि क्या तुम अब यहीं रहा करोगे? मां मेरा उत्तर जानती थीं. फिर मुझसे बोलीं- “मुझे सरकार में तुम्हारा काम तो समझ नहीं आता लेकिन मैं बस यही चाहती हूं कि तुम कभी रिश्वत नहीं लेना.’’ अपनी मां के लिए एक बेटे की इससे बड़ी श्रद्धांजलि और कुछ नहीं हो सकती कि "अभाव की हर कथा से बहुत ऊपर, एक मां की गौरव गाथा होती है. संघर्ष के हर पल से बहुत ऊपर, एक मां की इच्छाशक्ति होती है."


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